राजनीति करना कोई नीरज शेखर से सीखे. उनके पिता चंद्रशेखर ने हमेशा मुद्दों की राजनीति की. उनके किसी से मतभेद रहे तो स्पष्ट रहे, लेकिन वह मनभेद नहीं रखते थे. वह कांग्रेस में थे, इंदिरा गांधी के समर्थक थे, युवा तुर्क मंडली में शामिल थे, लेकिन जब आपात काल लगा तो इसे देशहित के खिलाफ मानते हुए उन्होंने विरोध किया और जेल चले गए. सत्तारूढ़ पार्टी को छोड़कर विपक्ष में जा बैठे. हालांकि उन्हें इसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन देशहित का तकाजा निजी ऐशो आराम से ज्यादा अहम था. उनके पुत्र नीरज शेखर अवसरवाद का उदाहरण पेश कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद थे. इस्तीफा देने के बाद अब भाजपा के कोटे से राज्यसभा सदस्य बनने वाले हैं.

चंद्रशेखर का जीवन समाजवादी राजनीति में खपा. जनता पार्टी और उसकी सरकार के बिखरने के बाद भी उन्होंने सत्ता से तालमेल बनाने का प्रयास नहीं किया, जबकि उनके पास इसके बहुत से मौके थे. सभी पार्टियों के नेताओं से उनके मित्रवत संबंध रहे, लेकिन सिद्धांतों के आधार पर उन्होंने राजनीतिक समझौतों से परहेज रखा. उन्होंने कांग्रेस छोड़ी. समाजवादियों से जुड़े. जयप्रकाश नारायण के निकट रहे. जनता पार्टी के अध्यक्ष बने. ढाई साल में जनता पार्टी बिखर गई. चंद्रशेखर ने जनता पार्टी नहीं छोड़ी. चार-पांच पार्टियों के अलग होने के बाद जो जनता पार्टी बची, वह उसके अध्यक्ष बने रहे.

चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी से दिल्ली तक ऐतिहासिक भारत यात्रा की. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को जो छप्परफाड़ बहुमत मिला था, उस चुनाव में वह बलिया से चुनाव हार गए. तब वह राजनीतिक गतिविधियों से अलग होकर सामाजिक गतिविधियों से जुड़ गए. उन्होंने भारत यात्रा ट्रस्ट बनाकर भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की. जलसंरक्षण, पर्यावरण, शिक्षा का प्रचार प्रसार, महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर उन्होंने कार्यक्रम बनाकर गैर राजनीतिक लोगों को जोड़ने का काम शुरू किया.

यह भी पढ़ें: लोकसभा में बीजेपी के बहुमत से राज्यसभा में भगदड़ का माहौल

जब चंद्रशेखर यह सब कर रहे थे, तब नीरज शेखर किशोरावस्था में थे. पदयात्रा के दौरान वह नेकर पहनते थे. चंद्रशेखर राजनीति के मिजाज को अच्छी तरह भांप चुके थे, इसलिए उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से एकदम अलग रखा. उन्होंने जो भारत यात्रा ट्रस्ट बनाया, वह भी उन लोगों को सौंपा, जो वास्तव में पदयात्रा में शामिल थे और बाद में भारत यात्रा ट्रस्ट से जुड़े थे. माधवजी, बाई वैद्य, इंदुभाई पटेल, सुधीन्द्र भदोरिया और अन्य. इस ट्रस्ट में उनके परिवार के किसी व्यक्ति का नाम नहीं था. फिलहाल ट्रस्ट का संचालन सुधीन्द्र भदोरिया कर रहे हैं. चंद्रशेखर के पुत्र पंकज और नीरज, उनके भाई कृपाशंकर, दो भतीजे सहित परिवार से जुड़ा कोई भी व्यक्ति भारत यात्रा और उसके बाद शुरू हुए कार्यक्रमों में शामिल नहीं था.

चंद्रशेखर की संत जैसी जीवन शैली और उनकी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता के कारण देश की राजनीति में उनका कद इतना ऊंचा हो गया था कि संसदीय राजनीति में एक बार जब नेतृत्वहीनता के कारण संकट की स्थिति बनी, तब उन्हें कई लोगों ने मिलकर प्रधानमंत्री पद संभालने के लिए मनाया. उन्होंने जनता दल से अलग होकर अपनी अलग समाजवादी जनता पार्टी बनाई और सिर्फ 49 सांसदों के दम पर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका राजीव गांधी के समर्थन से मिला था.

लेकिन चंद्रशेखर अपने स्वभाव के वशीभूत थे. कांग्रेसियों ने चिमटी काटने की आदत दिखाई. चार महीने के बाद एक दिन संसद चल रही थी और कांग्रेस सदस्य अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे. आरोप लगा कि हरियाणा के पुलिसकर्मी राजीव गांधी की जासूसी कर रहे हैं. चंद्रशेखर बेसिरपैर की बातों से परेशान होकर कुर्सी से उठे और इस्तीफा देने के लिए राष्ट्रपति भवन रवाना हो गए. जिस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री पद संभाला था, सबको भौचक्का करते हुए उसी तरह छोड़ भी दिया. अगर उनमें सत्ता में बने रहने का लालच होता तो उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं थी. सभी जानते हैं प्रधानमंत्री पद की ताकत क्या होती है.

चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को समाजवादी राजनीति में अपने पिता के योगदान का पुरस्कार मिला है, जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी ने उन्हें संसद में भेज दिया. समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल एस, बीजू जनता दल आदि पार्टियों के कई नेता चंद्रशेखर को पिता तुल्य मानते हैं. चंद्रशेखर के राजनीतिक चरित्र पर कोई दाग धब्बा नहीं है. चंद्रशेखर का जुड़ाव कभी भी भारतीय जनता पार्टी और संघ की विचारधारा से नहीं रहा.

उनके पुत्र नीरज शेखर को यह चिंता थी कि उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की समाजवादी पार्टी के कोटे की सारी सीटें साल भर बाद भाजपा को मिलने वाली हैं. उसके बाद वह सांसद नहीं रहने वाले थे. उन्हें यही चिंता हुई कि बाकी जीवन कैसे कटेगा? जो बंगला मिला है, उससे अलग वंचित हो जाएंगे. इसलिए वह राजनीतिक दावपेच के माध्यम से अब भाजपा में शामिल होने के बाद राज्यसभा में बने रहने का जुगाड़ कर चुके हैं. चंद्रशेखर की राजनीति अलग थी. नीरज शेखर की अलग है. नीरज शेखर को यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा भी चंद्रशेखर के नाम से ही उन्हें राज्यसभा में ला रही है.

Leave a Reply