कर्नाटक संकट देशभर की राजनीति के लिए एक बड़ा झटका है कि रातोरात सत्ताधारी सरकार हासिए पर कैसे आ गई. वजह साफ है- यह बीजेपी और पार्टी के चाणक्य अमित शाह की दूरगामी रणनीति और आक्रामक सोच का परिणाम है कि चुटकी बजाते ही सत्ताधारी को करीब-करीब विपक्ष में बैठाने की तैयारी हो चुकी है. कुछ ऐसा ही कारनामा शायद बीजेपी राज्यसभा में करने की तैयारी कर रही है. बस फर्क सिर्फ इतना है कि राज्यसभा में यह काम एनडीए के बैनर तले किया जा रहा है. समाजवादी पार्टी के नीरज शेखर का इस्तीफा इस दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम हो सकता है.
बीजेपी का आक्रामक रवैया तो हालिया लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाहियों में देखा ही जा रहा है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का असदुद्दीन ओवैसी को भरे सदन में चुप करना और रक्षा मंत्री राजनाथ के विपक्ष पर मारे गए तीखे प्रहार पार्टी का सत्ता में भारी मतों से वापसी का अतिआत्मविश्वास है. बीजेपी का यह चेहरा पिछली मोदी सरकार के वक्त इतना आक्रामक नहीं था जितना इस बार है.
बात करें नीरज शेखर की तो नीरज पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के छोटे पुत्र हैं और उत्तर प्रदेश में पिता की सीट बलिया से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद रह चुके हैं. 2014 की मोदी लहर में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें समाजवादी पार्टी ने तत्काल राज्यसभा सदस्य बनाया. राज्यसभा में उनका कार्यकाल नवंबर 2020 तक का था. नीरज शेखर ने न सिर्फ राज्यसभा बल्कि समाजवादी पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया है. संकेत स्पष्ट हैं कि बीजेपी नीरज शेखर को इसी सीट से फिर राज्यसभा में भेज देगी.
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नीरज शेखर तो सिर्फ शुरुआत है. इसके पीछे का ऐजेंडा तो ये है कि नीरज राज्यसभा से जुड़े कई विपक्ष के नेताओं को कमल के झंडे के नीचे इक्ठ्ठा करने का काम करेंगे. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि नीरज अपना पहला निशाना बसपा के सांसद राजा राम पर साध रहे हैं. एक समय मायावती के आंखों का तारा रहे राजा राम का पार्टी में पहले जैसा राजनीतिक कद नहीं रहा है.
एक दौर था जब रामाराम को मायावती का उत्तराधिकारी समझा जाता था लेकिन अब उन्हें एक किनारे कर दिया गया है. मायावती के भाई आनंद कुमार के पार्टी में हस्तक्षेप के बाद पार्टी के कुछ वरिष्ठ सांसद पहले से ही नाराज चल रहे हैं. ऐसे में बसपा के बचे चारों सांसद अगर बीजेपी से जुड़ जाएं तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए. वहीं समाजवादी पार्टी के दो सांसदों के भी पार्टी छोड़ने की खबरें सियासी गलियारों से आ रही हैं.
यहां ठीक उसी तरह की रणनीति अपनाई जा रही है जैसे कर्नाटक में अपनाई गई थी. कर्नाटक गठबंधन सरकार के 16 विधायकों ने एक साथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर मौजूदा सरकार को अल्पमत के द्वार पर लाकर खड़ा कर दिया है. हालांकि इस्तीफों पर फैसला आना बाकी है.
वैसे यह सवाल सभी के मन में होगा कि प्रदेश स्तर तक तो ठीक है लेकिन राज्यसभा सांसद तोड़कर बीजेपी को क्या मिलेगा. इसका सीधा सा जवाब है कि राज्यसभा में बहुमत न होने से मोदी सरकार के कई बिल पास नहीं हो पा रहे हैं. मौजूदा सरकार के पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत है. ऐसे में वहां कोई भी बिल पास कराना बड़ा काम नहीं है लेकिन वहां से निकल कर ये बिल राज्यसभा में अटक जाते हैं. तीन तलाक बिल का यही हाल है. इस बिल पर विपक्ष तो छोड़िए, बिहार में सहयोगी पार्टी जेडीयू तक विरोध कर रही है.
राज्यसभा में कुल 245 सांसद होते हैं जिसमें से पांच सीटें फिलहाल खाली हैं. इस हिसाब से बहुमत के लिए 121 सांसद चाहिए. बीजेपी और उनके सहयोगी घटक यानी एनडीए के पास 116 सांसद हैं यानी बहुमत से सिर्फ 5 कम. अब बीजेपी इसी कमी को दूर करने की कोशिशों में लगी है.
हालांकि पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए एनडीए को ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. उत्तर प्रदेश में अगले साल यानि नवंबर, 2020 तक राज्यसभा की करीब 10 सीटें खाली होंगी. इनमें नीरज शेखर की सीट भी शामिल है. प्रदेश में संख्याबल के हिसाब से बीजेपी के खाते में कम से कम 9 सीटें आएंगी. इसका सीधा मतलब ये होगा कि नीरज शेखर की जो सीट सपा के पास थी, वो बीजेपी के खाते में आ जाएगी. ये सारी सीटें आने के बाद एनडीए के पास राज्यसभा में भी पूर्ण बहुमत होगा.
लेकिन शायद बीजेपी इससे कहीं ज्यादा सोच रही है. इसकी झलक गोवा में दिखी है. 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा में बीजेपी के 17 विधायक हैं. यहां बीजेपी की गठबंधन सरकार है. हाल ही में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने बीजेपी ज्वॉइन की है. ऐसे में बीजेपी के विधायकों की संख्या 27 जा पहुंची है जहां से कोई उन्हें हिला नहीं सकता. इसके बाद उन्होंने गठबंधन मंत्रियों को साइड लाइन कर नए विधायकों को मंत्री पदों पर बिठाया.
इसी तरह का कुछ करने की मंशा बीजेपी की राज्यसभा में भी है. एनडीए के बैनर के अलावा, बीजेपी के झंडे के नीचे जितने ज्यादा सांसद रहेंगे, पार्टी को उतना ही फायदा होगा. अगर बीजेपी सांसदों का संख्याबल अधिक होगा तो जेडीयू की तरह विरोध होने के बाद भी पार्टी को अपने बिल पास कराने में परेशानी नहीं होगी.
अब देखना ये होगा कि बीजेपी की नीरज शेखर के अलावा और कितने सांसदों को तोड़कर अपनी पार्टी में लाती है और नीरज शेखर कितने सांसदों को बीजेपी या फिर एनडीए के झंडे के नीचे लाने में सफल होते हैं.