पॉलिटॉक्स न्यूज़/मध्यप्रदेश. मध्यप्रदेश की सियासत में कमलनाथ सरकार के पतन के बाद अब नए मुख्यमंत्री को लेकर सूबे की सियासत गर्माई हुई है. लाख टके का सवाल यह है कि क्या एक बार फिर मध्यप्रदेश के मामा शिवराज सिंह चौहान को कमान दी जाएगी या नहीं? भाजपा की ओर से शपथ ग्रहण के लिए 25 मार्च की तारीख तय की गई है. इससे पहले 23 मार्च को विधायक दल की बैठक होनी है और इसी में मुख्यमंत्री का नाम फाइनल होगा. अब तक मुख्यमंत्री के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम सबसे आगे था, लेकिन, सूत्रों का कहना है कि अब नरेंद्र सिंह तोमर का नाम इस पद के लिए सबसे आगे है, वहीं सियासी चाय की प्याली में तूफान की रणनीति बनाने वाले और कई मौकों पर बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने से चूकने वाले नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री के लिए अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं. हालांकि, मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला 23 मार्च को होने वाली विधायक दल की बैठक में किया जाएगा.
इधर, कभी कांग्रेस के विधायक कहलाने वाले सिंधिया समर्थक बागी आज गले में भगवा गमछा पहने हुए दिल्ली से भोपाल पहुंचे. चार्टर प्लेन के ज़रिये पहले बेंगलुरू से दिल्ली और फिर दिल्ली से भोपाल पहुंचे 21 पूर्व कांग्रेसी विधायकों ने कमलनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए क्षेत्र के विकास में रोड़ा अटकाने का आरोप लगाया. सभी 21 विधायकों ने एक सुर में बीजेपी के साथ अपना राजनीतिक जीवन बिताने की बात कही. भोपाल पहुंचे सभी विधायक कड़ी सुरक्षा के बीच शिवराज सिंह चौहान के आवास पहुंचे, जहां वो अभी शिवराज की टी पार्टी में शामिल हुए. यहां पर भी बागियों ने बीजेपी के साथ होने का दावा किया. बागियों ने सामूहिक फोटो सेशन कराकर अपनी एकजुटता और आस्था भाजपा के प्रति जताने की कोशिश की.
बात करें मध्यप्रदेश में 25 मार्च को होने वाली मुख्यमंत्री की ताजपोशी की तो लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह चौहान की राह इस बार इतनी आसान नज़र नहीं आ रही है. शिवराज की राह में रोड़ा बने हैं ग्वालियर चंबल की सियासत से आने वाले नरेन्द्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा. बता दें कि नरोत्तम मिश्रा दो बार प्रदेश अध्यक्ष और फिर नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शामिल रहे लेकिन ये दोनों पद उन्हें नसीब नहीं हुए. ऐसे में नरोत्तम मिश्रा इस बार ग्वालियर – चंबल का दाव खेलकर सत्ता के सिहासन पर बैठना चाहते हैं. सभी को पता है कि शिवराज के ‘माई के लाल’ वाले बयान ने पिछले विधानसभा चुनाव में इस इलाके में बीजेपी को सियासी नुकसान पहुंचाया था. जिसको आधार बनाकर नरोत्तम अपना दावा ठोक रहे हैं, साथ ही शिवराज सिंह चौहान के धुर विरोधी कैलाश विजयवर्गीय का साथ भी नरोत्तम मिश्रा को मिलता दिख रहा है और अमित शाह का विश्वस्त होना भी मिश्रा की मुकुराहट की वजह बना हुआ है.
पूर्व में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह की राह में दूसरा और सबसे बड़ा रोड़ा उनके पुराने मित्र और पीएम नरेन्द्र मोदी के खास सिपाहसालार केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर हैं, जो खुद भी ग्वालियर चंबल की सियासत से आते हैं और ज्योतिर्रादित्य सिंधिया की बीजेपी में एन्ट्री के सूत्रधारों में शामिल बताए जा रहे हैं. सूत्रों की मानें तो बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने इस बारे में नरेन्द्र सिंह तोमर को अलग से बुलाकर बात की है. वहीं धर्मेन्द्र प्रधान ने भी तोमर से इस मुद्दे पर अलग से चर्चा की है. इसके के चलते यह कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री की रेस में नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम सबसे आगे चल रहा है. हालांकि ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नरेन्द्र मोदी अपने परफॉर्मर मंत्री को इतनी आसानी से केन्द्रीय केबिनेट से जाने देंगे?
सबसे बड़ी बात, मध्यप्रदेश की सियासत में शिवराज सिंह चौहान को इग्नोर करना बहुत मुश्किल है, इसका मुख्य कारण “मामा” की मास अपील और जनता से शिवराज की डारेक्ट कनेक्टिविटी है और सियासी तौर पर भी भाजपा के लिए ये फायदे का सौदा नहीं होगा है और 6 महीने के भीतर कमलनाथ सरकार की वापिसी का सबब बन सकता है. इसकी मुख्य वजह 24 सीटों पर मुंहबाये खड़ा विधानसभा उपचुनाव है, जो शिवराज की मासअपील के बिना जीतना नामुमकिन के करीब होगा. शायद यही वजह है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस ने बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान की सम्भावित नाराजगी को देखते हुए शुक्रवार देर शाम अपने ऑफिसियल एकाउंट से ट्वीट करते हुए दावा किया कि 15 अगस्त 2020 को कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में झंडारोहण करेंगे.
बता दें, मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री आवास जाकर कमलनाथ से 40 मिनिट तक मुलाकात की थी. ऐसे में जानकारों का मानना है कि शिवराज ने अपनी पार्टी पर दबाव बनाने के लिए सीधा सीधा सन्देश दिया है कि पार्टी ने अगर उनको इग्नोर किया तो इसका गम्भीर परिणाम आने वाले उपचुनाव में बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.
वहीं प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के चयन में बीजेपी में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका भी बहुत अहम होगी, क्योंकि 22 बागियों को जिताना उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न है और सिंधिया भलीभांति शिवराज सिंह चौहान की ताकत को जानते हैं. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि भोपाल में इशारों – इशारों में एक और एक ग्यारह का ज़िक्र करके वो शिवराज को अपनी पसंद बता चुके हैं. इसके साथ ही काबिले गौर बात यह भी है कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र से बीजेपी के किसी बड़े चेहरे मसलन नरेन्द्र सिंह तोमर या नरोत्तम मिश्रा को मुख्यमंत्री बनवाकर सिंधिया अपने लिए चुनौती तैयार नहीं करना चाहेंगे, इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि सिंधिया को भी शिवराज का ही समर्थन करना पड़ेगा. ऐसे में लगता तो यही है कि बेमन से ही सही केन्द्रीय नेतृत्व शिवराज सिंह को ही मध्यप्रदेश की कमान सौंपेगा और संतुलन की कवायद करते हुए नरोत्तम मिश्रा को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता है. वहीं पीएम मोदी को भी नरेन्द्र सिंह तोमर की परफॉर्मेंस का फायदा मिलता रहेगा.
यह भी पढ़ें: एमपी: 15 साल बाद मिली सत्ता 15 महीनों बाद 15 दिन चले सियासी घमासान के बाद छिन गई
गौरतलब है शनिवार को भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल गोपाल भार्गव के नेतृत्व में राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुंचा था. बताया जा रहा है कि यह मुलाकात राज्य में नई सरकार बनाने की कवायद है. इधर, भाजपा विधायक नरोत्तम मिश्रा ने दावा किया है कि दो दिन में एमपी में भाजपा की सरकार बन जाएगी.