Politalks.News/UttarpradeshChunav. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव (UttarPradesh Assembly Election 2022) के ऐलान के साथ ही सूबे की राजनीति में भारी उथल-पुथल मची हुई है. भारी उठापठक के बीच सियासी गलियारों में इस चर्चा को हवा दे दी है कि अब क्या होने वाला है. योगी मंत्रिमंडल के महत्वपूर्ण सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) और उनके साथी विधायकों ने भाजपा को अलविदा कह कर लखनऊ में छोटा-मोटा भूकंप पैदा कर दिया है. अब सवाल उठ रहा है कि इस पूरी धमाचौकड़ी के बीच आखिर कौन बनेगा यूपी का अगला मुख्यमंत्री? सबसे पहले बात करें मायावती (Mayawati) की तो उनका तो सवाल ही नहीं उठता है. अब बचते हैं या तो योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) और या फिर अखिलेश यादव! सियासी जानकारों का कहना है कि राजनीतिक हवाओं का रुख समझने वाले मौर्या ने ऊंट किस करवट बैठेगा इसके संकेत दे दिए हैं. वहीं दूसरी तरफ चर्चा यह भी है कि भाजपा ने भी जो तैयारी की है वो भी कम नहीं है. दलबदल का पलटवार ईंट का जवाब पत्थर टाइप देने की तैयारी में है, ऐसे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.
किस करवट बैठेगा ऊंट!
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने अपने इस्तीफे का कारण दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा बताया है. लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा है कि, मौर्या ने अपने इस्तीफे के जो कारण बताए हैं, वे तो सिर्फ बताने के लिए हैं उनके इस्तीफे का असली संदेश यह है कि, ‘उत्तरप्रदेश के चुनाव में ऊंट दूसरी करवट बैठने वाला है. जिस करवट ऊँट बैठेगा, उसी करवट हम पहले से लेटने लगेंगे. वरना क्या वजह है कि मौर्य जैसे कई नेता बार-बार अपनी पार्टियां बदलने लगते हैं?’ आपको बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्या को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है. पहले वो बसपा में थे, भाजपा की सरकार आती दिखी तो 2017 में भाजपा के साथ हो लिए थे और अब…..
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उपमुख्यमंत्री की सीट को लेकर थोक वोट का मोलभाव!
सियासी चर्चा यह है कि मौर्या का सपा जॉइन नहीं करने के दिखावे के पीछे भी मोलभाव की राजनीति ही है मौर्य अब अखिलेश से भी वादा लेना चाहते हैं कि जीतने पर वे उन्हें उप-मुख्यमंत्री तो बनाए ही बनाएं. इसके बदले में उनका दावा है कि वो उत्तरप्रदेश के 35 प्रतिशत पिछड़ों के थोक में वोट एक झटके में समाजवादी पार्टी को दिला देंगे. मौर्या के साथ 14 विधायकों के भाजपा से इस्तीफे तो इस ओर ही इशारा कर रहे हैं.
2017 में भाजपा ने 67 दलबदलुओं को दिया था टिकट
यहां आपको यह भी याद दिला दें कि, ठीक ऐसे ही हालात 2017 के चुनाव में भी बने थे जब एक के बाद करीब 67 नेताओं ने सपा-बसपा और कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था. 2017 के चुनाव में भाजपा ने 67 दल-बदलुओं को टिकट दिए थे. उनमें से 54 जीते थे. इसको लेकर सियासी चर्चाओं का दौर है कि अब देखना यह होगा कि उनमें से कितने इस बार भाजपा में टिके रहते हैं? साथ ही जिनके टिकट काटने की तैयारी भाजपा कर रही है उनमें से कितने पार्टी का दाम थामे रहेंगे, या फिर वो भी किसी दूसरे पाले में कूदेंगे?
‘नाग रूपी RSS व सांप रूपी बीजेपी को खत्म कर देगा नेवला रूपी मौर्या‘
उत्तरप्रदेश आज देश का सबसे बड़ा प्रदेश है. बिहार के बाद उत्तरप्रदेश देश में जातिवाद का सबसे बड़ा गढ़ है. अंधा थोक वोट इसकी पहचान है. इसी हकीकत के दम पर स्वामीप्रसाद मौर्य ने दावा किया है कि, ‘वे ऐसा गोला मारेंगे, जो घमंडी नेताओं की तोप को भी उड़ा देगा‘. यही नहीं स्वामी प्रसाद मौर्या ने इस्तीफा देने के दूसरे दिन एक ट्वीट कर बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘नाग रूपी आरएसएस एवं सांप रूपी भाजपा को स्वामी रूपी नेवला यू.पी. से खत्म करके ही दम लेगा‘.
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भाजपा के तरकश में हैं कई तीर!
दूसरी ओर सियासी गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि स्वामी प्रसाद मौर्या शायद यह भूल गए कि जुलाई में हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में 27 मंत्री ऐसे नियुक्त हुए थे, जो देश के पिछड़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं. मोदी ने इस तथ्य का खूब प्रचार भी किया था. बताया जा रहा है कि मोदी का मंत्रिमंडल फेरबदल के इस प्रयोग का सही उपयोग अब देखने को मिलेगा. वहीं एक दावा तो यह भी किया जा रहा है इस दलबदल के वार पर भाजपा ने बड़ा पलटवार करने की तैयारी कर ली है आने वाले दिनों में सपा को बड़ा झटका देने की तैयारी अंदरखाने जारी है. वहीं इसके अलावा पुलवामा और हुसैनीवाला जैसी दर्जनों नौटंकियों का अभी प्रकट होना बाकी है.
‘अ’ या ‘आ’ कौन पड़ेगा भारी?
वर्तमान परिस्थितियों में उत्तरप्रदेश में जो राजनीतिक माहौल बन रहा है उसमें यह कहना अभी मुश्किल है कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा लेकिन सियासी वैज्ञानिक हवाओं का रुख समझने में जुटे हैं. एक सियासी चर्चा यह है कि दोनों ही बड़े दावेदारों का नाम ‘अ’ से ही शुरू होता है. आदित्यनाथ और अखिलेश! बड़ा ‘आ’ बनेगा या छोटा ‘अ’? वर्तमान सियासी माहौल में यह छोटा ‘अ’ बराबर बड़ा ‘आ’ बनता जा रहा है.