Politalks.News/Bihar Election. बिहार में शुरू हुए लोकतंत्र के महामेले में नेताओं की दुकानें अभी भी सजी हुई हैं और कई दल नेताओं की खरीदारी करने के लिए छटपटा रहे हैं. प्रदेश में चुनाव सिर पर हैं फिर भी गठबंधन व महागठबंधन बनने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. ‘तमाम अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियों के एक मंच पर आने से बिहार की जनता भी असमंजस में है‘. गुरुवार को बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के खिलाफ एक नए तीसरे फ्रंट की भी एंट्री हो गई. महागठबंधन और एनडीए से दरकिनार किए गए उपेंद्र कुशवाहा की इस नए गठबंधन के निर्माण में अहम भूमिका है. आइए आपको बताते हैं नए गठबंधन में कौन से राजनीतिक दल और कौन से नेता शामिल हैं.
असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम (ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के साथ उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव के समाजवादी जनता दल, डॉ. संजय चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने मिलकर ‘ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट‘ बनाया है. इस गठबंधन का संयोजक देवेंद्र प्रसाद यादव को बनाया गया है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा को गठबंधन में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है.
बिहार में इस तीसरे नए गठबंधन के बाद फिर बढ़ गईं चुनावी सरगर्मियां–
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के महागठबंधन छोड़े जाने के बाद एनडीए में जाने के कयास लग रहे थे, लेकिन अंत समय में कुशवाहा ने मायावती और असदुद्दीन ओवैसी को बिहार चुनाव के लिए अपना साथी बना लिया है. ऐसे में बिहार चुनाव को लेकर एक बार फिर से सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में शामिल हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमें खुशी है हम बिहार के लोगों को विकल्प दे पाए हैं और हमारे साथ नई पार्टियां आई हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि नीतीश सरकार के राज में 15 साल बिहार की जनता से धोखा किया गया है, ऐसे में अब नए विकल्प की जरूरत है.
नए गठबंधन में मुख्यमंत्री पद के दावेदार उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का कोई औचित्य नहीं बचा है, सिर्फ पैसों वाले बच्चों की पढ़ाई हो रही है. कुशवाहा ने कहा कि नया गठबंधन में देरी जरूर हुई है पर दुरुस्त होकर हम एक साथ आए हैं. हमारा गठबंधन सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगा. उन्होंने कहा कि बिहार में महागठबंधन और राजग दोनों फेल है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि इस बार बिहार की जनता बदलाव चाहती है.
अलग विचारधारा होने पर यह गठबंधन नहीं हो पाते हैं सफल-
बता दें, कई राजनीतिक दलों के साथ समझौता करके गठबंधन बनाया जाता है लेकिन अक्सर देखा गया है कि गठबंधन में शामिल होने वाली पार्टियों और उनके नेताओं की अलग अलग विचारधारा होने की वजह से अधिक लंबा नहीं चलता है. अभी पिछले दिनों तक बिहार में भाजपा जेडीयू और एलजेपी का गठबंधन था, लेकिन चुनाव से ठीक पहले एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान एनडीए से अलग हो चुके हैं. ऐसे ही केंद्र में एनडीए से शिवसेना और अकाली दल ने अपना नाता तोड़ लिया है.
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किसी भी गठबंधन में दरार पड़ने का सबसे बड़ा कारण रहा है कि आपसी तालमेल में कमी और एक विचारधारा का न होना है. ऐसे ही उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. चुनाव परिणामों के बाद ही मायावती और अखिलेश यादव में मनमुटाव शुरू हो गए थे. आखिरकार छह महीने के अंदर ही सपा और बसपा का गठबंधन टूट गया.
अब यह नया गठबंधन बिहार में चुनाव से पहले बड़े-बड़े दावे करने में लगा हुआ है. बिहार में पहले फेज की वोटिंग इसी महीने की 28 अक्टूबर को होनी है, ऐसे में ये देखना होगा कि कुशवाहा-ओवैसी और मायावती बिहार चुनाव में जनता के बीच कितनी पकड़ बना पाती है.