Politalks.News/Parliament Winter Session 2021. मानसून सत्र (winter session) के बाद 29 नवम्बर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में भी जोरदार हंगामा जारी है. मोदी सरकार की हठधर्मिता और विपक्ष (Opposition) का अडियलपन जनता से जुड़े मुद्दों पर भारी पड़ रहा है. आपको बता दें कि भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार एक साथ राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित (12 Rajya Sabha MPs suspended) किया गया. बीती जुलाई माह में संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में कथित तौर पर सुरक्षाकर्मियों से बदसलूकी के आरोप में संसदीय कार्यमंत्री की शिकायत पर राज्यसभा के सभापति ने 12 विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का फैसला किया. जानकारों का कहना है कि इससे पहले कभी इतने राज्यसभा सांसद निलंबित नहीं हुए. बता दें, इससे पहले बीते 70 सालों के संसदीय इतिहास में सबसे ज्यादा राज्यसभा सांसदों के निलंबन का रिकार्ड भी इसी मोदी सरकार ने बनाया था और वह भी एक साल पहले ही, जब राज्यसभा के आठ सांसदों को निलंबित किया गया था. यहां मजे की बात यह भी है कि लोकसभा से एक साथ सबसे ज्यादा 25 सांसदों को निलंबित करने का रिकॉर्ड भी इसी सरकार के समय बना था. दोनों ही निलंबन कांड के पीछे का एक ही कारण है कोरपोरेट का भला!
देश के सियासी गलियारों में चर्चा इस बात को लेकर है कि 8 सांसदों और फिर 12 सांसदों के निलंबन के बीच क्या कोई समानता है? इन दोनों घटनाओं के बीच बहुत स्पष्ट समानता है. पहला निलंबन कृषि विधेयकों को जोर-जबरदस्ती पास कराने के समय हुआ था और दूसरा निलंबन साधारण बीमा बिल को जोर-जबरदस्ती पास कराने के समय हुआ. विपक्ष मोदी सरकार के इन दोनों विधेयकों का विरोध कर रहा था और संसदीय समिति के पास भेजने की मांग कर रहा था. लेकिन सरकार को ‘कुछ अज्ञात कारणों’ से इन विधेयकों को पास कराने की जल्दी थी, जिसका आजतक खुलासा नहीं हुआ है. तभी वोटिंग की मांग को दरकिनार कर तीनों कृषि कानून पास कराए गए और विपक्षी सांसदों के मुताबिक सदन में दुर्व्यवहार कर बीमा बिल पास कराया गया.
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आपको बता दें, मोदी सरकार ने जिन कृषि विधेयकों को पास कराने के लिए सदन में जोर-जबरदस्ती की और जिसके लिए आठ सांसदों को निलंबित किया गया, उसके बाद सांसद संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के आगे धरने पर बैठे, वे तीनों कानून इस सरकार ने वापस ले लिए हैं. उन तीनों कानूनों को लेकर आरोप लगे थे कि उनका खेती-किसानी से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि पूरे कृषि सेक्टर को कॉरपोरेट के हाथों में सौंप देने के लिए उन्हें बनाया गया था, लेकिन देश के किसानों ने इसे भांप लिया और ऐसा आंदोलन किया कि सरकार को उन्हें वापस लेना पड़ा.
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इसी तरह सांसदों के निलंबन की दूसरी बड़ी सियासी घटना साधारण बीमा बिल के समय हुई थी. पहले कहा गया था कि सरकार अपनी चार साधारण बीमा कंपनियों में से एक का निजीकरण करेगी. लेकिन जब यह बिल आया तो इसमें चारों सरकारी बीमा कंपनियों में सरकारी भागीदारी घटाने का प्रावधान किया गया. तभी इस बिल का ज्यादा विरोध शुरू हुआ. अच्छा खासा कारोबार कर रही बीमा कंपनियों को बेचने की बेचैनी में यह बिल पास हुआ. ऐसे में सियासी निष्कर्ष यह है कि कृषि और बीमा कानून दोनों में एक समानता यह भी है कि इनका मकसद कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाना था.