Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश की गर्माई हुई सियासत के राजनीतिक समीकरण पल पल बदल रहे है. बीते दिन शुक्रवार को सीएम गहलोत के राजभवन को घेरने वाले बयान और राजभवन में कांग्रेस विधायकों द्वारा दिए गए धरने को लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ प्रदेश भाजपा कार्यालय पर पत्रकारों से रूबरू हुए. इस दौरान सतीश पूनियां ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल के खिलाफ लोगों को उकसाने वाला बयान दिया है, जो कि असंवैधानिक है और संसदीय परम्पराओं के विपरीत है और मुख्यमंत्री पद की गरिमा के खिलाफ भी है.
सतीश पूनियां ने कहा कि ‘द ग्रेट राजस्थान पाॅलिटिकल ड्रामा’ के निर्माता, निर्देशक और नायक खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं, जिसे पूरे प्रदेश की जनता देख रही है. प्रदेश के संवैधानिक मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में चल रही है, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री गहलोत अपनी लेखनी और वाणी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर झूठे आरोप लगाकर मीडिया की सुर्खियों में बने रहना चाहते है. जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस में चल रहे अन्तर्कलह एवं अन्तर्विरोध की वजह स्वयं अशोक गहलोत ही हैं.
यह भी पढ़ें: सरकार बचाने के लिए करीब 5 घण्टे तक राजभवन में चला सरकार का धरना
पूनियां ने कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत जिस अर्मादित भाषा और शब्दों का इस्तेमाल कर रहे है. यह मुख्यमंत्री पद की मर्यादा और नैतिकता के खिलाफ है. मुख्यमंत्री गहलोत और विधायकों ने राजभवन में धरने का जो नाटक किया, यह सब असंवैधानिक है. धरना देकर राज्यपाल पर जो दवाब बनाने की घटिया राजनीति कर रहे हैं और मुख्यमंत्री गहलोत ने मीडिया के सामने जो बयान दिया कि जनता राजभवन को घेरेगी तो ऐसे में उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. मुख्यमंत्री के इस तरह के बयान शोभा नहीं देते. मुख्यमंत्री ने आपदा प्रबन्धन कानून की धारा का भी उल्लघंन किया है, एक तरह से यह आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है.
सतीश पूनियां ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत ने संवैधानिक प्रमुख के खिलाफ लोगों को उकसाने का अपराध किया है, ऐसा राजस्थान के इतिहास में कभी नहीं हुआ है कि राजभवन को राजनीति का अखाड़ा बनाया गया हो. मुख्यमंत्री गहलोत ने विधायकों को राजभवन ले जाकर जिस तरीके की दवाब की राजनीति की है, वो असंवैधानिक तरीका है. सदन को आहूत करने का राज्यपाल के पास विशेषाधिकार है, जो स्वयं में अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सत्र बुलाते हैं. राजभवन में मुख्यमंत्री द्वारा विधायकों को ले जाकर भीड़ जुटाना कोरोना एडवाइजरी के दिशानिर्देशों के खिलाफ है. जब प्रदेश में कोरोना बेकाबू हो रहा है, तो इस तरह राजभवन में विधायकों का एकत्रित होना कानूनन सही नहीं है.
यह भी पढ़ें: मुख्यमंत्री गहलोत और राज्यपाल के बीच का टकराव कहीं राष्ट्रपति शासन की ओर कदम तो नहीं!
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि मुख्यमंत्री घटिया स्तर की बयानबाजी कर खुद अपने जाल में फंसते नजर आ रहे है. राज्य सरकार ने कैबिनेट के निर्णय से राज्यपाल को अवगत करवा दिया है, तो फिर राजभवन में जाकर धरना देने का यह घटिया काम मुख्यमंत्री पद के लिए शोभा नहीं देता. राज्यपाल को क्या फैसला लेना है, वे अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं कि प्रदेश की जनता राजभवन को घेरेगी, यह मुख्यमंत्री पद की गरिमा को गिराने वाला बयान है. मुख्यमंत्री अन्दर से बौखलाये हुए हैं और अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया है. मुख्यमंत्री को अपने पद की गरिमा बनाये रखनी चाहिए. इसके साथ कटारिया ने राज्यपाल से मांग करते हुए कहा कि ऐसे हालात से निपटने के लिए सीआरपीएफ लगाकर राजभवन की कड़ी सुरक्षा कर देनी चाहिए.
यह भी पढ़ें: राजभवन में पहुंचा बहुमत, नारे लगाए तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी, लोकतंत्र के हत्यारों का नाश हो, नाश हो
वहीं उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका उप मुख्यमंत्री से करीब डेढ़ साल से कोई संवाद नहीं है, तो इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस में चल रहे झगडे़ की वजह स्वयं मुख्यमंत्री की हठधर्मिता है, तो फिर भाजपा पर बार-बार क्यों मुख्यमंत्री झूठे आरोप लगा रहे हैं. प्रदेश में कोरोना के 33 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 600 से अधिक मौत हो चुकी हैं, तो ऐसे में मुख्यमंत्री को घटिया राजनीति करने के बजाय कोरोना प्रबन्धन पर ध्यान देने की जरूरत है. अपने उदण्ड विधायकों को राजभवन ले जाकर मुख्यमंत्री ने जो धरना दिया है, वो असंवैधानिक तरीका है. जब प्रदेश के लाखों परीक्षार्थियों की परीक्षा रद्द कर दी गई, तो फिर इस तरह राजभवन में मुख्यमंत्री एवं उनकी पार्टी के विधायकों का धरने पर बैठना कानून की धज्जियां उड़ा रहा है.