राजस्थान (Rajasthan) में बसपा (BSP) के छह विधायकों को कांग्रेस (Congress) में लाने के पीछे सुभाष गर्ग (Subhash Garg) की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास हैं और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के विधायक के रूप में गहलोत सरकार को समर्थन देते हुए मंत्री भी बने हुए हैं. इन खबरों के बीच कई कांग्रेस नेता सवाल उठाने लगे हैं कि सुभाष गर्ग अगर दूसरी पार्टी के विधायकों को कांग्रेस में ला सकते हैं तो खुद कांग्रेस में शामिल क्यों नहीं हो जाते?

विधानसभा चुनावों से पहले सुभाष गर्ग भरतपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. यह ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है, इसलिए पार्टी में ही उनकी दावेदारी का विरोध शुरू हो गया. गर्ग को जब कांग्रेस से टिकट की उम्मीद नहीं रही तो उन्होंने रालोद में शामिल होकर टिकट हासिल किया और चुनाव लड़कर जीत गए. कांग्रेस में उनके शामिल नहीं होने का प्रमुख कारण यह है कि उनका मंत्री पद छिन जाएगा. वह कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर ही चुनाव जीते हैं.

विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने घोषणा की थी कि कांग्रेस किसी भी पार्टी से तालमेल नहीं कर रही है. विधानसभा के चुनाव के बाद बहुमत के मामूली अंतर को पाटने के लिए कांग्रेस को कुछ अन्य विधायकों का समर्थन लेना पड़ा. गहलोत ने गर्ग को उसी कोटे से मंत्री बना दिया. आज गहलोत सरकार में गर्ग की हैसियत कई कांग्रेसी मंत्रियों से ज्यादा है. उन्होंने बसपा विधायकों से संपर्क बनाए रखा और जब गहलोत खेमें का प्रदेश अध्यक्ष बदलने का प्रस्ताव हाईकमान से मंजूर हो गया, उसके बाद बसपा विधायकों कांग्रेस में शामिल होने के लिए हरी झंडी दे दी गई.

नए समीकरण के तहत जब बसपा के छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं तो समर्थकों के कोटे से राजेन्द्र गुढ़ा भी मंत्री पद के दावेदार हो गए हैं. अगर राजेन्द्र गुढ़ा को मंत्री बनाया जाता है तो राजपूत कोटे से एक मंत्री को हटाया जा सकता है. ऐसे में भंवरसिंह भाटी की मंत्रि परिषद से विदाई हो सकती है. कांग्रेस से जुड़े कुछ सूत्र कहते हैं कि चुनाव से पहले टिकट वितरण के दौरान कुछ मजबूत दावेदार टिकट से वंचित होने के बाद अन्य पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े. इनमें एक गहलोत समर्थक बसपा विधायक भी है, जिन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला था.

बहरहाल गहलोत के इस दाव से सचिन पायलट कुछ पीछे हटने पर मजबूर हुए हैं. वह प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन अगर कोई अन्य विधायक कांग्रेस में आता है तो उसको मना नहीं कर सकते. राजस्थान में उनकी राजनीति प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दिवंगत राजेश पायलट के पुत्र होने के नाते है. प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम पर पूरी तरह गहलोत का नियंत्रण है. इससे यह भी साबित हुआ है कि पायलट भले ही प्रदेश अध्यक्ष बने रहें, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति पर गहलोत का ही नियंत्रण है.

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