Politalks.News/Rajasthan. देशभर में कोरोना महासंकट के बीच राजस्थान में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. सरहदी इलाकों में कांग्रेस की असली ताकत माने जाने वाले और गहलोत सरकार में अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद के पिता और धर्मगुरु गाजी फकीर का इंतकाल हो गया है. लंबे समय से बीमार चल रहे गाजी फकीर का जोधपुर के शुभम हॉस्पिटल में निधन हो गया. गाजी फकीर की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 1965 में खुली गाजी फकीर के खिलाफ अपराधों की फाइल कागजों में ही खो कर रह गई. वहीं सिंधी मुसलमानों के गुरु माने जाने वाले फकीर का फतवा जारी होने पर ही तय किया जाता था कि चुनाव में वोट किसे देना है.
आपको बता दें, गाजी फकीर के पैतृक गांव झाबरा में ही सरहद के इस सुल्तान को सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया है. इस दौरान कोरोना की फ्रिक किए बिना उनके चाहने वालों का हुजूम यहां उमड़ पड़ा, सीएम गहलोत सहित कांग्रेस के दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक जताया है. जैसलमेर निवासी गाजी फकीर पाकिस्तान में मुस्लिम समाज के बड़े धर्मगुरु पीर पगारों के नुमाइंदे थे. जैसलमेर-बाड़मेर की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले गाजी फकीर का पूरा परिवार लंबे अरसे से राजनीति में सक्रिय है. इनके खिलाफ खोली गई हिस्ट्रीशीट भी बहुत चर्चा में रही थी.
‘सरहद के सुल्तान’ थे गाजी फकीर
आजादी के बाद से ही राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर के सिंधी मुस्लिमों के धर्मगुरु के रूप में ख्याति प्राप्त गाजी फकीर को इन सरहदी जिलों के राजनीति का दाता माना जाता रहा. उनको मानने वालों ने उन्हें गाजी की पदवी दे रखी थी. सिंधी मुसलमान तो उनके आदेश के बगैर एक कदम नहीं भरते. पूरे सरहदी जिलों की राजनीति गाजी फकीर के रहमो करम पर चलती थी. खासकर कांग्रेस के लिए सरहदी जिलों में गाजी परिवार के बिना सोची भी नहीं जा सकती. जैसलमेर के भागु गांव गाजी फकीर की राजधानी थी. सरहद के इस पार और सरहद के उस पार गाजी फकीर के फतवे के आगे लोग सिर झुकाते थे.
सरहदी जिलों राजनीति का दूसरा नाम ‘गाजी परिवार’
1975 से गाजी परिवार सरहदी जिलों की राजनीति से जुड़े हुए हैं. गाजी फकीर की बरसों तक राजनीति में मजबूत पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके भाई फतेह मोहम्मद, बेटे सालेह मोहम्मद, अब्दुला फकीर जैसलमेर के जिला प्रमुख रह चुके हैं. साथ ही एक बेटा अमरुद्दीन प्रधान हैं. गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद इस समय गहलोत सरकार में अल्पसंख्यक मामलात मंत्री हैं. सरहदी जिलों की राजनीति को जानने वालों की माने तो सरहदी जिलों में कांग्रेस की राजनीति गाजी परिवार से शुरू होकर इसी परिवार पर खत्म हो जाती है.
फतवे का इंतजार करते थे अनुयायी
गाजी फकीर का राजनीतिक रसूख कैसा था इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर चुनाव से पहले इलाके के उनके समर्पित अनुयायी उनके फतवे का इंतजार करते थे, कि किसे चुनाव में जिताना है और किसे पटखनी देनी है. सरहद के पांच लाख से ज्यादा सिंधी मुसलमानों पर उनकी हुकूमत चलती थी.
सामाजिक कोर्ट में सुनाते थे फैसले-गाजी फकीर का अपना सामाजिक न्यायालय था. मुस्लिम समाज के बीच होने वाले विभिन्न प्रकार को मसलों को सुलझाने के लिए गाजी फकीर कोर्ट लगाया करते थे. जिसमें वो खुद फैसला करते थे कि क्या करना है और क्या नहीं. गाजी फकीर के फैसले को समाज के लोग सहर्ष स्वीकार भी करते थे.
हिस्ट्रीशीट खुलने पर आया था ‘भूचाल’
वैसे तो जैसलमेर पुलिस के रिकॉर्ड में गाजी फकीर एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी थे. गाजी परिवार की राजनीतिक ताकत को खत्म करने की कोशिश करने के लिए दो बार गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खोली गई. गाजी फकीर पर तस्करी और देशद्रोह का मामला दर्ज था. साथ ही भारत-पाकिस्तान सीमा पर तस्करी और गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप थे. जुलाई 1965 में सबसे पहले गाजी फकीर के अपराधों की फाइल खोली गई थी, लेकिन 1984 में उसकी हिस्ट्रीशीट ही गायब कर दी गई. फिर जिस अधिकारी ने उसके गुनाहों की पड़ताल करने की कोशिश की उसका तबादला कर दिया गया. 31 जुलाई 1990 में एसपी सुधीर प्रताप सिंह ने उसकी हिस्ट्रीशीट दोबारा खोली. लेकिन उसके 28 दिन बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया. एसपी सुधीर प्रताप सिंह के तबादले के 21 साल बाद 12 मई 2011 में कार्यवाहक एसपी गणपत लाल ने उसकी फाइल बंद कर दी. हालांकि नियमों के तहत एसपी ही हिस्ट्रीशीट बंद कर सकता है. फाइल बंद करने पर तत्कालीन अपराध सहायक ने इसका विरोध किया था. इसके बाद 2013 में ये हिस्ट्री शीट जैसलमेर के एसपी रहे पंकज चौधरी ने खोलने की हिमाकत थी, जिनका तबादला 2 दिन बाद ही कर दिया गया था और फिर बर्खास्त भी कर दिया गया. आपको बता दें, एसपी पंकज चौधरी तबादले को लेकर जैसलमेर में जमकर बवाल भी हुआ था, जिसके चलते दो बार जैसलमेर बंद भी रहा था.
हिस्ट्रीशीट की बंद, उम्र और आचरण को बनाया आधार– गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट बंद करने का आधार उनकी उम्र और आचरण को बनाया गया. गाजी फकीर की 70 वर्ष से ज्यादा हो चुकी थी और काफी समय से किसी आपराधिक गतिविधियों में उनकी भूमिका सामने नहीं आई थी.
सियासी संकट में गहलोत ‘जादूगर’ तो गाजी फकीर ‘वजीर’ थे
पिछली साल गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट के दौरान गाजी फकीर गहलोत के साथ खड़े दिखे थे. गाजी फकीर खुद अशोक गहलोत खेमे में पहुंचे और सीएम के समर्थक विधायकों से मिले और सरकार पर किसी तरह का संकट नहीं होने का आशीर्वाद भी दिया था. स्वास्थ्य कारणों के चलते गा़जी फकीर कहीं आते-जाते नहीं थे. लेकिन सियासी संकट के दौरान वो खुद जयपुर आए और गहलोत खेमे के साथ खड़े दिखे. यहां तक की गहलोत खेमे के कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को जयपुर से जैसलमेर के सूर्यागढ़ रिसोर्ट में ले जाया गया. यहां गा़जी फकीर गहलोत खेमे के वजीर की भूमिका में दिखे. जयपुर में गहलोत खेमे में कोई सेंध ना लगे इसलिए सभी को जैसलमेर गा़जी फकीर की सरपरस्ती में रखा गया था.