Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान उच्च न्यायालय ने प्रदेश में लाखों अभिभावकों को बड़ी राहत देते हुए निजी स्कूलों की फीस वसूली पर रोक लगा दी है. कोरोना काल में हाईकोर्ट का ये फैसला अभिभावकों के लिए अंतरिम राहत लेकर आया है. स्कूल फीस वसूली मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहंती और जस्टिस महेन्द्र गोयल की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए 9 अक्टूबर तक रोक लगा दी है. कोर्ट मामले की अंतिम सुनवाई 5 अक्टूबर को करेगी जिसमें खंडपीठ इससे जुड़े सभी मामलों की एक साथ सुनवाई करेगी. हाईकोर्ट के फैसले के बाद निजी स्कूलों के मालिक किसी भी रूप से अभिभावकों से फीस की वसूली नहीं कर सकेंगे.
सरकार की ओर से पैरवी करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश महर्षि ने बताया कि हाईकोर्ट के आज के आदेश से अब राज्य सरकार के 7 अप्रेल और 9 जुलाई के फीस स्थगन के आदेश प्रभावी हो गए हैं. इसके तहत अब कोई भी स्कूल अभिभावकों से फीस वसूल नहीं कर सकती है. उन्होंने बताया कि कल जारी हुई अनलॉक-5 की गाइडलाइन के अनुसार राज्य सरकार फीस को लेकर नई पॉलिसी बनाने जा रही है. सरकार किसी भी स्कूल के खिलाफ नहीं है और राज्य सरकार की पॉलिसी में सभी पक्षों को ध्यान में रखा जाएगा.
गौरतलब है कि गत मार्च माह से ही स्कूलें बंद हैं, लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों से फीस की वसूली की जा रही थी. हाईकोर्ट के एकल पीठ के आदेश के बाद प्राइवेट स्कूलों के मालिक अभिभावकों से जबरन फीस वसूली कर रहे थे. ऐसे में जो अभिभावक फीस देने में असमर्थ थे, उसे बच्चे की टीसी थमाई जा रही थी. प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों के मालिकों ने पूर्व में जुलाई माह तक एडवांस फीस ले रखी थी और अगले छह माह की फीस जमा करवाने का दबाव बनाया जा रहा था. लॉकडाउन और कोरोना संकट की जटिल स्थिति में भी निजी शिक्षण संस्थानों के मालिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के आदेश की पालना तक नहीं कर रहे थे. इन जैसी कई शिकायतों के बाद सरकार ने भी लॉकडाउन के दौरान फीस वसूलने पर रोक लगा दी थी.
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इसके बाद जस्टिस एसपी शर्मा की एकलपीठ में कैथोलिक एजुकेशन सोसायटी, प्रोग्रेसिव एजुकेशन सोसायटी और अन्य की याचिकाओं के जरिए करीब 200 स्कूलों ने राज्य सरकार के फीस स्थगन के 9 अप्रैल और 7 जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी. राज्य सरकार के इन आदेशों से निजी स्कूल फीस चार्ज नहीं कर पा रहे थे. निजी स्कूलों की ओर से कहा गया था कि निजी स्कूल सीबीएससी के निर्देश से अप्रैल माह से ही स्टूडेंट्स को ऑनलाइन क्लासेज दे रहे हैं.
स्कूलों की ओर से इस बात का भी हवाला दिया गया है कि लॉकडाउन में भी स्कूल टीचर्स को पूरा भुगतान कर रही है. बच्चों की फीस चार्ज नहीं कर पाने से निजी स्कूलों को बड़ा नुकसान हो रहा है. ऐसे में राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगाई जाये. इस पर फैसला देते हुए कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाने से तो इनकार कर दिया था, लेकिन स्कूलों को यह छूट दे दी थी कि वे अपनी ट्यूशन फीस का 70 प्रतिशत अभिभावकों से चार्ज कर सकती है. अभिभावकों को तीन किस्तों में स्कूल को फीस की अदायगी करने की बात कही गई थी.
इस मामले में राज्य सरकार ने भी अपील दायर की है. सरकार ने अपील में कहा है कि एकल पीठ ने निजी स्कूलों को 70 फीसदी ट्यूशन फीस वसूलने का जो आदेश दिया है, उसका कोई आधार नहीं बताया है जबकि निजी स्कूलों ने आरटीई व फीस रैग्युलेशंस का उल्लंघन करते हुए फीस तय की है. प्रदेश सरकार की ओर से ये भी कहा गया कि अदालत में निजी स्कूलों ने कोविड19 के दौरान उनके हुए खर्चों का भी ब्यौरा प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए एकलपीठ का आदेश रद्द किया जाए.
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दोनों ओर की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने फिलहाल सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अभिभावकों को एक हफ्ते की राहत दी है. खंडपीठ ने निजी स्कूलों की फीस वसूली पर 9 अक्टूबर तक रोक लगा दी. मामले की अगली और अंतिम सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी जिसमें खंडपीठ इससे जुड़े सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की जाएगी. हाईकोर्ट के फैसले के बाद निजी स्कूलों के मालिक किसी भी रूप से अभिभावकों से फीस की वसूली नहीं कर सकेंगे.