सियासी चर्चा: अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो तेजस्वी भी बनेंगे! सभी दिग्गजों की नजरें टिकीं 10 मार्च पर

यूपी के चुनावी घमासान पर टिकी देशभर की निगाहें, 10 मार्च को आएंगे नतीजे, इसके बाद बदलेगा कई राज्यों का सियासी गणित, यूपी में बदलती है सत्ता तो बदलाव की बयार पहुंचेगी बिहार भी, इसका कारण बनेंगे NDA के घटक दल

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Politalks.News/UttarPradesh-Bihar. देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों का घमासान अपने चरम पर है. लेकिन सबसे ज्यादा जिस राज्य पर सारे देश की नजर है और सबसे ज्यादा चर्चाओं में अगर कुछ है तो वो उत्तरप्रदेश का चुनावी रण (Uttar Pradesh Assembly eleciton). ऐसा माना जाता है कि यूपी के चुनाव से ही केंद्र में बनने वाली सरकार की दिशा और दशा तय होती है. लेकिन इस बार यूपी के चुनाव नतीजे कई राज्यों के सियासी समीकरण बनाने बिगाड़ने वाले होंगे. इसी बीच एक सियासी जुमला जो लखनऊ से दिल्ली और दिल्ली से पटना तक लोगों की जुबान पर चल रहा है वो यह कि अगर अखिलेश (Akhilesh Yadav) यूपी के मुख्यमंत्री बनते हैं तो तेजस्वी(Tejsavi Yadav) भी बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे. यही नहीं इस सियासी जुमले को लेकर कई तरह के तर्क भी दिए जा रहे हैं. चर्चा है कि यूपी में भाजपा की हार होती है तो मांझी की पार्टी हम और मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी अपना पाला बदल सकती है. अगर ऐसा हुआ तो इसके बाद बहुमत का आंकड़ा तेजस्वी के पास होगा. यही वजह है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार सहित सभी सियासी दिग्गजों की नजर यूपी के चुनाव टिकी हुई है.

‘अगर अखिलेश बनते हैं सीएम तो तेजस्वी भी बनेंगे’
देश की राजधानी दिल्ली, बिहार की राजधानी पटना और यूपी की राजधानी लखनऊ में चल रही चर्चाओं पर भरोसा करें तो उसके मुताबिक मार्च का महिना जितना यूपी सहित पांचों चुनावी राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है उतना ही बिहार की राजनीति के लिए भी बहुत अहम होने वाला है. बता दें, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे. सियासी चर्चाओं को मानें तो उत्तरप्रदेश में अगर समाजवादी पार्टी चुनाव जीतती है और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते हैं तो बिहार में भी सत्ता का समीकरण बदल जाएगा और ‘अगर अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो तेजस्वी भी बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे.

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मांझी की हम और सहनी की VIP बनेगी कारण!
सियासी गलियारों में चल रही इस चर्चा के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं वो यह कि बिहार में एनडीए की दो सहयोगी पार्टियों के दम पर ऐसा होगा. नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार में एनडीए के दो घटक दल- जीतन राम मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआईपी के पास सात विधायक हैं. सहनी की पार्टी के एक विधायक का निधन हो जाने से यह सीट खाली हो गई है. वहीं ये दोनों पार्टियां पिछले कुछ समय से भाजपा और जदयू दोनों से दूरी बना रही हैं. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में जगह नहीं मिल पाने की वजह से भी मुकेश सहनी नाराज हैं. ऐसे में यूपी में भाजपा की हार से NDA के घटक दलों में भागदौड़ मचेगी और वो सुरक्षित सहारे की तलाश करेंगे.

बिहार में विधानसभा की सीटों का गणित
आपको बता दें, बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 75 विधायकों के साथ राजद सबसे बड़ा दल है. उसके साथ लेफ्ट मोर्चे के 16 विधायक हैं. इस तरह उसका गठबंधन 91 सदस्यों वाला है. दो सीटों के उपचुनाव के समय कांग्रेस से दूरी बनी थी फिर भी कांग्रेस के 19 विधायक गठबंधन के साथ ही रहेंगे और असदुद्दीन ओवैसी के पांच विधायक भी RJD का साथ देंगे. इन सबको मिला लें तो इनकी मौजूदा संख्या 115 सदस्यों की है. दूसरी ओर भाजपा के 74 और जदयू 45 विधायक हैं. यानी इनकी संख्या 119 बनती है. अब अगर हम और वीआईपी के सात विधायक पाला बदलते हैं तो राजद गठबंधन की संख्या 122 हो जाएगी और यही बहुमत का आंकड़ा है. अगर यह समीकरण बनता है तो सरकार का साथ दे रहे निर्दलीय विधायक सुमित सिंह भी पाला बदल सकते हैं.

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भाजपा तो चाहती ही है कि JDU हो कमजोर!
दूसरी ओर एक बड़ी सियासी चर्चा तो यह भी है कि, ‘अगर यह खेला होता है तो भाजपा भी इसमें दखल नहीं देगी क्योंकि इससे जदयू को कमजोर करके खत्म करने का उसका मकसद पूरा होगा.’ सियासी दिग्गज नीतीश कुमार भी इस बात को समझ रहे हैं इसलिए वे भी चुनाव नतीजों पर नजर रखे हुए हैं. माना जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार अभी अपनी तरफ से पहल करते तो शायद राजद उनको नेता मान भी लेता लेकिन अगर चुनाव बाद पहल करेंगे तो उनके नेता बनने की संभावना बहुत कम है.

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