महाराष्ट्र (Maharastra) में विधानसभा चुनाव की तारीख तय हो चुकी है. यहां विधानसभा की 288 सीटों पर प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 24 अक्टूबर को हो जाएगा. मतदान 21 अक्टूबर को होगा. पिछली बार की तरह इस बार भी यहां दो भाई आपस में सीटों की लड़ाई लड़ रहे हैं. इस बार लड़ाई पहले से गहरी है. यहां सत्ता का बंटवारा भी हो रहा है जिसके लिए बड़ा भाई तैयार तो छोटा भाई नाखुश है.
महाराष्ट्र के ये दोनों भाई हैं शिवसेना और भाजपा. वि.स. चुनावों को अब कुछ ही दिन शेष हैं लेकिन दोनों के बीच सीट बंटवारे को लेकिन सहमति नहीं बन पायी. साथ ही शिवसेना सत्ता में ढाई-ढाई साल का बंटवारा भी चाहती है तो न तो भाजपा आलाकमान और न ही वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को मंजूर है.
पिछली बार भी दोनों के बीच कुछ ऐसी ही स्थिति रही. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कुल 288 सीटों के लिए हुए चुनावों में शिवसेना ने आधी सीटें मांगी थी लेकिन लोकसभा चुनाव-2014 में मोदी आंधी की सफलता पर सवार भाजपा ने दो टूक में उन्हें मना कर दिया. भाजपा का ये फैसला शिवसेना को धरातल का मुख दिखाने जैसा साबित हुआ और भाजपा ने 122 सीटों पर कब्जा कर लिया. शिवसेना केवल 63 सीटों पर सिमट गयी.
हालांकि बाद में दोनों ने गठबंधन कर सरकार बनाई और पांच साल चलाई. लोकसभा चुनाव-2019 में भी ये भाई-भाई वाला प्यार बरकरार रहा और दोनों ने मिलकर 48 में से 41 सीटों पर कब्जा कर लिया.
लेकिन जब बात घर की हो तो भाईयों में भी लड़ाई होना वाजिब है. शिवसेना चीफ उद्दव ठाकरे अब राजनीति में उतने सक्रिय नहीं हैं और वे अपने सुपुत्र आदित्य ठाकरे को संगठन की बांगड़ोर संभलवा मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने इस बार ज्यादा ध्यान सत्ता के बंटवारे पर दिया है और फडनवीस-आदित्य ठाकरे के लिए ढाई-ढाई साल सत्ता मांगी. फिलहाल पेच अटका हुआ है.
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अब दो भाईयों की इस लड़ाई में दिग्गज़ राजनीतिज्ञ और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के मुखिया शरद पवार के हाथ में छीका लगने की संभावना दिख रही है. शरद पवार (Sharad Pawar) लंबे समय तक कांग्रेस में रहे और कांग्रेस अध्यक्ष बनने के प्रबल दावेदार भी थे. बाद में किसी बात पर नाराज होकर उन्होंने महाराष्ट्र आकर एनसीपी पार्टी का गठन किया. शरद पवार महाराष्ट्र के तीन बार के मुख्यमंत्री (18 July 1978 – 17 February 1980), (26 June 1988 – 25 June 1991), (6 March 1993 – 14 March 1995) रह चुके हैं. पवार 78 साल की ढलती आयु में भी काफी एक्टिव हैं और राजनीति में सक्रिय हैं.
कभी महाराष्ट्र में पहले नंबर की पार्टी के राजा बने शरद पवार की एनसीपी शिवसेना और भाजपा के आने के बाद नंबर तीन पर खिसक गई है लेकिन उनकी वो राजनीतिज्ञ वाली धाक धूमिल नहीं हुई. 2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एनसीपी की सरकार बनाने में सहायता भी ली थी. उनका और उनकी पार्टी का सदभाव इतना कमाल का है कि भाजपा के नेता और केंद्र सरकार के मंत्री सहित खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके चुनावी क्षेत्र बारामती जाकर उनके तारीफ कर चुके हैं. पीएम मोदी ने तो यहां तक कहा है कि वे जरूरत पड़ने पर शरद पवार की सलाह लिया करते हैं.
शरद पवार और उनकी पार्टी की जनता के बीच कितनी मजबूत छवि है, शुक्रवार को हुई एक घटना ने इस बात को पुख्ता भी कर दिया. महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड में कई करोड़ का घोटाले में ईडी ने शरद पवार से पूछताछ करने के संकेत दिए. इस मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस में सफाई देने की बजाय पवार ने को खुद ईडी के दफ्तर में पहुंचकर अपना पक्ष रखने की बात कही.
उनका इतना कहना था कि अगले दिन गुरुवार को दिनभर विभिन्न शहरों में राकांपा कार्यकर्ताओं का ईडी के खिलाफ उग्र प्रदर्शन शुरू हो गया. पवार के गढ़ बारामती में मुकम्मल बंद रहा. मुंबई स्थित ईडी के मुंबई स्थित कार्यालय के आसपास बड़ी संख्या में राकांपा कार्यकर्ता जुटने लगे थे. परिस्थिति को देखकर ईडी ने ट्वीट किया कि पवार को शुक्रवार को ईडी के सामने हाजिर होने की जरूरत नहीं है लेकिन शरद पवार ने माहौल बना दिया.
परिस्थितियों को भांपकर मुंबई पुलिस कमीश्नर और ज्वाइंट कमिश्नर खुद शरद पवार के घर पहुंचे और उनसे ईडी दफ्तर न आने का अनुरोध किया. पुलिस-प्रशासन के मान-मनोवल के बाद रांकपा विधायक ने उनकी बात मानते हुए वहां न जाने का फैसला किया. जिस तरह विपक्ष के नेताओं पर ईडी व सीबीआई लगातार हमले कर रही है, उससे तो भाजपा के रणनीतिकारों ने अंदाजा लगाया होगा कि ईडी की जांच में शरद पवार का नाम उछलने से महाराष्ट्र में भाजपा की संभावनाएं मजबूत होगी राकांपा कार्यकर्ताओं का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा. लेकिन शुक्रवार को हुई इस घटना ने अचानक से न केवल राकांपा का ग्राफ प्रदेश में बढ़ा दिया, साथ ही कार्यकर्ताओं में एकजुट हो चुनावी फतह करने का दमखम भी फूंक दिया.
खुद शिवसेना सांसद संजय राउत ने ईडी की समझदारी पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ईडी को राज्य के इतने बड़े नेता को नामजद करने की क्या जरूरत थी?
सीधे सीधे कहा जाए तो महाराष्ट्र में एनसीपी की हालत को देखकर खुद शरद पवार सोच रहे थे कि मोदी की आंधी के बीच आखिर कार्यकर्ताओं में जोश कैसे फूंका जाए, वो बैठे बिठाए अपने आप ही हो गया. अब खुद सत्ताधारी पक्ष बैकफुट पर खिसकने लगा है. इस घटना से जहां भाजपा समर्थक खुश हो रहे थे, वे अब अपना सिर धुन रहे हैं. इस घटनाक्रम ने उलटे पवार के पक्ष में प्रदेश के लोगों की सहानुभूति बढ़ा दी है. अपने चाचा पर लगे इन आरोपो से आहत होकर अजीत पवार के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा के बाद तो ये सहानुभूति और बढ़ गई है. अब महाराष्ट्र बीजेपी खुद बचाव की मुद्रा में आ गई है कि पवार को कैसे रोका जाए.
हालांकि इन घटना के बाद एनसीपी नंबर तीन से नंबर एक पर नहीं आने वाली लेकिन लोगों में जिस तरह का माहौल पनप गया है, उसे देखने हुए राकांपा शिवसेना को धकेल दूसरे नंबर पर आ जाए और भाजपा को सरकार बनाने में कड़ी टक्कर दे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.
ये भी सच है कि शिवसेना और भाजपा में अभी तक सीटों को लेकर रजामंदी नहीं बन पाई है. अगर दोनों प्रमुख पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ती है और मौजूदा माहौल का फायदा एनसीपी को मिल जाता है तो इस बात की पूरी संभावना बनेगी कि शरद पवार को सरकार बनाने या सहयोगी पार्टी के तौर पर प्रमुखता से निमंत्रण दिया जाए. अगर घटनाक्रम इस तरह से घूमता है तो कहना गलत न होगा कि दो भाईयों की लड़ाई में शरद पवार के हाथ छीका अपने आप टूटकर लग गया है.