Politalks.News/Rajasthan. बड़े बूढ़ों ने कहा है कि अत्यधिक वाचालता हमें उद्दंडी बनाती है, जबकि मौन हमें समझदार. मौन से शक्ति प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति का जीवन ऊर्जा से भर जाता है. वहीं राजनीति में भी मौन की अपनी एक भाषा होती है. इस मौन की अभिव्यक्ति को हर कोई नहीं समझ सकता. लेकिन राजस्थान की राजनीति में इस समय इस मौन यानी चुप्पी को सबसे बड़ा हथियार अगर किसी ने बनाया है तो वह हैं पूर्व पीसीसी चीफ और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट. 12 जुलाई 2020 की वो तारिख सभी को याद है जब मानेसर के एक होटल से विरोध के स्वर उठे थे और पायलट कैंप के विधायकों ने कह दिया था कि राजस्थान की गहलोत सरकार अल्पमत में है. जिसके बाद लगभग डेढ़ महीने तक पूरी गहलोत सरकार सभी विधायकों के साथ सियासी बाड़ेबंदी में रही. हालांकि आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद हुए समझौते और सुलह समिति के गठन के बाद पायलट खेमा वापस लौटकर एक बार फिर पार्टी के दिशा निर्देशों के साथ काम करने में जुट गया.
पिछली 12 जुलाई को दिए गए उक्त सियासी बयान को एक साल पूरा हो गया, इस दौरान ज्यादा कुछ तो नहीं बदला लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है तो वो है सचिन पायलट द्वारा धारण की गई असाधारण चुप्पी. पिछले साल सियासी संकट के दौरान ही सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के साथ पीसीसी चीफ के पद से हाथ धोना पड़ा, लेकिन पायलट ने चुप्पी साधे रखी. इसी दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अपनी नैचर के विपरीत जाकर सचिन पायलट को नकारा, निकम्मा, बिना रगड़ाई के सबकुछ पा लेने वाला और न जाने क्या-क्या कहा गया, लेकिन पायलट ने साधे रखी वही असाधारण चुप्पी. वहीं आलाकमान के विश्वास दिलाने और सुलह समिति के गठन के बाद जयपुर लौटे सचिन पायलट को झटका तब लगा जब विधानसभा में उनकी कुर्सी को सबसे पीछे की लाइन में लगा दिया, लेकिन उस दौरान भी पायलट ने सदन में विपक्ष को माकूल जवाब देते हुए पार्टी में साधे रखी असाधारण चुप्पी.
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इसी एक साल के दौरान सचिन पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ किसान महापंचायतों का आयोजन किया जिसमें अप्रत्याशित भीड़ जुटी. इसको देखते हुए पार्टी ने राहुल गांधी की अध्यक्षता में किसान महापंचायत करवाने का निर्णय किया, लेकिन इस दौरान भी सचिन पायलट के साथ उपेक्षित व्यवहार किया गया. पायलट का गढ़ माने जाने वाले अजमेर के रूपनगढ़ में एक ट्रैक्टर रैली के दौरान राहुल गांधी की मौजूदगी में सचिन पायलट को ट्रैक्टरों से बने मंच से नीचे उतारा गया, लेकिन इस दौरान भी पायलट ने साधे रखी असाधारण चुप्पी.
दिल्ली में कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि पिछले साल सियासी संकट के दौरान सचिन पायलट द्वारा मानेसर के होटल में की गई अपने विधायकों की बाड़ाबंदी से राहुल गांधी खासे नाराज हुए थे और गहलोत कैंप ने राहुल की इसी नाराजगी को खूब भुनाया भी. लेकिन अब पायलट ऐसा कोई भी कदम नहीं उठा रहे हैं जिससे दिल्ली में गांधी परिवार की नाराजगी झेलनी पड़े. सूत्रों की मानें तो सचिन पायलट की इस असाधारण चुप्पी से गहलोत कैम्प में बहुत बैचेनी है, यही वजह है कि हर थोड़े दिन के अंतराल के बाद गहलोत कैम्प के विधायकों द्वारा कभी आस्तीन का सांप तो कभी गुर्जर नेता तो कभी 150 सीटों की जगह 99 रहने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले बयान सामने आते रहते हैं. लेकिन इन बातों का जवाब पायलट कैम्प के विधायक ही देते हैं, क्योंकि पायलट ने साध रखी है असाधारण चुप्पी.
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आपको बता दें, एक साल बीत जाने के बाद भी पायलट कैंप की मांगों पर अभी तक विचार नहीं किया गया है. तब से लेकर अब तक सरकार में पायलट कैंप को कोई भागीदारी नहीं मिली है. हालांकि इन सबके बीच निकाय चुनाव, विधानसभा उपचुनाव और कोरोना की दूसरी लहर भी राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल विस्तार में रोड़ा बनते गए. लेकिन इन सबके के बाद भी बीच बीच में अब तक हुई राजनीतिक नियुक्तियों में भी पायलट कैंप को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई है.
हालांकि, इस एक साल के दौरान कोरोना काल की दूसरी लहर से पहले और प्रदेश में सम्पन्न हुए विधानसभा उपचुनाव के बाद एक बार जरूर सचिन पायलट की नाराज़गी खुलकर सामने आई थी, जब पायलट ने पीसीसी में मीडिया से वार्ता के दौड़ना कहा कि बहुत हो गया, अब कोई वजह नहीं बचती है कि गहलोत साहब मंत्रिमंडल का विस्तार ना करें. सचिन पायलट के इस बयान के बाद मची सियासी हलचल को कोरोना की दूसरी लहर ने दबा दिया.
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वहीं हाल ही में गठित हुईं विधानसभा की समितियों में स्पीकर सीपी जोशी ने जरूर कुछ तालमेल बैठाने की कोशिश की. लेकिन सूत्रों का दावा है कि मंत्रिमंडल विस्तार में पायलट कैंप के मंत्रियों की संख्या को लेकर जो गतिरोध है वो दूर नहीं हो रहा है. अजय माकन भी दोनों कैंप से लगातार संपर्क साधे हुए हैं. इन सब घटनाक्रमों के बीच पायलट ने एक साधक की तरह चुप्पी साध रखी है जो सभी को प्रभावित कर रही है.
सुलह कमेटी की न रिपोर्ट आई, न उनकी मांगों पर अब तक विचार हुआ
सचिन पायलट की बगावत के बाद वापसी में प्रियंका गांधी की अहम भूमिका रही. बगावत के बाद पायलट की वापसी को 11 महीने हो गए, लेकिन उस वक्त बनी सुलह कमेटी की रिपोर्ट भी अब तक नहीं आई है. बता दें, अजय माकन, अहमद पटेल और वेणुगोपाल के नेतृत्व में कमेटी बनी तो सही लेकिन अहमद पटेल के निधन के बाद से पूरा मामले ठंडे बस्ते में चला गया. अब माकन दिल्ली और जयपुर में मुलाकातों के कई दौर चला चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर है. पायलट कैंप ने सत्ता और संगठन में भागीदारी की मांगें रखी थीं. सचिन पायलट हमेशा विपक्ष में रहने के दौरान पार्टी के लिए सड़कों पर उतरकर डंडे खाने वाले कार्यकर्ताओं को सत्ता और राजनीतिक नियुक्तियों में आगे रखने की पैरवी करते रहे हैं. लेकिन पायलट की मांगों पर कोई ठोस काम अब तक नहीं हुआ.