PoliTalks.News/Rajasthan. हर कोशिश में असफल होने के बाद भी 101 के बहुमत का आंकड़ा जुटाने में नाकाम रहे पायलट और भाजपा खेमा अब गहलोत खेमे में बैठे उन 6 विधायकों पर केंद्रीत हो गया है जो जीतकर तो बीएसपी के टिकट से आए थे, लेकिन सभी कांग्रेस में विलय हो गए. मामला लगभग 10 महीने पुराना हो चुका है लेकिन अब जोर पकड़ रहा है. बीजेपी खेमा अब इस पूरे मसले पर अपनी सारी ताकत झौंकने की तैयारी कर रहा है. भाजपा विधायक मदन दिलावर नई याचिका लेकर एक बार फिर हाईकोर्ट पहुंच गए हैं. सोमवार को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था.
मदन दिलावर ने कहा कि 4 महीने पहले इसी मामले को लेकर उन्होंने विधानसभा स्पीकर के पास शिकायत लगाई थी, जिसका निस्तारण स्पीकर ने कर दिया है, लेकिन उन्हें न तो सुनवाई के लिए बुलाया गया और ना ही निस्तारण की विस्तृत निर्णय की कॉपी उन्हें दी गई.
उधर, सोमवार की देर रात जहां गहलोत सरकार राज्यपाल के सवालों के जवाब देने की तैयारी में जुटी रही, वहीं भाजपा के राज्य की शीर्ष नेताओं की भी देर रात तक बैठक चलती रही. इसमें बीएसपी के 6 विधायकों को लेकर मदन दिलावर की याचिका के संबंध में भी विचार विमर्श हुआ. एक ओर बीएसपी के 6 विधायकों को लेकर भाजपा खेमा विशेष रणनीति पर काम कर रहा है, वहीं बीएसपी सुप्रीमो भी आक्रमक नजर आई. कहने लगी- हम सही समय का इंतजार कर रहे थे. यानि कि बीएसपी सुप्रीमो के अनुसार अब सही समय आ गया है. मायावती ने कहा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे.
भाजपा किस आधार पर कर रही है बीएसपी की बात
भाजपा का कहना है कि यह पूरी तरह गलत है. बीएसपी एक नेशनल पार्टी है. उसके विधायक किसी और पार्टी में मर्ज नहीं कर सकते. राजस्थान के भाजपा नेता शायद भूल गए हैं कि गोवा में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 विधायकों का एक दल बनाकर भाजपा में विलय कराया गया था.
यह भी पढ़ें: इंसाफ नहीं दे सकते तो बंद कीजिए ये तमाशा, ‘माई लॉर्ड’
दूसरी घटना सिक्किम में हुई थी. शायद भाजपा नेताओं को वो भी याद नहीं होगी. सिक्किम में 11 विधायकों की एक पार्टी में से 10 विधायकों का एक दल बनाकर भाजपा में विलय कराया गया था. अब इधर राजस्थान में बीएसपी के 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय हो गया तो भाजपा को परेशानी हो रही है. हर राज्य में भाजपा का चेहरा अलग-अलग है.
मध्य प्रदेश में सिंधिया के साथ 22 विधायकों को भाजपा की सदस्यता दिलाकर वहां चुनी हुई कांग्रेस की सरकार गिराना गैर अनैतिक कैसे हो जाता है.
वहीं कर्नाटक का पूरा घटनाक्रम नैतिक कैसे हो जाता है. हर जगह नैतिकता की परिभाषा अलग-अलग कैसे संभव है. भाजपा कहती रही कि राजस्थान का पूरा मामला गहलोत और पायलट यानि कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई है लेकिन पर्दे के पीछे क्या हो रहा है. गहलोत ने राज्यपाल की ओर से विधानसभा सत्र बुलाने में देरी करने का आरोप लगाया तो भाजपा नेता खुलकर मैदान में आ गए. कहने लगे- राज्यपाल पर दबाव नहीं बनाया जा सकता.
केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह के विधायकों द्वारा खरीद फरोख्त से जुड़े ऑडियो के मामले में एसओजी को आवाज का सेंपल क्यों नहीं दिया जा रहा है. अगर कोई पाक साफ है, तो उसे तो सबसे पहले आकर पूछताछ में सहयोग करना चाहिए. विधायकों की खरीद फरोख्त मामले के आरोपी विश्वेंद्रसिंह और भंवरलाल को एसओजी ढूंढने मानेसर स्थ्ति एक होटल जाती है तो वहां कि हरियाणा पुलिस उन्हें कई घंटों तक रोके रखती है. कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रहे इस सत्ता के इस खेल का अंत कहां जाकर होगा, इसका सही जवाब भाजपा नेता और विधानसभा में प्रतिपक्ष नेता गुलाब चंद कटारिया ने दिया. उन्होंने कहा कि इसका फैसला विधानसभा में बहुमत परीक्षण से ही होगा.
यह भी पढें: पायलट खेमे के 19 लोगों को पहली किश्त मिल गई है, दूसरी किश्त तब मिलेगी जब खेल पूरा होगा- गहलोत
अब कटारिया साहब की पार्टी बीजेपी तो विश्वास मत तो दूर विधानसभा सत्र बुलाने से भी बचने के उपाय ढूंढ रही है. विशेषज्ञों के अनुसार राज्यपाल के पास किसी भी सत्र के लिए 21 दिन की समय अवधि का प्रावधान है. अब गहलोत तो 101 विधायक लेकर बैठे हैं, यह बात लुका छुपी का खेल करने वाले भी अच्छी तरह जानते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक राज्यपाल गहलोत को कह चुके होते कि सदन में अपना विश्वास हासिल करो.
18 दिन के घमासान के बाद भी जब पायलट-बीजेपी खेमा 101 लोग नहीं जुटा पा रहे तब, बीएसपी के वो 6 विधायक महत्वपूर्ण हो गए, जो कांग्रेस में विलय हो चुके हैं. अब इसके कानूनी पहलुओं पर काम चल रहा है. इधर बीजेपी कोर्ट गई है तो उधर बीएसपी ने सभी 6 विधायकों को व्हिप जारी कर कांग्रेस को वोट नहीं डालने के लिए कहा है.
अब फिर वही सवाल खड़ा हो जाता है कि जब सदन ही नहीं लग रहा तो व्हिप का क्या अर्थ बनता है. दूसरा बीएसपी के विधायक खुद कह रहे हैं कि वो कांग्रेस के हो चुके हैं. यानि देश की जनता पिछले 18 दिनों से लोकतंत्र का सियासी तमाशा देखे ही जा रही है.