राजनीतिक पार्टियों का चुनाव प्रबंधन करना और राजनीति करना दोनों अलग-अलग चीजें हैं. चुनावी रणनीतिकार और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के ‘ब्लू आइड ब्वाय’ प्रशांत किशोर इन दिनों ये बात बहुत गहराई से समझ रहे होंगे. प्रशांत अब तक किसी भी तरह के विवाद से अलग रहे हैं, लेकिन हाल ही में मीडिया में दिए गए अपने बयान को लेकर वह विवादों में है और जदयू नेताओं की नजरों में खटकने लगे हैं.
पिछले दिनों एक टीवी इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा था कि 2017 में राजद से गठबंधन खत्म करने के बाद जदयू को दोबारा चुनाव लड़ने के बाद सरकार बनानी चाहिए थी. यहां बताते चलें कि 2013 में एनडीए से नाता तोड़ कर जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिल कर महागठबंधन बनाया था.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज कर सरकार बनाई और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए, लेकिन यह गठबंधन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका. 2017 के बीच में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए और एनडीए के साथ मिल कर सरकार बना ली.
राजद समेत अन्य दलों ने नीतीश कुमार के इस कदम की तीखी आलोचना करते हुए इसे जनाधार की डकैती कहा था. विपक्षी पार्टियों का कहना था कि जदयू को दोबारा चुनाव कराना चाहिए थी, क्योंकि बिहार की जनता ने महागठबंधन को चुना था, एनडीए को नहीं. पिछले साल जदयू में शामिल होने वाले प्रशांत किशोर ने जब टीवी इंटरव्यू में कहा कि जदयू को दोबारा चुनाव करा कर सरकार बनानी चाहिए थी, तो उनका वह बयान विपक्षी पार्टियों की लाइन से मेल खाता था और यही बात जदयू के नेताओं को खटक रही है.
जदयू को प्रशांत किशोर की यह बात इसलिए भी अखर रही है कि यह सीधे तौर पर नीतीश कुमार के व्यक्तित्व पर सवाल उठाता है, जो अक्सर अपने भाषणों में महात्मा गांधी के बताये सात पापों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सिद्धांत के बिना राजनीति पाप है. राजद नेता भाई वीरेंद्र ने प्रशांत किशोर की टिप्पणी पर कहा था, ‘पार्टी के उपाध्यक्ष का बयान हमारे आरोपों को पुख्ता करता है.’
बता दें कि प्रशांत किशोर ने 2014 के आम चुनाव में भाजपा का चुनावी प्रबंधन किया था. इसके बाद नाटकीय घटनाक्रम के तहत वह भाजपा से अलग हो गए और 2015 जदयू के लिए चुनावी रणनीति पर काम किया. बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के चलते नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच रिश्ते मजबूत हुए. नीतीश ने बिहार विकास मिशन का गठन कर प्रशांत किशोर को अहम जिम्मेवारी सौंपी और कैबिनेट मंत्री की हैसियत दे दी.
प्रशांत किशोर ने कुछ दिन काम किया, लेकिन बाद में वह इससे अलग हो गए. फिर एक दिन अचानक सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई कि प्रशांत किशोर जदयू में शामिल हो रहे हैं. कुछ दिन बाद वह पार्टी में शामिल भी हो गए और नीतीश कुमार ने भी उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया.
माना जाता है कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जदयू में एंट्री कराई. जदयू के कुछ नेताओं का कहना है कि नीतीश रणनीति बना कर काम करने में विश्वास करते हैं. इसमें नैतिक या अनैतिक बातें कोई मायने नहीं रखतीं. नीतीश की तरह प्रशांत किशोर भी रणनीति बनाकर काम करते हैं. दोनों को एक-दूसरे की यह खासियत रास आ गई.
वैसे देखा जाए तो प्रशांत किशोर खुद भी बिहारी मूल के हैं. उनका बचपन बिहार में ही बीता है और उन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत भी बिहार से की. बाद में वह विदेश चले गए, जहां उन्होंने यूएन के लिए काम किया. प्रशांत 2011 में गुजरात सरकार के साथ जुड़े. उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. मोदी को प्रशांत किशोर का काम इतना भाया कि उन्होंने चुनावी रणनीति बनाने का जिम्मा उन्हें सौंप दिया.
सूत्र बताते हैं कि प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने और तुरंत उपाध्यक्ष बना दिए जाने से जदयू के कुछ नेता उनसे नाराज चल रहे हैं. असल में इन नेताओं को लग रहा है कि नीतीश जमीनी नेताओं को अहमियत न देकर ऐसे व्यक्ति को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं, जिसने पार्टी के लिए कभी पसीना नहीं बहाया. प्रशांत किशोर के उपाध्यक्ष बनाने से कई नेता खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं.
एक बात यह भी है कि प्रशांत किशोर सीधे नीतीश कुमार को रिपोर्ट करते हैं. उन्हें जानने वाले बताते हैं कि वे जब गुजरात में काम करते थे, तब भी मोदी तक उनकी सीधी पहुंच होती थी. 2015 में जब उन्होंने नीतीश कुमार के साथ काम शुरू किया, उस वक्त उनसे वे सीधे संपर्क में रहते थे. यहां तक कि उन्होंने अपना दफ्तर भी नीतीश के आवास में ही बना लिया था.
कुल मिलाकर प्रशांत किशोर के काम करने का सलीका जदयू के कई नेताओं खटकता है. सूत्रों का कहना है कि जदयू के कई नेता किशोर से खासे नाराज हैं और चाहते हैं कि पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दे. जदयू के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार तो यहां तक कह चुके हैं कि वे अभी प्रवचन दे रहे हैं, लेकिन तब कहां थे जब नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हुए थे. उन्हें खुद यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि जदयू में उनकी एंट्री भी तब हुई, जब जदयू और भाजपा ने दोबारा गठबंधन किया.
आने वाले दिनों में यह देखना रोचक होगा कि प्रशांत किशोर इस चक्रव्यूह से खुद को बाहर निकाल पाते हैं या नहीं. फिलहाल दोनों ओर से सियासी बिसात पर चालों की भरमार है. इस मुकाबले में अभी तक तो प्रशांत किशोर ही भारी पड़ रहे हैं, क्योंकि उनके सिर पर नीतीश कुमार का हाथ है.