Politalks.News/Delhi. देश की संसद (Sansad Bhawan) की नई इमारत बन रही है, जिसमें पहले से ज्यादा सांसदों के बैठने की जगह है, सिर्फ इस आधार पर सियासी चर्चाओं ने जन्म ले लिया है कि, क्या लोकसभा (Loksabha) के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जाएगी? सूत्रों की मानें तो मोदी सरकार (Modi Goverment) इसका होमवर्क कर चुकी है. जैसा की आपको बता है कि देश में लोकसभा सीटों की संख्या तय करने का आधार आबादी होगी. लेकिन सियासी जानकारों का कहना है कि ये काम इतना आसान नहीं होगा जितना समझा जा रहा है. इस प्रक्रिया से देश में क्षेत्रीय असंतुलन आना तय है. विशेष सूत्रों की मानें तो हिंदी बैल्ट यानी उत्तर के राज्यों में सांसदों की सीटें बढ़ेंगी जबकि पूर्वोत्तर और दक्षीणी राज्यों में सांसदों की सीटें बढ़ने की बजाय घट जाएंगी. वहीं बजट का आवंटन भी सांसदों की संख्या के हिसाब से होगा. मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह काम आसान नहीं होगा. वहीं कुछ लोगों का दावा है कि मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है!
सियासी जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार अगर ये दांव चलती है तो इसकी वजह से दक्षिण भारत के कई राज्य पिछड़ जाएंगे. पिछले दिनों दक्षिण भारत के सांसदों ने इसे लेकर चिंता भी जताई थी और उन्होंने आबादी के आधार पर सीटों की संख्या बढ़ाने के प्रयास का विरोध करने का फैसला किया था. आपको यह भी बता दें कि दक्षिण भारत के राज्यों ने आबादी और पिछड़ेपन के आधार पर संसाधनों के बंटवारे के वित्त आयोग के सुझाव का भी विरोध किया था और कहा था कि, ‘दक्षिण के राज्यों ने आबादी का बढ़ना रोक दिया तो उन्हें इसकी सजा नहीं मिलनी चाहिए या जिन राज्यों ने आबादी बेलगाम बढ़ने दी उनको इनाम नहीं मिलना चाहिए‘.
वहीं अगर बात करें आंकड़ों की तो लोकसभा सीटों का परिसीमन नहीं होने और बेतहाशा आबादी बढ़ने का नतीजा यह हुआ है कि देश की एक-एक लोकसभा सीट 30-30 लाख मतदाताओं की हो गई है. किसी सांसद के लिए इतने बड़े मतदाता समूह का ध्यान रखना संभव नहीं है. इसे कम करके अगर औसतन 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट बनाई जाती है तो अकेले उत्तर प्रदेश में 115 लोकसभा सीटें होंगी और करीब सात करोड़ की आबादी वाले तमिलनाडु की सीटें 39 से घट कर 35 हो जाएंगी. वहीं बिहार की सीटें बढ़ कर 60 हो जाएंगी तो केरल की सीटें घटकर 18 रह जाएंगी.
राजनीतिक विश्लेषकों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि मोदी सरकार अगर ये दांव चलती है तो इससे बड़ा क्षेत्रीय असंतुलन होगा, भाषायी असंतुलन होगा और निचले सदन में दक्षिण भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व घटेगा. दूसरी तरफ सरकार से जुड़े सूत्र कह रहे हैं कि पता नहीं सरकार कब लोकसभा सीटों का परिसीमन शुरू करेगी लेकिन उससे पहले इसे लेकर चिंता शुरू हो गई हैं. हालांकि मोदी सरकार के ट्रेक रिपोर्ट को देखते हुए कुछ भी असंभव नहीं है, मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी, GST, तीन तलाक और जम्मू कश्मीर से 370 हटाने जैसे फैसले अचानक ही लिए गए थे. ऐसे में आशंका यह है कि हो सकता अगले चुनाव से पहले सरकार विपक्ष को इस नई प्रक्रिया में उलझा दे.