Politalks.News/Maharashtra. महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ भी ऑल इज वैल नहीं चल रहा. बीजेपी में खासी उठा पलट देखने को मिल रही है. महाराष्ट्र बीजेपी को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं. वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से के बाद अब पूर्व सांसद जयसिंहराव गायकवाड़ ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. गायकवाड़ ने पार्टी की कार्यसमिति और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. गायकवाड़ बीड से तीन बार सांसद रह चुके हैं. माना जा रहा है कि वे खड़से की तरह शरद पवार की एनसीपी को ज्वॉइन करेंगे. खडसे के बाद गायकवाड़ के पार्टी छोड़ने से उत्तर महाराष्ट्र में बीजेपी को सियासी तौर पर गहरा झटका लगा है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयसिंह राव गायकवाड़ ने उपेक्षा को वजह बताते हुए बीजेपी से इस्तीफा दिया है. गायकवाड़ केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं और वे दो बार एमएलसी भी रहे हैं. गायकवाड़ का कहना है कि 10 साल से ज्यादा से पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही थी. वो सांसद या विधायक बनने के बजाय पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करना चाहते थे, लेकिन पार्टी उनको जिम्मेदारी देने की बजाय नजरअंदाज कर रही थी. यही वजह रही कि उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
एकनाथ खड़से की तरह जयसिंह गायकवाड़ भी उत्तर महाराष्ट्र के इलाके से आते हैं. इतना ही नहीं, दोनों महाराष्ट्र में बीजेपी के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे के बेहद करीबी रहे हैं. मराठवाड़ा में बीजेपी की सियासी जमीन मजबूत करने में एकनाथ खडसे और जयसिंह राव गायकवाड़ की अहम भूमिका रही है.
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वहीं बात करें एकनाथ खडसे की तो वे महाराष्ट्र में बीजेपी के सबसे बड़े ओबीसी चेहरों के तौर पर जाने जाते थे. एकनाथ खड़से ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कार्यशैली से नाराज होकर बीजेपी को अलविदा कहा था और एनसीपी की सदस्यता ग्रहण की. खडसे 6 बार पार्टी के टिकट से विधायक रह चुके हैं. अब महीनेभर के भीतर जयसिंह गायकवाड़ के पार्टी छोड़ने के बाद उत्तर महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए सियासी तौर पर गहरा झटका है.
दरअसल, महाराष्ट्र में ओबीसी का प्रतिनिधित्व करने के लिए बीजेपी के पास तीन बड़े चेहरे थे. इनमें गोपीनाथ मुंडे, विनोद तावड़े और एकनाथ खड़से प्रमुख थे. मुंडे की कार दुर्घटना में मौत हो गई, जिसके बाद उनकी बेटी पंकजा मुंडे ने प्रदेश की राजनीति में एंट्री की और दो बार विधायक रहीं. विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे को हाल ही में राष्ट्रीय संगठन में जगह मिली है जिसके बाद दोनों फिलहाल के लिए महाराष्ट्र की राजनीति से दूर हो गए हैं. वहीं खड़से अब बीजेपी छोड़ चुके हैं. ऐसे में ओबीसी समुदाय को साधने के लिए बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है.
इधर, बीजेपी में जारी उठापटक के बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार इसी सप्ताह उत्तर महाराष्ट्र के दौरे पर निकल रहे हैं, जिसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. शरद पवार का 20-21 नवंबर को उत्तर महाराष्ट्र के दौरा प्रस्तावित है. इस दौरे में वो जलगांव, धुले और नंदुरबार जिलों के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे. शरद पवार पहली बार जलगांव पहुंचेंगे. खड़से इसी जलगांव जिले से आते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि यहां वे खडसे के समर्थकों को एनसीपी की ओर खींचने की पूरी कोशिश करेंगे.
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वहीं शरद पवार ने खड़से को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद भेजेने के लिए उनके नाम को प्रस्तावित कर भेजा है. इसे शरद पवार का महाराष्ट्र के 40 फीसदी ओबीसी वोटरों को लुभाने का दांव माना जा रहा है, जो बीजेपी का मजबूत वोटबैंक माना जाता है. पवार की जलगांव यात्रा उसी राजनीति से जोड़कर देखी जा रही है. ऐसे में गायकवाड़ के भी बीजेपी छोड़ने के बाद पवार का उसी इलाके में दौरा होना काफी महत्वपूर्ण हो गया है.
जिस तरह से देेवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व से वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी सामने आ रही है, उसे देखते हुए बीजेपी की ताकत महाराष्ट्र में कमजोर होती दिख रही है. हालांकि ये सभी नेता विधायक संख्या से बाहर हैं, जिससे चलते बीजेपी के विधायकों में कोई कमी नहीं आने वाली लेकिन ओबीसी वर्ग के दो बड़े नेताओं का विपक्षी खेमे में जाना एक बड़ी चिंता का विषय है. हाल में फडणवीस की देखरेख में बिहार में बीजेपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. ऐसे में उनके अपने खास और बड़े नेताओं को पकड़कर रखने की जिम्मेदारी है लेकिन खड़से और गायकवाड़ के जाने से फडणवीस की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने शुरु हो गए हैं.