श्रीनगर में नेकां और<a href=”https://politalks.news/silence-in-national-conference-and-pdp-offices-in-srinagar/”>केंद्र की मोदी सरकार </a> (Narendra Modi Government) के जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) का विशेष दर्जा खत्म करने और लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बनाने के फैसले के बाद पांच अगस्त से श्रीनगर में राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों में सन्नाटा पसरा हुआ है. स्थानीय पार्टियों के तमाम प्रमुख नेता इन दिनों नजरबंद हैं, जिनमें नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah), उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah), पीडीपी की नेता पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti), जम्मू-कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन (Sajjad Lone) और आईएएस छोड़कर जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट शुरू करने वाले फैसल खान (Faisal Khan) शामिल हैं.

श्रीनगर (Shrinagar) में जीरो ब्रिज के पास नवा-ए-सुबह कांप्लेक्स स्थित नेशनल कांफ्रेंस का दफ्तर इस कदर सुनसान है कि वहां पार्टी का बोर्ड देखकर ही मालूम पड़ता है कि यहां पार्टी का दफ्तर है. दफ्तर पर ताला लगा हुआ है, जिसके पास सिर्फ एक सुरक्षा कर्मी तैनात है. यही हाल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के दफ्तर का है, जो शेर-ए-कश्मीर पार्क के पास है. नेशनल कांफ्रेंस के दफ्तर से पीडीपी के दफ्तर तक पहुंचने में पांच मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता है.

इन पार्टियों कार्यकर्ताओं को समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या करना है. वे अपने नेताओं से संपर्क भी नहीं कर पा रहे हैं. एमए रोड स्थित कांग्रेस के कार्यालय में सन्नाटा नहीं है, लेकिन वहां गिनती के लोग ही दिखाई देते हैं. श्रीनगर जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष शमीमा मीर ने बताया कि उन्हें बड़े नेताओं से कोई निर्देश नहीं मिल पा रहे हैं. राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद श्रीनगर पहुंचने वाले थे, लेकिन उन्हें एयरपोर्ट से ही वापस दिल्ली भेज दिया गया, इसकी जानकारी भी उन्हें टेलीविजन से मिली. नेशनल कांफ्रेंस के लोकसभा सांसद अल्ताफ लोन ने कहा कि राज्य में सन्नाटे जैसी स्थिति है और हम नहीं जानते कि कौन आ रहा है, कौन जा रहा है. अल्ताफ लोन उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं, जिन्हें नजरबंद नहीं किया गया है.

ऐसा लगता है जैसे अचानक स्थानीय पार्टियों का जनाधार समाप्त हो गया है. सिर्फ भाजपा के कार्यालय में चहल-पहल दिखाई देती है, जिसका कोई जनाधार नहीं है. वह इस सन्नाटे में अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रही है. कश्मीर घाटी की जनता के बीच स्थानीय नेताओं के प्रति नाराजगी बढ़ रही है. लोन ने कहा कि यह सही है, जनता नाराज है, लेकिन हम भारत के साथ हैं. अलगाववाद के खिलाफ हैं. केंद्र सरकार ने फैसले से पहले हमें भनक नहीं लगने दी, यह ठीक नहीं हुआ. इस माहौल में भाजपा और कुछ नए संगठन जनता में पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

स्थानीय नेताओं के जनता से मेलजोल के रास्ते बंद हैं. एनएसयूआई (NSUI) के पूर्व पदाधिकारी मीर जावेद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नेता एक तरफ तो अलगाववादियों के साथ संपर्क बढ़ाते रहे और दूसरी तरफ दिल्ली के साथ जोड़तोड़ करते हुए भ्रम फैलाते रहे. इन लोगों ने जम्मू-कश्मीर के लिए कुछ नहीं किया. सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते रहे. उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग बदलाव से खुश हैं, क्योंकि वे क्षेत्र का विकास और रोजगार के मौके चाहते हैं. जिसमें पुरानी स्थानीय पार्टियां पूरी तरह नाकाम रहीं.

भाजपा अपनी 10 साल पुरानी धारा 370 हटाने की मांग पूरी होने के बाद विजय रथ पर सवार है और इसे भरोसा है कि कश्मीर की स्थिति बदल जाएगी. लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ जम्मू (Jammu) और लद्दाख (Ladakh) की सीट मिल पाई थी. कश्मीर घाटी में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी. अब भाजपा (BJP) उम्मीद कर रही है कि कश्मीर घाटी में उसका जनाधार बढ़ेगा. स्थानीय भाजपा नेता अल्ताफ ठाकुर (Altaf Thakur) का दावा है कि राज्य के लोगों ने ईद से ज्यादा धारा 370 हटने का जश्न मनाया. उन्होंने इस धारणा को गलत बताया कि घाटी में भाजपा का कोई जनाधार नहीं है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में भाजपा के 1.75 लाख नए सदस्य बन गए हैं, लेकिन परिस्थितियां उनके दावे की पुष्टि नहीं करती है.

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