Politalks.News/Bihar. जो कभी रखते थे 36 का आंकड़ा, वो अब एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थक रहे. बात हो रही है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की. मन में अभी भी दोनों के चाहे कुछ भी हो, लेकिन बिहार की सड़कों और चौराहों पर इन दोनों दिग्गजों के लगे पोस्टर तो कम से कम दोनों के बीच की गहरी दोस्ती ही बयां कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि ये पोस्टर और होर्डिंग्स केवल जदयू द्वारा ही लगाए जा रहे हैं, भाजपा भी इन दोनों के दोस्ताना पोस्टर लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही. पोस्टर के कैप्शन लिखा है-‘नो कन्फ्यूजन ग्रेट कॉम्बिनेशन‘.
आपको बता दें, एक समय था जब दोनों नेता एक दूसरे के धुर विरोधी बन गए थे. ये तब की बात है जब 2013 में नरेंद्र मोदी को एनडीए की तरफ से दल का नेता चुना गया था. यानि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था. ये बात नीतीश कुमार को नागवार गुजरी. क्यों गुजरी… ये सवाल तो आज भी सवाल ही है क्योंकि जदयू एक क्षेत्रीय पार्टी है और नीतीश कुमार की भी बिहार के बाहर कोई खास फैन फोलोइंग नहीं है. इसके दूसरी ओर, गुजरात के मुख्यमंत्री के अलावा भी नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर के नेता माने जाते थे.
यह मनभेद ही रहा कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में सत्ता पक्ष और विपक्ष की पार्टियों ने भी साथ मिलकर चुनाव लड़ा. प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां राजद और जदयू ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और करीब करीब एक तरफा जीत हासिल कर बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया. हालांकि ये जोड़ी 6 महीने भी न टिक सकी और नरेंद्र मोदी ने सारे पुराने मतभेद भुला नीतीश को समर्थन का मैसेज पहुंचाया. रातों रात बीजेपी के सभी विधायक पटना पहुंच गए. शाम 4 बजे नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और सुबह 9 बजे फिर से बीजेपी के समर्थन से सीएम पद की शपथ ले सत्ता पर विराजमान हो गए.
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उसके बाद भी लंबे समय तक दोनों के बीच उस स्तर की बातचीत नहीं हुई थी जो गठबंधन सरकार होने के चलते होनी चाहिए थी. यहां तक की सीएए बिल पर जदयू ने सहयोगी बीजेपी का समर्थन नहीं किया था बल्कि खुलकर विरोध किया था. चूंकि अब बिहार में चुनाव है तो धुर विरोधियों के भी गले मिलने का समय है और मोदी व नीतीश तो गठबंधन के साथी रहे हैं. ऐसे में इतना सियासी मिलन तो होना ही था. एक तरफ नीतीश माननीय प्रधानमंत्री के तारीफ में कशीदे गढ़ रहे हैं तो वहीं पीएम मोदी भी नीतीश के कहने पर बिहार को सौगातों पर सौगातें लुटा रहे हैं.
पिछले 10 दिनों में प्रदेश को 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की विकास परियोजनाओं का उपहार मिल चुका है. कोरोना काल में छठ पूजा तक फ्री अनाज और राशन भी बिहार को देखते हुए ही बांटा जा रहा है क्योंकि छठ पूजा बिहार का सबसे बड़ा पर्व है. मतलब ये है कि दोनों नेताओं के बीच कोई भ्रम जैसी स्थिति नहीं है और दोनों के बीच गहरा तालमेल है. अब ये साझेदारी बिहार की सड़कों, गली मोहल्लो और चौराहों पर भी दिख रही है.
सड़कों पर लगे एक होर्डिंग में पीएम मोदी को देश की धड़कन तो नीतीश कुमार को बिहार की धड़कन बताया हुआ है. दूसरे पोस्टर में नीतीश कुमार को आधुनिक बिहार का निर्माता दिखाया गया है. साथ ही पीएम मोदी के हवाले से नीतीश कुमार की चुनावों की जीत पक्की होने का दावा भी किया गया है.
एक अन्य होर्डिंग में प्रधानमंत्री कह रहे हैं ‘नीतीश जैसे सहयोगी हों तो कुछ भी संभव है’. पार्टी की तरफ से अपने बड़े नेताओं के पोस्टर तो हमेशा लगते हैं लेकिन ऐसा संभवतः पहली बार हो रहा है जब भाजपा की तरफ से नीतीश की तस्वीरें लगाई जा रही है और उसमें मोदी का बयान भी लिखा है जिसमें वे सीएम नीतीश की तारीफ कर रहे हैं. भाजपा ने इस बार जो थीम सॉन्ग बनाया है उसमें भी नीतीश का जिक्र है. जगह-जगह ‘आत्मनिर्भर बिहार बनाना है और नीतीश कुमार को जिताना है‘ थीम सॉन्ग बजाया जा रहा है.
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मतलब साफ है कि भाजपा पूरी तरह इस बार पूरी तरह से नीतीश के चेहरे पर ही मैदान में है और बिहार में किसी लीडर को आगे नहीं करना चाहती. कुल मिलाकर कहानी ये है कि इस बार बीजेपी मोदी के नाम नहीं बल्कि काम पर बिहार के सियासी रण में है और एनडीए एंड टीम के नेतृत्व की कमान पूरी तरह से नीतीश के हाथों में है. यही वजह है कि नीतीश और चिराग के बीच गहराए मतभेद को सुलझाने के अलावा बीजेपी आलाकमान भी कोई खास जद्दोजहद नहीं कर रहा. ऐसे में बीजेपी बिहार में एक बड़ा रिस्क लेकर चुनाव लड़ रही है.