पॉलिटॉक्स ब्यूरो. इसी साल 24 अक्टूबर को जैसे ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए, अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए हरियाणा और महाराष्ट्र में ‘कमल’ खिलने पर बधाई थी, लेकिन इसी बीच एक शिवसेना का एक सैनिक सीना ताने मीडिया के सामने आया और महाराष्ट्र में भाजपा के मुकाबले आधी सीटें जीतने के बाद भी शिवसेना का मुख्यमंत्री की मांग कर बैठा. उस समय उनकी इस मांग का औचित्य क्या था, वो महाराष्ट्र में दिन-ब-दिन करवटे बदलती राजनीति में साफ देखा जा सकता है. शिवसेना का वो सैनिक था संजय राउत (Sanjay Raut), जो राज्यसभा में पार्टी के सांसद के साथ मुखपत्र सामना के एक्जिक्यूटिव संपादक भी हैं.
महाराष्ट्र में शिवसेना का मराठी मुखपत्र ‘सामना’ जितना अपने कटाक्ष संपादकीय लेखों के लिए विख्यात है, संजय राउत (Sanjay Raut) के स्वर उससे भी तीखे हैं. विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद संजय राउत ने जब मीडिया के समक्ष कहा कि भाजपा से शिवसेना की ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात हुई है, मीडियाकर्मियों के मुंह खुले के खुले रह गए. वहीं भाजपा पर संजय राउत के ये बोल एटॉम बम की तरह गिरे. शिवसेना प्रमुख उद्दव ठाकरे ने भी चाहे वो सत्ता का लालच हो या फिर अपने सुपुत्र आदित्य ठाकरे का राजनीतिक भविष्य, संजय राउत को फ्री हैंड दे दिया. एक ओर भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ अन्य बड़े नेता बयान देते रहे लेकिन शिवसेना की ओर से अकेले संजय राउत ने मोर्चा संभाले रखा.
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जब एनसीपी ने शिवसेना को समर्थन देने के लिए भाजपा से सभी संबंध तोड़ने की शर्त रखी, तब भी संजय राउत की भूमिका अहम रही और आनन-फानन में मोदी कैबिनेट में इकलौते सांसद से इस्तीफा दिला दिया. एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी संजय राउत ने लगातार संपर्क साधे रखा और वक्त पड़ने पर उद्दव ठाकरे से बात भी कराई. कांग्रेस नेताओं से भी संजय राउत ज्यादा तो नहीं लेकिन संपर्क में बने रहे. ये संजय राउत (Sanjay Raut) के व्यक्तित्व का ही कमाल था जिसके चलते शरद पवार खुद सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली जा पहुंचे.
संजय राउत की महाराष्ट्र में भूमिका और उनका कद उस समय और भी भारी हो गया जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवसेना को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए राजभवन में आमंत्रित किया. उसी दिन संजय राउत की तबीयत बिगड़ गयी और वे मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराए गए. उनकी अनुपस्थिति में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच बातचीत ऐसी उलझी कि साफ तौर पर बन रहा गठबंधन सोनिया गांधी और कांग्रेस के समर्थन पत्र में उलझ कर रह गया. ऐसे में राउत (Sanjay Raut) की कमी शिव सैनिकों को जरूर खली होगी.
अगले दिन जब एनसीपी को सरकार बनाने का दावा पेश करने का मौका मिला तब भी कुछ इसी तरह के नाटक देखने को मिले. लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने की संभावित सूचना बाहर आई, राजनीति गलियारों के साथ-साथ शिवसेना और कांग्रेस खेमे में हलचल मच गयी. उद्दव ठाकरे खुद लीलावती पहुंचे. यहां वे संयज राउत के हालचाल जानने नहीं बल्कि आगे की रणनीतियां पर चर्चा करने पहुंचे थे. शाम को कांग्रेस के नेताओं ने भी उनके जाकर मुलाकात की. दोपहर में शरद पवार भी उनसे मिलने पहुंचे क्योंकि वे भी जानते हैं कि शिराकां (शिवसेना-राकंपा-कांग्रेस) के बीच की कड़ी और सूत्रधार संजय राउत ही हैं.
जिस तरह संजय राउत की हॉस्पिटल में काम करते हुए एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी, उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि संजय राउत ने वहां भी अपना चक्रव्यूह रचना जारी रखा. जैसे ही वे अस्पताल से बाहर निकले, आते ही उन्होंने अपने मुख बाणों से भाजपा को भेदना शुरू कर दिया. उनके आते से ऐसा लगा जैसे शिवसेना सहित महाराष्ट्र में बनने जा रहे ऐतिहासिक और विरोधी विचारधारा वाले महागठबंधन में किसी से प्राण फूंक दिए हो. अपने ट्विटर हैंडल पर शायराना अंदाज में उन्होंने विरोधियों को न कहते हुए भी काफी कुछ कह दिया है. संजय राउत के बारे में इससे ज्यादा क्या कहा जाए कि खुद शरद पवार और संजय राउत शरद पवार के कड़े प्रशंसक हैं.
बात करें संजय राउत (Sanjay Raut) के राजनीतिक करियर की तो वे शिवसेना संस्थापक एवं सुप्रीमो बाला साहेब और उनके बाद उद्दव ठाकरे के करीबी रहे 57 वर्षीय संजय राउत को शिवसेना की तरफ से 2004 में पहली बार राज्यसभा भेजा गया. 2005 में उन्हें गृह मामलों की समिति, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के लिए सलाहकार समिति का सदस्य बना दिया गया. 2010 में उन्हें शिवसेना की तरफ से दूसरी बार राज्यसभा भेजा गया. इस बार उन्हें बिजली मंत्रालय, खाद्य एवं उपभोक्ता मामले, सार्वजनिक वितरण एवं परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनाया गया. 2016 में उन्हें तीसरी बार राज्यसभा का सदस्य बनाकर भेजा गया. इस दौरान भाजपा-शिवसेना की गठबंधन सरकार महाराष्ट्र की सत्ता पर आसीन थी.
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संजय राउत एक राजनीतिज्ञ के साथ एक लेखक, पत्रकार और फिल्म निर्माता भी हैं. कम ही लोगों को पता है कि संजय राउत 2019 में बाला ठाकरे की जीवनी पर आधारित बायोपिक फिल्म ‘ठाकरे’ के निर्माता भी रहे. इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्धीकी ने बाला साहेब ठाकरे का किरदार निभाया. कुल मिलाकर कहा जाए तो उद्दव ठाकरे को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो और कोई नहीं बल्कि संजय राउत (Sanjay Raut) ही हैं.