राजभवन के नाम से VCs को जबरन किताबें-बिल थमाने के साथ बीजेपी के प्रचार को लेकर उठे सवाल

राज्यपाल की आत्मकथा से जुड़ी इस पुस्तक को लेकर एक संस्था आईआईएमई द्वारा प्रदेश के विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर मनमाने दामों पर किताब बेचने और पुस्तक में पीएम मोदी और अमित शाह के साथ बीजेपी के चिन्ह कमल की फोटो और भाजपा ज्वॉइन करने की अपील का ज़िक्र करने को लेकर गरमाया मामला

राज्यपाल की किताब खरीदने के लिए कुलपतियों पर दबाव
राज्यपाल की किताब खरीदने के लिए कुलपतियों पर दबाव

Politalks.News/Rajasthan. राज्यपाल कलराज मिश्र की आत्मकथा “निमित मात्र हूं मैं..” का 1 जुलाई को पुस्तक का विमोचन समारोह कराया गया था. इस किताब का संपादन डीके टकनेत और गोविंदराम जायसवाल ने किया. पुस्तक विमोचन समारोह में राज्यपाल मिश्र के साथ सीएम अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी शामिल हुए. इसी समारोह में राज्य के 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भी हिस्सा लिया. राज्यपाल की आत्मकथा से जुड़ी इस पुस्तक को लेकर एक संस्था आईआईएमई द्वारा प्रदेश के विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर मनमाने दामों पर किताब बेचने मामला गरमा गया है. वहीं कलराज मिश्र की बायोग्राफी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बीजेपी के चिन्ह कमल की फोटो और भाजपा ज्वॉइन करने की अपील का ज़िक्र करने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

दरअसल, बीती 1 जुलाई को उक्त पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के बाद कुलपतियों की गाड़ियों में ड्राइवर के जरिए बायोग्राफी की 20- 20 प्रतियां थमा दी गईं. जिसमें एक कॉम्पलीमेंट्री और उन्नीस पुस्तकों का बिल बनाया गया. बिल में और भी किताबों का जिक्र किया गया, जिसे मिलाकर बिल में 68 हजार 383 रुपए राशि शामिल थी. इसे लेकर कुलपतियों में चिंता बढ़ गई कि वे इन बिलों को कैसे एडजस्ट करेंगे या फिर बिलों की यह रकम कैसे चुकाएंगे. सभी किताबों की कीमत गिने तो कुल 18 लाख 46 हजार 331 रुपए होती हैं. इस पर कुलपतियों का कहना है कि राजस्थान ट्रांसपरेंसी इन पब्लिक प्रोक्यूरमेंट आरटीपीपी एक्स के तहत खरीद के नियम पहले से स्पष्ट हैं. यूनिवर्सिटी इन किताबों की खरीद कैसे कर सकती है.

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वहीं इस पूरे मामले में राजभवन से बयान जारी कर स्प्ष्ट किया कि यह मुख्य रूप से प्रकाशक आईआईएमई, शोध संस्थान और खरीदने वाले के बीच का मामला है. प्रकाशक ने पुस्तक प्रकाशित कर राजभवन में उसके लोकार्पण की अनुमति मांगी थी, जो उन्हें दी गयी. पुस्तक से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों में राजभवन की कोई भूमिका और संबद्धता नहीं हैं. बता दें, आईआईएमई संस्था का पूरा नाम इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप है. जिसके नाम से पहले भी कई सरकारी यूनिवर्सिर्टीज को किताबें बेची गई हैं.

बताया जा रहा है कि बीते साल जनवरी में भी पुस्तकों की बिक्री की गई थी. एक विश्वविद्यालय को तो 2,03750 की कीमत की पुस्तकें बेची गई. इससे बाकी यूनिवर्सिटीज का आकलन किया जा सकता हैं. उन पत्रों में भी राजभवन का जिक्र किया गया. यह संस्था खुद को ऑटोनॉमस, मल्टी डिस्पलनरी रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन बताता हैं. इस NGO का दावा है कि वह कई विषयों पर 30 से ज्यादा पुस्तकों को प्रकाशित कर चुके हैं और बीते 24 सालों से कार्यरत हैं. संस्था दावा करती है कि केन्द्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आईआईएमई को एक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन (एसआईआरओ) के रूप में मान्यता प्रदान की है.
किसी यूनिवर्सिटी को आपत्ति है तो किताबें वापस कर सकता है.

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आईआईएमई संस्था के मानद निदेशक और राज्यपाल की आत्मकथा के सह लेखक डीके टकनैत का कहना है कि इससे पहले भी कुलपतियों को पुस्तकें भिजवाई गई, लेकिन इसमें राजभवन का नाम लेकर पुस्तकों की बिक्री नहीं की गई. इन किताबों के बिलों को लेकर भी यह कहा कि रिसर्च की कीमत किताबों में जोड़ी गई हैं. उन्होंने कहा कि यदि किसी यूनिवर्सिटी को आपत्ति है तो किताबें लौटाई जा सकती हैं. हालांकि उन्होंने कैमरे पर आने से फिलहाल इनकार किया.

इधर, दूसरी ओर यह मामला राजनीतिक रंग भी लेता दिखाई दे रहा हैं. इसी पुस्तक में पेज- 116 में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के फोटो और बीजेपी के चुनाव चिन्ह के साथ लिखा है कि, “नए भारत को बनाने में हमारे आंदोलन को समर्थन दें, पार्टी ज्वाईन करें और इस मिशन में हमें मजबूत बनाएं, एक भारत, श्रेष्ठ भारत…” इसको लेकर कांग्रेस ने भी राजभवन पर निशाना साधा है तो दूसरी ओर बीजेपी इस मामले में राज्यपाल का बचाव करने में जुटी हुई हैं. बहरहाल, इस पूरे मामले में राज्यपाल के नाम से किताबों की खरीद फरोख्त करने से राज्यपाल को लेकर सवाल खड़े कर दिए गए हों. लेकिन आईआईएमई संस्था के खिलाफ क्या खुद राजभवन भी कोई कार्रवाई करेगा, जो राजभवन का नाम लेकर विश्वविद्यालयों को जबरन किताबें और बिल थमा रही हैं. क्योंकि इससे कहीं ना कहीं राजभवन की प्रतिष्ठा पर जरूर आंच आई हैं.

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