राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी. जिन्हें पहचान मिली राजेश पायलट के नाम से. वो शख्स जिस पर खेलने-कूदने के दिनों में ही अपने सपनों को मंजिल तक पहुंचाने का जुनून सवार हो गया. उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के छोटे से गांव बैदपुरा में 10 फरवरी 1945 को एक बेहद साधारण किसान परिवार में राजेश पायलट का जन्म हुआ. गांव में यह बालक खूब खेलता-कूदता था, आम बच्चों की तरह गांव में दोस्तों के संग खूब मस्ती करता था. लेकिन पिता का साया उठने के बाद वो सब कुछ भूल गया और चला आया चचेरे भाई नत्थी सिंह के साथ दिल्ली में. दिल्ली ने पायलट की जिंदगी को एक प्रकार से पंख लगा दिए और उसकी तकदीर व किस्मत बदल दी.

दिल्ली के पॉश इलाके 112, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड की कोठी राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी का ठिकाना बनी. यह कोठी उनके संघर्ष की गवाह थी. यहां पर उन्होंने चाचा की डेयरी में मवेशियों की सार-संभाल का काम शुरु किया. सुबह जल्दी उठकर मवेशियों को चारा खिलाना, नहलाना और फिर उनके दूध को दिल्ली के बंगलों में देकर आता. दूध बेचने के साथ-साथ राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के सरकारी स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे. इस दौरान वे एनसीसी में शामिल हो गए, क्योंकि वहां पहनने के लिए यूनिफॉर्म जो मिल जाती थी.

परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और एयरफोर्स में भर्ती हो गए. वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर 15 वर्षों की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वाड्रन लीडर बने. उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिला. लेकिन लुटियन जोंस के बंगलों में बचपन में दूध बेचने वाले राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी को किस्मत वापस उन्हीं बंगलों तक ले जाना चाहती थी, जहां वे कभी दूध बेचा करते थे.

हालांकि इंदिरा गांधी ने राजनीति में नहीं आने की सलाह दी थी. राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट बताती हैं, ‘इंदिरा जी ने कहा कि इस्तीफा देने की सलाह नहीं दूंगी. फोर्स में क्या फ्यूचर है. राजनीति में क्यों आना चाहते हो?’ इस पर राजेश पायलट ने कहा कि वे चौधरी चरण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं तब ‘इंदिरा जी बोलीं कि तुम बागपत से टिकट मांग रहे हो, वह तो सारा जाटों का इलाका है. पता है न कि वहां तो चुनावों में लाठियां चल जाती हैं.’ राजेश जी बोले,‘मैडम मैं बम चला चुका हूं, तो क्या लाठियों का सामना नहीं कर पाऊंगा?’

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राजनीति में आने के लिए 1979 में नौकरी छोड़ दी, लेकिन चुनाव का समय आया तो कांग्रेस से टिकट मिलने की आस धुंधली पड़ती जा रही थी. मगर संजय गांधी के फोन ने उनकी किस्मत बदल दी. पार्टी ने उन्हें भरतपुर से चुनावी मैदान में उतारा. वे जब भरतपुर में कांग्रेस का पर्चा दाखिल कर रहे थे, तो वहां के कार्यकर्ताओं ने उनसे निवेदन किया कि वे अपने नाम के साथ पायलट लिखें. उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करके राजेश पायलट के नाम से परचा भरा और जब वो बाहर निकले तो ‘पायलट जिंदाबाद’ के नारे लग रहे थे. उन्होंने भरतपुर की सीट से वहां के पूर्व राजपरिवार की महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता.

भरतपुर में चुनाव प्रचार के दौरान राजेश पायलट के पास उतने पैसे नहीं थे कि वह जगह-जगह जाकर अपनी बात कर सकें. तब के पार्टी कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी के कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाने पर कुछ रकम प्राप्त हुई और वह भी स्टांप पेपर पर दस्तख्त करवाने के बाद. लेकिन राजेश पायलट को उनके समर्थकों ने पूरा सहयोग दिया. उनका चुनावी खर्च चलता रहा और जीत भी हासिल की. इस चुनाव के बाद राजेश पायलट ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक जनसंचार मंत्री रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे.

आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहते हुए राजेश पायलट ने विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी को गिरफ्तार करवाया. उस समय राजनीति में चंद्रास्वामी की तूती बोलती थी. उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का करीबी माना जाता था. बड़े-बड़े मंत्री और अधिकारी उनके सामने दंडवत होते थे. ऐसे में उनके खिलाफ जांच करे तो करे कौन. कार्रवाई करे तो करे कौन. राजेश पायलट ने उस वक्त कहा था कि ‘चाहे मुझे जेल जाना पड़े, लेकिन ये खेल खत्म होगा.’ पायलट ने चंद्रास्वामी के खिलाफ न सिर्फ जांच बैठाई, बल्कि गिरफ्तारी भी हुई. पायलट के इस एक्शन पर खूब बवाल मचा, लेकिन आखिरकार इससे उनकी छवि मजबूत हुई.

राजेश पायलट को देश की सियासत में अभी बहुत कुछ कर गुजरने की ललक थी, लेकिन महज 55 साल की आयु में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. उनके बेटे सचिन पायलट वर्तमान में राजस्थान में कांग्रेस के कप्तान होने के साथ-साथ प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं. इससे पहले वे केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. सचिन अपने पिता की तरह लाल रंग की चूनड़ी का साफ पहनते हैं और ‘राम-राम सा’ संबोधन से लोगों से जुड़ते हैं. पिता की तर्ज पर सचिन भी अपने नाम के आगे पायलट लगाते हैं.

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