Politalks.News/Rajasthan. जैसे-जैसे 14 अगस्त नजदीक आ रही है, राजस्थान की सियासत में हर किरदार अपनी नई कहानी लिख रहा है. लेकिन पिछले कुछ घण्टों में तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम पर गौर करें तो अब विधानसभा सत्र से पहले ही इस सियासी घमासान का पटाक्षेप हो जाएगा. सत्ता के की इस घनचकरी वाले खेल में सचिन पायलट अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं. जानकारों की मानें तो सचिन पायलट कुछ विधायकों के साथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देंगे, वहीं ज्यादातर विधायक वापस मुख्यमंत्री गहलोत की शरण में लौट आएंगे.
लगभग एक महीने से मीडिया सहित पार्टी आलाकमान से दूरी बनाए रखने वाले सचिन पायलट सोमवार को अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने की सैकंड-लास्ट कोशिश करते हुए राहुल गांधी से मुलाकात करने पहुंचे, जहां प्रियंका गांधी और केसी वेणुगोपाल भी मौजूद थे. लगभग डेढ़ घण्टे चली इस मुलाकात के बाद खबरें आईं की सचिन पायलट ने कुछ शर्तें पार्टी के सामने रखी हैं. सूत्रों की मानें तो पायलट ने अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहने पर आपत्ति जताई है, लेकिन इस पर पार्टी आलाकमान की तरफ से दो टूक जवाब पायलट को दिया गया है कि इस तरह की किसी भी गैर-जरूरी शर्त उनकी नहीं मानी जाएगी.
इस मुलाकात के बाद पायलट की कुछ शर्तों के साथ राहुल और प्रियंका सोनिया गांधी के पास पहुंचे. तीनों की मुलाकात के बाद अब पायलट खेमे के वापसी को लेकर उनकी मांगों को तय करने की जिम्मेदारी अहमद पटेल को दी गई है. ऐसे में सूत्रों की मानें तो सचिन पायलट को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी. ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर सचिन पायलट अब करेंगे क्या?
सचिन पायलट खेमे के लिए मुश्किल यह है कि उनके द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद उनका पूरा राजनीतिक भविष्य दाव पर लग चुका है. उनके साथ कांग्रेस के 18 विधायकों के लिए भी मुश्किल खड़ी हो चुकी है. जानकार सूत्र बता रहे हैं कि इस पूरे राजनीतिक घमासान की शुरूआत करने वाले पायल्ट खेमे के लिए “आगे कुआ, पीछे खाई वाली” स्थिति बन चुकी है.
कैसे, आइए समझते हैं
- लगभग एक महीने पहले पायलट 18 विधायकों को लेकर हरियाणा के मानेसर पहुंच गए. कांग्रेस ने विधायक दल की बैठक में बुलाया तो नहीं आए. उनके लिए अगले दिन फिर से विधायक दल की बैठक रखी गई, लेकिन नहीं आए.
- कांग्रेस मुख्य सचेतक महेश जोशी ने व्हिप जारी किया. उस पर विधानसभा स्पीकर ने पायलट खेमे को अयोग्य करने संबंधी नोटिस थमा दिया.
- पायलट खेमा स्पीकर के नोटिस की वैधानिकता को लेकर कोर्ट पहुंच गया. कोर्ट ने स्पीकर के नोटिस पर स्टे कर दिया. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में तय होना है.
अब पायलट के लिए आगे क्या?
यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्पीकर के पक्ष में आया तो पायलट सहित 18 विधायकों की विधायकी समाप्त हो जाएगी. लेकिन सवाल उठता है कि यदि फैसला पायलट खेमे के पक्ष में आया तो क्या होगा? तो यह खेमा 14 अगस्त को होने वाले विधानसभा सत्र में कांग्रेस विधायक के तौर पर भाग ले सकता है लेकिन चूंकि यह विधानसभा सत्र है और गहलोत सरकार बहुमत साबित करने की तैयारी कर रही है, ऐसे में कांग्रेस के मुख्य सचेतक एक बार फिर से व्हिप जारी करेंगे. और व्हिप जारी होगा तो पायलट खेमे को गहलोत सरकार के पक्ष में मतदान करना ही पड़ेगा, मतदान करते हैं तो सरकार का बहुमत बहुत आसान हो जाएगा. लेकिन अगर पक्ष में मतदान नहीं करते हैं तो व्हिप के उल्लघंन के मामले में वही दल बदल कानून लागू होगा, विधायकी जाएगी और 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित हो जाएंगे. यानि जहां से चले, वहीं पहुंचे, वाली बात हो जाएगी.
सचिन पायलट सहित कुछ विधायक देंगे पार्टी से इस्तीफा, बाकी के लौट आएंगे गहलोत के पास
राजनीति के जानकारों और विश्वस्त सूत्रों की मानें तो अपना राजनीतिक भविष्य बचाने की आखिरी कोशिश के तहत सचिन पायलट के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देंगे. वहीं ज्यादातर पायलट खेमे के विधायक वापस लौट आएंगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास. ऐसा इसलिए कि सचिन पायलट के पास सिर्फ तीन विकल्प हैं: –
1. अपने स्वाभिमान से समझौता करके सचिन पायलट पार्टी में वापसी करें और जो भी मुख्यमंत्री गहलोत चाहें वो विभाग लेकर चुप रहें, जो कि सचिन पायलट के स्वभाव के बिलकुल विपरीत बात है. यानी ऐसा होने की संभावना नगण्य है. वापस लौटकर सचिन पायलट नहीं कर सकते अपने स्वाभिमान से समझौता.
2. जिस बीजेपी के भरोसे पर सचिन पायलट ने इतना बड़ा कदम उठाया उस बीजेपी को सचिन पायलट से कोई सरोकार नहीं था, मतलब था तो उनके साथ आने वाले संख्याबल से था, जोकि आया नहीं. ऐसे में पायलट के साथ मौजूद वर्तमान को संख्याबल के हिसाब से अब पायलट खेमे की कोई जरूरत नहीं है बीजेपी.
3. सचिन पायलट तीसरा खेमा बनाएं, लेकिन तीसरा मौर्चा बनाना और उसे सफल करने जैसी स्थिति में नहीं है अभी पायलट खेमा.
4. वहीं अगर सचिन पायलट विधानसभा सत्र में आकर पार्टी के विरुद्ध वोटिंग करते हैं, तो उन्हें कर दिया जाएगा पार्टी से निष्कासित और साथ में 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर भी बैन लग जाएगा.
इसलिए यह कहा जा सकता है कि सचिन पायलट के लिए अपना राजनीतिक भविष्य बचाने का सबसे बेहतर उपाय होगा इस्तीफा देना. इस्तीफा देने के बाद होने वाले उपचुनाव में जीत दर्ज करें और एक बार फिर अपनी उपयोगिता को साबित करें. लेकिन यहां वो कहावत चरितार्थ हो जाएगी ‘पूरी के चक्कर में आधी से भी गए पायलट’.