Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान के सियासी इतिहास में 10 अगस्त महत्वपूर्ण तारीख है. पिछले साल 2020 में इसी दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की ‘सियासी कलह’ में प्रियंका गांधी की एंट्री हुई थी. प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की थी. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी सुलह के फॉर्मूले के लागू होने का इंतजार है. पूरे एक साल से पायलट गुट के हाथ खाली है. पायलट समर्थक विधायक और नेता पंजाब-उत्तराखंड की तर्ज पर ही राजस्थान में भी तत्काल एक्शन चाहते हैं. पायलट कैंप को अब भी उम्मीद है की आलाकमान उनकी मांगों को पूरा करेगा. सूत्रों की माने तो मांगें पूरी नहीं होने के कारण आगे खींचतान बढ़ने के आसार हैं.
दरअसल, 12 जुलाई 2020 को पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने सहयोगी 18 कांग्रेस विधायकों के साथ नाराज होकर दिल्ली चले गए थे. जहां उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के अल्पमत में होने का भी दावा किया था. एक और सचिन पायलट कैंप के 18 विधायक मानेसर में बाड़ाबंदी में रहे तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सहयोग करने वाले 100 से ज्यादा विधायक पहले जयपुर के फेयर माउंट होटल और फिर जैसलमेर के सूर्यगढ़ रिसोर्ट में बाड़ेबंदी में रहे. करीब एक महीना चली खींचतान और राजनीतिक रस्साकशी के बाद आखिर 10 अगस्त 2020 को इस पूरे मामले में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की एंट्री हुई. लगा अब पटाक्षेप होना तय है. प्रियंका गांधी ने सचिन पायलट और उनके गुट के तमाम विधायकों से मुलाकात की. प्रियंका ने उनकी समस्याएं सुनीं और फिर पायलट कैंप की मांगों को लेकर 3 सदस्यीय कमेटी बनाई. जिसमें राजस्थान के प्रदेश प्रभारी अजय माकन संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और गांधी परिवार के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को शामिल किया गया. हालांकि इसी बीच अहमद पटेल का निधन हो चुका है, लेकिन उससे पहले इस कमेटी के सामने पायलट समर्थक अपनी मांगें रख चुके हैं, लेकिन अभी तक उनकी मांगें पूरी नहीं हुई हैं.
प्रियंका गांधी ने दोनों गुटों में सुलह तो करवा दी. लेकिन सुलह किस फार्मूले पर हुई थी यह बात अब भी राज ही है. सियासी गलियारों में केवल चर्चाओं का दौर ही चलता रहा हुआ लेकिन कुछ नहीं. इस पूरे एक साल में सचिन पायलट गुट की ओर से मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों और कार्यकर्ताओं के मान सम्मान की बात भी कई बार की गई, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी अब तक राजस्थान में न तो मंत्रिमंडल विस्तार हो सका है ना ही राजनीतिक नियुक्तियां.
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कहा जाता है कि आंधे की माखी राम उड़ाता है. पूरे एक साल में मुख्यमंत्री गहलोत गुट का साथ कई मुद्दों ने भी दिया, कोरोना की दूसरी लहर, विधानसभा उपचुनाव, दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष पद का मसला और पंचायत चुनावों के चलते सुलह के फ़ॉर्मूले को अमल में लाने की कवायद आगे खिसकती ही गई. पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस की कलह पर दिल्ली आलाकमान ने जो तेजी से फैसले लिए थे उसके बाद लगा था कि कुछ होने वाला है. प्रदेश प्रभारी ने रायशुमारी की, मेनिफेस्टो कमेटी की भी बैठक हो चुकी है. सीएम गहलोत से जयपुर आकर संगठन महासचिव वेणुगोपाल, प्रदेश प्रभारी अजय माकन, हरियाणा कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार मिल चुके हैं. लेकिन हालात वहीं हैं ‘ढाक के तीन पात’
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समर्थकों के लिए सम्मान चाहते हैं पायलट
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट कई बार कह चुके हैं कि सरकार बनवाने के लिए जिन कार्यकर्ताओं और नेताओं ने लाठियां खाईं हैं उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए. पायलट अपने 6 समर्थकों को मंत्रिमंडल में देखना चाहते हैं. राजनीतिक नियुक्तियों और संगठन में भी बराबर की हिस्सेदारी की मांग की है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शेयरिंग पैटर्न पर सहमत नहीं है. सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री गहलोत सचिन पायलट के 3 समर्थक विधायकों को ही मंत्री बनाने को तैयार हैं, इसी वजह से मंत्रिमंडल विस्तार अटका हुआ है.
सचिन पायलट समर्थक विधायक मुकेश भाकर का कहना है कि, ‘सचिन पायलट साल भर से विधायक के तौर पर काम कर रहे हैं. पार्टी को उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहिए. साल भर पहले मांगों के समाधान के लिए बनी कमेटी की रिपोर्ट आनी चाहिए और उसके हिसाब से मांगों का समाधान करना चाहिए. हम सब कांग्रेस की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं. फैसले लेने में देरी से पार्टी का ही नुकसान हो रहा है, हम चाहते हैं पार्टी फिर से राजस्थान में सत्ता में आए. पार्टी हित में हमने कमेटी के सामने अपने सुझाव और मांगें रखीं थीं उन्हें जल्द पूरा करना चाहिए’.