Politalks.News/Rajasthan. पंजाब और उत्तराखंड जैसे चुनावी राज्यों में कांग्रेस में खींचतान मिटाने के फैसले के बाद राजस्थान की बारी आ ही गई है. राजस्थान में कांग्रेस हाईकमान अब जल्दी ही मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक और संगठनात्मक नियुक्तियों का काम खत्म करने की कवायद में है. आलाकमान के निर्देश पर संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी अजय माकन आज जयपुर आ रहे हैं. माना जा रहा है कि 28 जुलाई के आसपास मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है. पंजाब के सियासी विवाद के स्थायी समाधान के बाद अब राजस्थान के विवाद के निपटाने में कांग्रेस आलाकमान का फोकस है. लेकिन पंजाब के घटनाक्रम से भी सीएम गहलोत नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या है आलाकमान का मूड?
पंजाब और उत्तराखंड की कलह जिस ‘ट्रीटमेंट’ से सुधारी गई है उससे अचानक कांग्रेस में आलाकमान को मजबूती से पेश किया गया है. दोनों ही राज्यों कांग्रेस के निर्णय तंत्र पर प्रियंका गांधी की छाप दिख रही है. जिस गति से कांग्रेस में फैसले लिए जा रहे हैं उससे लगता है कि अगस्त मध्य तक कांग्रेस नेतृत्व संकट का समाधान भी कर लेगी और चुनावी रणनीति के लिए कमर भी कस लेगी.
सियासी जानकारों का मानना है कि पार्टी आलाकमान का मतलब समझाने और फिर से अपना इकबाल बुलंद करने के लिए गांधी परिवार ने सही समय चुना और नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का साहसिक कदम उठाया है. इसी कड़ी में यह भी बताया जा रहा है कि कांग्रेस उत्तराखंड के लिए हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बना सकती है. इन दोनों ही निर्णयों में प्रियंका गांधी सहित पूरे गांधी परिवार ने जो साहस दिखाया है वो अकल्पनीय था. ‘पंजाब मॉडल‘ का प्रभाव न सिर्फ चुनावी राज्यों में, बल्कि राजस्थान में भी दिखेगा, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शांति स्थापित नहीं हो पा रही है.
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अब सभी की निगाहें प्रियंका गांधी की ओर हैं कि क्या वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से हटाएंगी?. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हाईकमान के ‘शांति फॉर्मूला‘ को लागू करने के प्रयासों को लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं. वहीं सचिन पायलट इस बात पर अड़े हुए हैं कि सभी को अपनी बात कहने का हक है उसके बाद जो आलाकमान का फैसला हो सभी को स्वीकार करना चाहिए. कांग्रेस उच्च सूत्रों का कहना है कि सीएम गहलोत को ध्यान में रखना चाहिए कि कैसे प्रियंका गांधी ने पुराने योद्धा कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रतिरोध के बावजूद पंजाब में सिद्धू को फिर स्थापित किया. पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रतिद्वंद्वी सिद्धू को पद मिलने से रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किया लेकिन गांधी परिवार अड़ा गया. बताया जा रहा है प्रियंका को फीडबैक मिला था कि आम आदमी पार्टी की सिद्धू में विशेष रुचि नहीं है. आप की रणनीति तो बस सिद्धू को विद्रोही बनाकर अधिकतम चुनावी लाभ हासिल करना था.
राजस्थान के सीएम गहलोत और पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह अपने आप में बड़े कद्दावर नेता हैं. लेकिन दोनों के हालात एक ही जैसे हैं. बेशक पूर्व भारतीय आर्मी कैप्टन और सिख इतिहासकार, अमरिंदर सिंह पंजाब के कद्दावर नेता हैं, हालांकि वे पार्टी के आंतरिक मामलों से थोड़ा अलग ही रहे हैं. स्वतंत्र रूप से काम करने की प्रवृत्ति के कारण इस 79 वर्षीय नेता को 2022 के विधानसभा चुनावों की तैयारी में कई परेशानियां आ रही थी. कैप्टन साहब के नाम से मशहूर अमरिंदर ने प्रियंका के उस राजदार को अनदेखा किया, जिसे प्रियंका ने दो महीने पहले पंजाब पार्टी के मामलों पर चर्चा करने चंडीगढ़ भेजा था. सूत्रों की माने तो कैप्टन ने एमपी से आने वाले इस प्रियंका के संदेशवाहक को 48 घंटे इंतजार कराया, जिसके बाद वह वापस लौट गया. कांग्रेस की संस्कृति में यह अनादर है. इस घटनाक्रम में राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री के लिए कड़ा संदेश है.
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क्योंकि माना जा रहा है कि सीएम अशोक गहलोत भी लगातार आलाकमान की अनदेखी कर रहे हैं. एक बार तो यहां तक कहा गया था कि सीएम गहलोत प्रदेश प्रभारी अजय माकन का फोन नहीं उठा रहे हैं. सियासी क्वारेंटाइन की बात कह कर गहलोत अपने आवास से बाहर नहीं निकल रहे हैं. प्रभारी अजय माकन जयपुर का दौरा कर चुके हैं और उनकी मुख्यमंत्री गहलोत से मुलाकात भी हुई लेकिन उसके बाद भी बात आगे नहीं बढ़ पाई.
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के खेमे ने भी कुछ नीतिगत गलतियां कीं. जब मल्लिकार्जुन खड़गे, हरीश रावत और जेके अग्रवाल वाला एआईसीसी का पैनल बना और कैप्टन से चुनाव की तैयारी पर दृष्टिकोण साझा करने कहा के लिए गया तो उनके कुछ समर्थक उनकी वरिष्ठता का राग अलापते रहे. कहा जा रहा है कि प्रियंका सहित गांधी परिवार को कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रति हमदर्दी है. वे प्रताप बाजवा, मनीष तिवारी और बाकियों पर भी नजर रखे हैं, जो सिद्धू से नाखुश हैं. उन्हें लगातार संदेश दे रहे हैं कि जो भी फैसले हो रहे हैं, उनका उद्देश्य यही है कि भाजपा, आप और अकाली-बीएसपी के खिलाफ लड़ रही कांग्रेस पंजाब में फिर सत्ता में आए. चुनावी सफलता ही एकमात्र मापदंड है क्योंकि गांधी समझ गए हैं कि वे अपना राजनीतिक अधिकार तभी दोबारा हासिल कर सकते हैं, जब पंजाब और उत्तराखंड में चुनावी सफलता मिले.
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इसी प्रकार राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सामंजस्य के बिना सरकार बरकरार रखना मुश्किल होगा. आलाकमान इस विषय को लेकर चिंतित है. सूत्रों की मानें तो सीएम गहलोत खेमा भी आलाकमान के इशारों को लगातार नजर अंदाज कर रहा है. सुलह कमेटी के सामने भी यही राग अलापा गया की पायलट कैंप ने मानेसर जाकर पार्टी विरोधी काम किया है और सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की थी. ये नहीं बताया जा रहा है कि अब आगे एडजस्टमेंट कैसे होगा.
सीएम अशोक गहलोत के सामने भी कई चुनौतियां हैं. दोनों खेमे के समर्थकों के साथ ही बसपा से कांग्रेस में आए विधायक और निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर चलना है. वहीं सियासी संकट के समय सीएम गहलोत के खेमे में 102 विधायक थे. उनको भी सीएम गहलोत की ओर से कमिटमेंट किए हुए हैं. अब इन सबके बीच आलाकमान का संदेश लेकर आ रहे संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी अजय माकन के दौरे पर सभी की नजरें टिकी हैं.