लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद बीजेपी के हौंसले सातवें आसमान पर हैं. उनका अगला टार्गेट साल के अंत में होने वाले हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव है. यह भी सूचना है कि चुनाव आयोग इन राज्यों के साथ जम्मु-कश्मीर में भी विधानसभा के चुनाव करवा सकता है.
लोकसभा चुनाव में इन सभी राज्यों में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया है. लेकिन आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ अन्य दलों की इन राज्यों में क्या संभावना है, आगे इसी पर विस्तृत चर्चा करेंगे…
जहां चौपाल के चूल्हों पर राजनीति की रोटियां सेकी जाती है और हुक्कों की गुड़गुड़ाहट पर उम्मीदवारों की तकदीर का फैसला होता है. हम उसी हरियाणा की बात कर रहे हैं. हरियाणा में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश की सत्ता बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर के हाथों में है. इस विधानसभा चुनाव में खट्टर की असली परीक्षा होने वाली है.
खट्टर सरकार के कार्यकाल के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब प्रदेश के हालात उनकी पकड़ से बाहर हो गए. चाहे 2016 का उग्र जाट आंदोलन हो या गुरमीत राम रहीम को सजा मिलने के बाद बिगड़े हालात, जिन्होंने खट्टर की किरकिरी कराई. कई बार उनको मुख्यमंत्री पद से हटाने की खबरें नेशनल मीडिया की सुर्खियां बनी. हालांकि हर बार इन खबरों को औंधे मुंह गिरना पड़ा क्योंकि खट्टर पर पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का हाथ था.
खट्टर ने पहले जींद के उपचुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव में स्वयं के नेतृत्व को साबित किया है. पार्टी ने उनके नेतृत्व में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर जीत दिलाई. बीजेपी ने इन चुनावों में कांग्रेस के मजबूत किले रोहतक को भी ढहा दिया. रोहतक से बीजेपी के अरविंद शर्मा ने कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा को मात दी. वहीं भूपेन्द्र हुड्डा खुद भी सोनीपत लोकसभा से रमेश कौशिक से चुनाव हार बैठे.
लोकसभा चुनाव में मिली भारी कामयाबी के बाद बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में 70 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. लक्ष्य के लिए रखी गई सीटों का यहां आंकड़ा ही इस बात की तस्दीक कर रहा है कि बीजेपी इस समय प्रदेश में जबरदस्त आत्मविश्वास से लबरेज है. उसकी इस आत्मविश्वास की वजह प्रदेश में जाट आंदोलन के बाद बना जाट और गैर जाट माहौल है.
इस समय हरियाणा के लोग दो धड़ों में बंटे हुए हैं. एक धड़ा जाट समुदाय का है जो पूर्ण रुप से खट्टर सरकार के खिलाफ है. इसके उलट पूरा हरियाणा मनोहर लाल खट्टर के पक्ष में लामबंद है. लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव भी अगर जाट और नॉन जाट में बंट गया तो यहां बीजेपी के ‘मिशन 70’ के साकार होने की पूर्ण संभावना होगी.
वहीं कांग्रेस हरियाणा में अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. पहले तो 2014 में उसके हाथ से हरियाणा की सत्ता फिसल गई. हार भी इतनी बुरी हुई कि सत्ता में रही कांग्रेस प्रदेश में तीसरे दर्जे की पार्टी बन गई. पांच साल गुजरने के बाद भी कांग्रेस की हालात आज भी खस्ताहाल है.
प्रदेश कांग्रेस वर्तमान में गहरी गुटबाजी में उलझी हुई है. पार्टी के नेता पार्टी को जिताने के लिए नहीं, दूसरे धड़े के नेताओं को हराने में मेहनत करते दिख रहे हैं. हरियाणा कांग्रेस के नेताओं का समय केवल एक-दूसरे को कमजोर करने में ही गुजरता है न कि पार्टी को मजबूत करने में. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर का जाना तय है. उनको सिरसा लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी उम्मीदवार सुनीता दुग्गल से करारी हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी के कई नेता समय-समय पर उनके खिलाफ नाराजगी जता चुके हैं. तंवर के स्थान पर पार्टी हरियाणा में किसी जाट चेहरे को अध्यक्ष बना सकती है.
कांग्रेस की विधानसभा चुनाव की आखिरी आस यही है कि किसी भी प्रकार से चुनाव जाट और नॉन जाट के मुद्दे पर न हो. अगर यह मुद्दा विधानसभा चुनाव में चल गया तो कांग्रेस का प्रदेश में सूपड़ा साफ होना तय है.
प्रदेश की सियासत में अहम हिस्सेदारी रखने वाली ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. पार्टी में टूट के बाद पार्टी के हालात बहुत बुरे हैं. हाल में हुए लोकसभा चुनाव में उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. पार्टी के युवा चेहरे दुष्यंत चौटाला के पार्टी छोड़ने के बाद इनेलो के हालत बहुत खराब हो गए हैं. आने वाले विधानसभा चुनाव यह भी तय कर देंगे कि हरियाणा में इनेलो का अस्तित्व रहेगा या वो एक अध्याय बन कर रह जाएगी.
इनेलो का साथ छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले दुष्यंत चौटाला की भी सियासी परीक्षा इन विधानसभा चुनाव में होने जा रही है. उनके लिए ये चुनाव ‘करो या मरो’ की स्थिति वाले होंगे. क्योंकि इस बार जजपा को लोकसभा चुनाव में कोई खास कामयाबी नहीं मिली है. खुद दुष्यंत को हिसार लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के बृजेंद्र सिंह से हार का सामना करना पड़ा. वहीं पार्टी के अन्य प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. जजपा-आप का गठबंधन भी प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन को नहीं सुधार पाया. आने वाले समय में यह गठबंधन कितना लंबा चलेगा, इस पर भी सबकी निगाहें हैं.
हरियाणा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को अगर बारिकी से देखा जाए तो यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि बीजेपी अन्य दलों की तुलना में काफी आगे दिख रही है. विपक्षी दलों की उम्मीद तो सिर्फ इसी बात पर टिकी है कि चुनाव में जाट और नॉन जाट मुद्दा न बन जाए.