राजस्थान (Rajasthan) के राज्यपाल कल्याण सिंह (Governer Kalyan Singh) की 3 सितम्बर को कार्यकाल समाप्त होने के बाद मुश्किलें बढ़ सकती है. कल्याण सिंह को अयोध्या (Ayodhya) में बाबरी मस्जिद विध्वंस (Babri Masjid Demolition) के मामले में आपराधिक साजिश (Criminal Conspiracy) मुकदमे (Case) का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल 3 सितंबर को कार्यकाल पूरा होने के बाद कल्याण सिंह को राज्यपाल के रूप में सुनवाई से मिली संवैधानिक छूट (Constitutional Exemption) भी खत्म हो जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने CBI को आदेश दिया था कि जैसे ही कल्याण सिंह राज्यपाल के पद से हटते हैं उन्हें के तुरंत बाद आरोपी के तौर पर पेश किया जाए. संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान आपराधिक तथा दीवानी मामलों से छूट दी गई है और इसके अनुसार, कोई भी कोर्ट किसी भी मामले में राष्ट्रपति या राज्यपाल को पेश होने के लिए नहीं कह सकती है.

गौरतलब है कि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का 5 वर्षीय कार्यकाल 3 सितम्बर को पूरा हो रहा है. उसके बाद कलराज मिश्रा राजस्थान के नए राज्यपाल के तौर पर पदभार ग्रहण करेंगे. कल्याण सिंह को 3 सितंबर, 2014 को राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया था. अब कल्याण सिंह फिर से सक्रिय राजनीति में लौटने की सोच रहे हैं. बताया जा रहा है कि वे 5 सितंबर को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और स्वतंत्र देव सिंह के समक्ष बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करेंगे. लेकिन उसके बाद से कल्याण सिंह की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं!

बता दें, कि 19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ बाबरी मस्जिद मामले में आपराधिक साजिश के आरोपों में मुकदमा चलाने का आदेश दिया था. कल्याण सिंह के राजस्थान के राज्यपाल होने की वजह से वे मुकदमे का सामना करने से बच गए. संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपालों पर उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी तरह का आपराधिक क्रिमिनल या सिविल केस नहीं चलाया जा सकता है और न ही समन भेजा जा सकता है.

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6 दिसंबर, 1992 को जब बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराया गया था, उस वक्त कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे. उसके बाद कल्याण सिंह की सक्रिय राजनीति में भागीदारी बिलकुल खत्म सी हो गयी. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 5 जनवरी, 1932 को जन्में और संघ की गोद में पले बढ़े कल्याण सिंह एक जमाने में बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते थे और यूपी में बीजेपी का एक अहम चेहरा रहे. उनकी पहचान कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी और प्रखर वक्ता रही. यही वजह रही कि वे दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे.

अयोध्या आंदोलन ने बीजेपी के कई नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में एक पहचान दी जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती शामिल हैं लेकिन इनमें सबसे बड़ी कुर्बानी कल्याण सिंह ने दी. कल्याण बीजेपी के इकलौते नेता थे, जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद अपनी सत्ता को बलि चढ़ा दिया था. उन्होंने यूपी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने राम मंदिर के लिए सत्ता ही नहीं गंवाई, बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वे एकमात्र शख्स भी रहे.

जानकर सूत्रों का कहना है, ‘चूंकि, राज्यपाल के तौर पर सिंह का कार्यकाल खत्म हो रहा है. अगर सरकार उन्हें किसी अन्य संवैधानिक पद पर नियुक्त नहीं करती तो उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।’ बता दें, जनवरी, 2015 से 12 अगस्त, 2015 के बीच कल्याण सिंह ने राजस्थान के साथ हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल पद का दायित्व भी निभाया. वे राजस्थान के एकमात्र राज्यपाल हैं जिन्होंने गर्वनर के तौर पर अपने पूरे 5 वर्ष पूरे किए.

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