PoliTalks.in. पॉलिटॉक्स न्यूज़. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के दिनमान तबसे खराब चल रहे हैं, जब से उन्होंने कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाली नक्शे में दिखाया था. उन्होंने इस नक्शे को संसद में पास तो करा लिया लेकिन उसके बाद से ही वे अपनी ही सरकार में घिरने लग गए. कथित तौर पर कोरोना संकट में कुछ न कर पाने और जनता का ध्यान हटाने के लिए ही उन्होंने पहले नए नक्शे का विवाद उठाया और बाद में भारत पर नेपाल में कोरोना फैलाने का आरोप भी लगा दिया. अब सत्ताधारी पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को कहा है. अपने अड़ियल बर्ताव के चलते उन्होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया और एक नई पार्टी का रजिस्ट्रेशन कर दिया. फिलहाल उनकी किस्मत का फैसला सोमवार तक टल गया है क्योंकि स्थाई समिति की बैठक शनिवार को ऐन वक्त पर टल गई.
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लेकिन काबिलेगौर ये है कि नेपाली प्रधानमंत्री ओली का स्वभाव, अंदाज और बर्ताव भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी हद तक मिलता है. कई बातें हैं जो दोनों के बीच समानता रचती नजर आती हैं. दोनों के बीच सबसे कॉमन है कि दोनों नेता नेशनलिस्ट एजेंडे पर अपनी राजनीति करते हैं और अपनी बात पर अड़िग रहते हैं.
1. मोदी और ओली दोनों ही कट्टर राष्ट्रवादी नेता
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाली पीएम ओली दोनों ही कट्टर राष्ट्रवादी नेता के तौर पर जाने जाते हैं और दोनों में ये भी कॉमन है कि दोनों ही दिग्गज़ कट्टर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर सत्ता में आए. हालांकि, दोनों का सत्ता में आने का पॉलिटिकल बैकग्राउंड अलग है. सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने नेपाल के खिलाफ जब कुछ आर्थिक दिक्कतें खड़ीं की तो ओली ने इस मुद्दे को चुनाव जीतने के लिए भुनाया. अगर ये मुद्दा नहीं होता तो शायद ओली सत्ता में भी नहीं होते.
2. पूंजीवादिता में यकीन, दोनों की विचारधारा एक
पीएम मोदी और पीएम ओली दोनों ही नेता 21वीं सदी की पूंजीवादी विचारधारा में यकीन करते हैं, इस बात में कोई शक नहीं. दोनों की विचारधारा भी ऐसी है कि उससे पीछे हटने को भी तैयार नहीं. मोदी जहां हिंदुत्व की बात करते हैं, वहीं ओली कम्युनिस्ट विचारधारा को बढ़ावा देते हैं.
3. विस्तारवाद का न भारत समर्थक न नेपाल
दोनों प्रधानमंत्रियों में तीसरा कॉमन बिंदू रोचक है. दरअसल, दोनों ही नेता विस्तारवाद के खिलाफ हैं. मोदी जहां चीन के विस्तारवाद का विरोध करते हैं, वहीं, ओली भारत पर विस्तारवाद का आरोप लगाते हैं. हालिया घटनाएं इसकी मिसाल हैं. भारत अपने अन्य पड़ौसी देश पाकिस्तान की विस्तारवादी नीतियों की भी खिलाफत नहीं करता. दोनों ही देश आपसी बातचीत के जरिए बातों को सुलझाने की भी कोशिश करते हैं. जहां एक ओर नेपाल भारत से सीमा विवाद में वार्ता करने का इंतजार कर रहा है, वहीं भारत चीन से लगतार बातचीत कर विवाद को सुलझाने की कोशिश में है.
4. पावर सेंटर का सेंट्रल बिंदू खुद के हाथों में
दोनों देशों के नेताओं में ये बात भी कॉमन है कि पावर सेंटर का सेंट्रल बिंदू पीएम मोदी और पीएम ओली अपने हाथों में रखते हैं. भारत की तरफ देखें तो पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक से लेकर चीनी विवाद में बॉर्डर पर सेना बढ़ाने संबंधी सभी फैसले पीएम मोदी ने अपनी देखरेख में लिए हैं. शुक्रवार को पीएम मोदी हालातों का जायजा लेने लेह—लद्दाख पहुंचे थे. वहीं नेपाली प्रधानमंत्री ओली भी पावर सेंटर अपने हाथों में रखना पसंद करते हैं. भारत—नेपाल बॉर्डर पर लाव लश्कर के साथ नेपाली सेना की तैनाती इस बार का स्पष्ट उदाहरण है.
5. एक बार जो कमिटमेंट कर दिया तो किसी की नहीं सुनते
‘एक बार जो कमिटमेंट कर दिया, उसके बाद मैं खुद की भी नहीं सुनता’ याद है न ये डायलॉग. दोनों ही नेता अपनी हर बात पर कायम रहते हैं फिर चाहें कुछ भी हो जाए. पिछले साल भारतीय संसद में कई बिल पास हुए, फिर चाहें वो कश्मीर से धारा 365 हटाने से संबंधित हो या फिर तीन तलाक, मोटर व्हीकल एक्ट हो या नागरिकता कानून ..सभी पर देशभर में जमकर विरोध हुए, प्रदर्शन हुए लेकिन मोदी कभी पीछे नहीं हटे और अपने निर्णय पर अड़िग रहे. इसी तरह ओली ने भी अपनी ही पार्टी के आलाकमान की बात मानने से मन करते हुए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया. यहां तक की नई पार्टी का रजिस्ट्रेशन करा अपने तेवर दिखा दिए. ये सभी बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि उनके इरादे अड़िग हैं.
ये कुछ ऐसी बाते हैं जो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली के बीच एक जैसी दिखती हैं. अब तो सभी की नजरें सोमवार पर टिकी हुई हैं कि नेपाली सत्ताधारी पार्टी ओली की किस्मत का क्या फैसला करती है.