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लोकसभा चुनाव में वैसे ही मोदी की आंधी में कांग्रेस-एनसीपी का करीब-करीब सूपड़ा साफ हो गया है. दोनों पार्टियों को बमुशिकल पांच सीटें हासिल हुई जिसमें कांग्रेस के हालात तो ज्यादा खराब रहे. पार्टी को केवल एक सीट पर जीत नसीब हुई. चुनाव में कांग्रेस के हालात इतने खराब रहे कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण को नांदेड़ जैसी मजबूत सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा.

कांग्रेस-एनसीपी को लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार का कारण प्रकाश अंबेडकर और असदुद्दीन औवेसी रहे. प्रदेश की 10 सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी के प्रत्याशी जितने अंतर से चुनाव हारे, उससे ज्यादा मत इन दोनों के प्रत्याशी ले गए. अगर कांग्रेस-एनसीपी ने औवेसी और अंबेडकर रुपी समस्या का जल्द हल नहीं ढूंढा तो कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन चुनाव में उतरने से पहले ही हार जाएगा.

प्रकाश अंबेडकरः
संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी बहुजन वंचित आघाड़ी के बैनर तले प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं हासिल हुई लेकिन इस चुनाव में बहुजन वंचित आघाड़ी ने कांग्रेस-एनसीपी उम्मीदवारों के कई लोकसभा क्षेत्रों में समीकरण बिगाड़े. सोलापुर से स्वयं प्रकाश अंबेडकर ने चुनाव लड़ा था. हालांकि अंबेडकर चुनाव तो जीत नहीं पाए लेकिन कांग्रेस दिग्गज़ और पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की हार का कारण जरूर बने.

आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी के लिए प्रकाश अंबेडकर फिर बड़ी परेशानी साबित होने वाले हैं. प्रकाश अंबेडकर की पार्टी का वोटबैंक दलित समुदाय है. अब तक इसी वोटबैंक के सहारे कांग्रेस लंबे समय तक प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव में यह वोट कांग्रेस-एनसीपी से बिदक-कर अंबेडकर की ओर चला गया जिसका नुकसान कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को उठाना पड़ा. अंबेडकर के कारण कांग्रेस को कई दलित बाहुल सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा. अब विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस चाहती है दलित वोट में विभाजन नहीं हो. यह तभी संभव है जब प्रकाश अंबेडकर कांग्रेस के साथ आए. अन्यथा लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी दलित वोटबैंक में विभाजन तय है. इसका सीधा फायदा बीजेपी-शिवसेना को मिलेगा.

असदुद्दीन औवेसी:
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन औवेसी की पार्टी ने पिछले पांच सालों के भीतर महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जड़े जमाई हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में पहली बार महाराष्ट्र में एआईएमआईएम की मौजूदगी देखने को मिली. उसके बाद से एआईएमआईएम प्रदेश में हुए हर चुनाव में भाग ले रही है. चाहे चुनाव नगर निकाय का हो या चाहे चुनाव पंचायत का, एआईएमआईएम ने हर चुनाव लड़ा. लोकसभा चुनाव में पार्टी ने औंरंगाबाद सीट पर जीत हासिल की है. एआईएमआईएम ने पहली बार हैदराबाद के अलावा किसी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की.

एआईएमआईएम का लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल सीट से चुनाव जीतना कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लिए खतरे का संकेत है. इसी वजह से विधानसभा चुनाव को लेकर औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कांग्रेस-एनसीपी की परेशानी बढ़ा रखी है. एआईएमआईएम पिछले पांच साल से लगातार महाराष्ट्र में हर चुनाव में भाग ले रही है. इसका सीधा नुकसान कांग्रेस और एनसीपी को होता आया है. वजह है- औवेसी की पार्टी के चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोटर उसके साथ चला जाता है जिसका नुकसान एनसीपी-कांग्रेस को होता है. लोकसभा चुनाव में भी एआईएमआईएम ने मुस्लिम इलाकों में भारी तादात में वोट हासिल किए हैं.

2014 के विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की सभी पार्टियों ने अलग चुनाव लड़ा था. सीट बंटवारे में विवाद के कारण बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था. इसके बाद दोनों अलग चुनाव मैदान में उतरे थे. हालांकि अलग चुनाव लड़ने के बावजूद भी बीजेपी ने 122 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं शिवसेना के खाते में 63 सीटें आई थी.इस बार भी संभावना है कि शिवसेना और बीजेपी विधानसभा चुनाव अलग-अलग ही लड़ेंगे.

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