Politalks.News/Bharat. विजय दशमी या दशहरा उत्सव आते ही रावण के घमंड और अहंकार याद आते हैं. वह रावण जिसने मरते दम तक अपना अहंकार कम नहीं किया. जब-जब रावण का नाम लिए आता है तब-तब बुराई पर अच्छाई की जीत याद आती है. लेकिन इस बार देश में कोरोना महामारी सबसे बड़ी अभिशाप बन गई है. ‘इस महामारी ने देश ही नहीं पूरे विश्व भर में लोगों का जीवन फीका कर दिया है. कोरोना संक्रमण काल में लोग डर-डर कर जिंदगी जी रहे हैं. आठ महीने पहले शुरू हुई दहशत आज भी जारी है. लोगों को अभी भी इंतजार है जिंदगी कब पटरी पर लौटेगी‘. खैर यह तो दैवीय आपदा है.
अब बात करेंगे विजयदशमी यानी दशहरा उत्सव की. आज यानी शनिवार को शारदीय नवरात्रि समापन की ओर बढ़ रही है, लेकिन दशहरा उत्सव की रौनक देशभर में दिखाई नहीं पड़ रही. कोरोना की वजह से लोगों में इस बार रावण को जलाने या जलते हुए देखने में कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है. सदियों के बाद यह पहला अवसर होगा जब रावण दहन की रंगत नजर नहीं आएगी. दशहरा का त्योहार पूरे देश में बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है. इस त्योहार के रंग में हर शहर अपनी तरह से रंग जाता है. हर शहर का दशहरा किसी बात का प्रतीक है.
आपको बता दें, इस बार रावण के पुतले का साइज आधा कर दिया गया है. आमतौर पर रावण के पुतले को 80 से 100 फीट तक बनाया जाता था. यहां हम आपको बता दें कि हर वर्ष अक्टूबर के महीने तक उत्तर भारत के छोटे बड़े मैदानों में रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है और शाम होते ही चारों ओर रामायण की गूंज सुनाई देने लगती थी लेकिन इस बार दशहरे की वह चहल-पहल गायब है. क्योंकि अधिकतर रामलीलाओं का मंचन रद कर दिया गया है. बता दें कि हर वर्ष दशहरा के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन इसलिए किया जाता है कि व्यक्ति अपनी बुराइयों को खत्म कर अपने अंदर अच्छी आदतों को ला सके.
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दिल्ली की रामलीला, कुल्लू और मैसूर के दशहरे में इस बार नहीं होगी चहल-पहल-
आपको बता दें कि दिल्ली की रामलीला मैदान पर हर वर्ष होने वाले दशहरे आयोजन में बहुत से गणमान्य लोग पहुंचते रहे हैं. लेकिन इस बार सन्नाटा नजर आएगा. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और कर्नाटक के मैसूर का विश्व प्रसिद्ध दशहरे की रौनक भी गायब रहेगी. पहले बात करेंगे दिल्ली के दशहरा उत्सव की. कोविड-19 महामारी के बीच अनुमति लंबित रहने के कारण इस बार दशहरा में दिल्ली की बड़ी रामलीला समितियों ने रावण दहण का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है. दशहरा उत्सव का केंद्र रहे लालकिला के रामलीला मैदान में हर साल बड़ी संख्या में आम लोगों के साथ साथ प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति समेत बड़े बड़े गणमान्य अतिथि पहुंचते हैं लेकिन इस बार यहां सन्नाटा रहेगा.
वहीं कुल्लू और मैसूर शहर के दशहरे का महत्व और तरीका दोनों ही अलग है. इसलिए यहां का दशहरा दुनियाभर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. कुल्लू और मैसूर शहर का दशहरा देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. मैसूर शहर में दशहरा का त्योहार बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है. इस त्योहार को यहां के लोग दसरा या नबाबबा कहते हैं. इस त्योहार में मैसूर के सबसे मशहूर शाही वोडेयार परिवार सहित पूरा शहर शामिल होता है. मैसूर पैलेस को 10 दिनों तक सजा कर रखा जाता है. साथ ही यहां सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. इसके अलावा महल के मैदान के सामने एक दसारा प्रदर्शन का भी आयोजन किया जाता है. कुल्लू शहर शांति और अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है.
बता दें, दशहरा के दिन इस शहर का भव्य आयोजन सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाता है. कुल्लू में दशहरा का त्योहार भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. जब पूरे देश में दशहरा खत्म होता है, उसी दिन दशहरे का उत्सव शुरू होता है. कुल्लू में दशहरे का पर्व सात दिनों तक मनाया जाता है. जहां पूरे देश में दशहरा असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है वहीं कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के तौर पर पांच जानवरों की बलि देकर इसे मनाते हैं.
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इस दशहरे पर आरएसएस का सड़कों पर नहीं निकलेगा पथ संचलन-
कोरोना संक्रमण काल के चलते इस बार विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संच के स्वयंसेवकों की सड़कों पर धमक देखने को नहीं मिलेगी. कोरोना संक्रमण के कारण संघ ने इस बार पथ संचलन नहीं निकालने का निर्णय लिया है. पूरे देश में शाखाओं पर छोटे स्तर पर कार्यक्रम करने का निर्णय लिया गया है. संघ के मुख्यालय नागपुर में भी प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार बड़ा कार्यक्रम नहीं होगा. कोरोना के चलते संघ ने सामूहिक आयोजन निरस्त कर दिए हैं. घरों में ही स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में पूजन करेंगे.
बता दें कि प्रत्येक दशहरे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा निकाला जाता है. पूर्ण गणवेश में शस्त्रों के साथ मार्च पास्ट करते स्वयंसेवक दशहरे पर अलग-अलग शाखाओं के अनुसार निकलते हैं. पथ संचलन का जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वागत किया जाता है. जिसके बाद एक स्थल पर सामूहिक कार्यक्रम कर शस्त्र पूजन किया जाता था. इस बार संघ ने कोरोना वायरस को देखते हुए परंपरा का पालन करने के लिए केवल शस्त्र पूजन घरों में होगा. संघ प्रमुख मोहन भागवत देश को जरूर संबोधित करेंगे.
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पौराणिक कथाओं में दशहरा उत्सव मनाने का मिलता है उल्लेख-
दशहरे के दिन प्रभु श्री राम माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाकर लाए थे. रावण की बुराई पर भगवान राम की अच्छाई के विजय की खुशी में हर साल हम दशहरा मनाते हैं. इसके साथ ही मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर देवी-देवताओं और भक्तों पर उपकार भी किया था. मान्यता है कि भगवान श्री राम ने नवरात्र के नौ दिन तक मां दुर्गा की उपासना की थी. वहीं दसवें दिन मां दुर्गा का आशीर्वाद पाकर रावण का अंत किया था. तब से ही दशहरा मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि के 10वें दिन और दीपावली से ठीक 20 दिन पहले दशहरा आता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी-दशहरे का त्योहार मनाया जाता है.
बता दें कि इस बार दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 12 मिनट से दोपहर 3 बजकर 27 मिनट तक है. इस पूजा के लिए कुल दो घंटे और पंद्रह मिनट का समय है. इस दिन शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से दोपहर 2 बजकर 42 मिनट तक है. यह समय करीब 45 मिनट का है. दशहरे त्योहार पर व्यापारी वर्ग अपने फार्म पर पूजा-अर्चना करते हैं. इसके साथ ही क्षत्रिय समाज में अस्त्र-शस्त्र की पूजा करने की परंपरा रही है. सही मायने में यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है, खरीदारी के लिए भी इस दिन को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है.