पूरे भारत में मणिपुर के बाद राजस्थान में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाने वाली गहलोत सरकार के लिए यह परीक्षा का समय है. एक तरफ पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले के आरोपियों की रिहाई के बाद केस फिर से खोलने के लिए एसआईटी का गठन हो रहा है, जबकि हाल ही अलवर जिले में ही भीड़ की पिटाई से हुई एक युवक की मौत को पुलिस मॉब लिंचिंग नहीं मान रही है. इससे राजस्थान की गहलोत सरकार पर फिर से अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के आरोप लगने लगे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक दैनिक अखबार से बातचीत में कहा है कि प्रदेश सरकार वर्ग विशेष के लिए काम कर रही है. गहलोत सरकार एक तरफ तो मॉब लिंचिंग के लिए कानून बना रही है, पहलू खान मामले की दोबारा जांच करा रही है वहीं, दूसरी तरफ अलवर के ही हरीश जाटव मॉब लिंचिंग मामले में एक्शन नहीं ले रही है.

वहीं भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी ने कहा है कि कांग्रेस के नेताओं और सरकार के दिमाग में वोट और जातियां भरी हुई हैं. अलवर के ही हरीश जाटव मॉब लिंचिंग मामले में दूसरा पक्ष मेव समाज था, इसलिए गहलोत सरकार इसे मॉब लिंचिंग नहीं मान रही. लेकिन पहलू खान मामले में सामने वाला हिंदू है, इस वजह से यह मॉब लिंचिंग हो गई. यह कैसा दोहरा मापदंड है? मुस्लिम तुष्टिकरण की यही नीति कांग्रेस को ले डूबी है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को अपने निवास पर प्रेस कांफ्रेंस की थी और विस्तार से बताया था कि पहलू खान मामले में आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए सरकार क्या करने वाली है. यह प्रेस कांफ्रेंस उन्होंने राजीव गांधी जन्मोत्सव समारोह के सिलसिले में बुलाई थी. इस प्रेसवार्ता में भी सीएम गहलोत ने हरीश जाटव की मौत के बारे में कुछ नहीं बोला, बस पहलू खान के मामले में ही बोलते हुए पिछली वसुंधरा राजे सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार के दौरान अपराध बढ़ रहे थे, कानून-व्यवस्था बिगड़ गई थी.

गहलोत सरकार की सुधरी हुई कानून-व्यवस्था के तहत 16 जुलाई की शाम को अलवर जिले के फलसा गांव में यह हादसा हुआ जब झिवाणा निवासी हरीश जाटव की बाइक एक महिला हकीमन से टकरा गई थी. स्थानीय लोगों ने उसे जमकर पीटा. उसे गंभीर अवस्था में भिवाड़ी अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया. वहां उसकी मौत हो गई थी. 28 वर्षीय हरीश जाटव के नेत्रहीन पिता रतिराम पुलिस थाने के चक्कर लगाते रहे कि उनके बेटे को मारने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, लेकिन पुलिस के कान पर जूं नहीं रेंगी. रतिराम ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए और पुलिस के पक्षपाती रवैये से दुखी होकर गुरुवार 15 अगस्त को जहर खाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस के रवैये के खिलाफ अपने प्राण त्यागने के लिए उसने स्वतंत्रता दिवस का दिन चुना.

रतिराम की मौत से स्वतंत्रता दिवस समारोहों में कोई खलल नहीं पड़ा. गहलोत सरकार ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बना दिया है, इसका प्रचार होता रहा. हरीश जाटव की मौत भीड़ के हमले में हो गई थी. उसके पिता ने आत्महत्या कर ली. हरीश की पत्नी गर्भवती है और उसकी चार बेटियां पहले से है. कैसे जीवन चलेगा, इससे किसी को क्या मतलब हो सकता है? घटनाक्रम से आहत परिजनों के साथ दलित समाज के लोगों ने टपूकड़ा में सीएचसी के सामने धरना देकर रतिराम के शव को लेने से मना कर दिया, तब मीडिया का और अन्य राजनीतिक पार्टियों का ध्यान इस तरफ गया. भाजपा नेता धरना स्थल पर पहुंचे. अलवर सांसद बालक नाथ ने टपूकड़ा पहुंचकर पीड़ित परिजनों को ढाढ़स बंधाया. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए सरकार के रवैये की आलोचना की.

मामला ज्यादा गरम होते देखकर प्रशासन सक्रिय हुआ. रविवार को अलवर कलेक्टर इंद्रजीत सिंह टपूकड़ा पहुंचे. हरीश और रतिराम के परिजनों से मिले. कोरी सहानुभूति जताई. उनकी एक भी मांग नहीं मानी. आश्वासन दिया कि उनकी मांगें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक पहुंचा देंगे. अपने पूरे प्रशासनिक कौशल का उपयोग करते हुए उन्होंने पीड़ित परिजनों और धरने पर बैठे दलितों को धरना समाप्त करने के लिए मना लिया और इस तरह तीन दिन बाद रविवार को रतिराम का पोस्टमार्टम हुआ.

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इतना सबकुछ होने के बाद यह सवाल अभी भी कायम है कि हरीश जाटव की मौत का जिम्मेदार कौन? क्या पुलिस किसी को अपराधी मानती है? नहीं मानती है तो मौत कैसे हुई? पुलिस ही उसे घायल अवस्था में अस्पताल ले गई थी? डॉक्टरों ने मौत का कोई न कोई कारण तो बताया ही होगा? क्या हरीश खुद अपना सिर सड़क से भिड़ाकर मर गया? पुलिस अधीक्षक परिघ देशमुख प्रेस कांफ्रेस कर स्पष्ट रूप से मान चुके हैं कि यह मॉब लिंचिंग की घटना नहीं है. तो ऐसे में सरकार बताए ये फिर क्या है?

गहलोत सरकार ने हाल ही राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक-2019 विधानसभा से पारित कराया है. इसमें धर्म, जाति, भाषा, राजनीतिक विचारधारा, समुदाय और जन्म स्थान के नाम पर भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा को उन्मादी हिंसा माना गया है. इसमें दो या दो से ज्यादा व्यक्ति को उन्मादी हिंसा की परिभाषा में शामिल किया गया है. इसमें आरोपियों से जुर्माना वसूलकर पीड़ित को देने का भी प्रावधान है. हरीश जाटव की मौत के पीछे इनमें से कोई प्रावधान लागू होता है या नहीं? जाटव की बाइक सड़क पार कर रही महिला से टकराई थी. वह सीधे जा रहा था, सामने से महिला सड़क पार कर रही थी. टक्कर हो गई. इसमें महिला को मामूली चोट आई. कोई जनहानि नहीं हुई. लोगों की पिटाई से हरीश जाटव की मौत हो गई. अगर मॉब लिंचिंग नहीं है तो मौत कैसे हुई?

फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजीव गांधी जन्मोत्सव मनाने में व्यस्त हैं और टपूकड़ा में धरना दे रहे पीड़ित परिवार को समझा बुझाकर घर भेज दिया गया है. इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का भी कोई बयान नहीं आया है. भाजपा नेताओं के आरोपों का गहलोत सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.

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जो सरकार पहलू खान के हत्यारों को सजा दिलाने का संकल्प दिखा रही है, उसके पास हरीश जाटव के परिवार के लिए सांत्वना के दो शब्द भी नहीं हैं. बाप, बेटे दोनों चले गए. बेटे को उन्मादी भीड़ ने मार डाला. पिता ने पुलिस के पक्षपात से दुखी होकर आत्महत्या कर ली. मुख्यमंत्री गहलोत कहते हैं, पिछली भाजपा सरकार के दौरान कानून-व्यवस्था बिगड़ गई थी. अगर उनके राज में कानून-व्यवस्था सुधरी हुई है तो रतिराम को स्वतंत्रता दिवस के दिन आत्महत्या करने की जरूरत क्यों पड़ी?

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