राज्यपाल धनखड़ को हटाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाएगी ममता सरकार, केंद्र से और बढ़ेगी तनातनी

ममता बनर्जी अब राज्यपाल जगदीप धनखड़ को हर हाल में करना चाहती हैं प्रदेश से बाहर, विधानसभा के पहले सत्र में राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी, क्या राज्यपाल को हटाने का अधिकार किसी प्रदेश की मुख्यमंत्री या वहां की सरकार को है? क्या कहता है संविधान?

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Politalks.News/WestBengal. विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के लगभग दो महीने बाद भी केन्द्र की मोदी सरकार औऱ पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार में ठनी हुई है. किसी न किसी बात पर आए दिन दोनों सरकारों के बीच तनातनी बढ़ जाती है. लेकिन अब ये लड़ाई और आगे बढ़ती दिखाई दे रही है. इसी कड़ी में अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब राज्यपाल धनकड़ को हटाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है. वैसे आज से करीब 11 साल पहले यदि पुंछी आयोग की सिफारिशों को संसद से मंजूरी मिल गयी होती, तो ममता बनर्जी ऐसा कर सकती थीं. लेकिन, वर्तमान परिस्थितियों में ममता चाहकर भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ को तब तक राज्य से बाहर भेजने में कामयाब नहीं होंगी, जब तक केंद्र उनकी मांग या सिफारिश पर गौर न करे.
पहले सत्र में पहला काम राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव!– 2 जुलाई से पश्चिम बंगाल विधानसभा का पहला सत्र शुरू होने वाला है. जानकार सूत्रों की माने तो ममता सरकार द्वारा विधानसभा सत्र में राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को हटाने जाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया जा सकता है. ममता का आरोप है कि राज्यपाल विधानसभा की कार्यवाही में अत्यधिक दखलंदाजी कर रहे हैं.
संविधान राज्य सरकार को नहीं देता इजाजत हालांकि इस प्रकार के प्रस्ताव को कोई संवैधानिक वैधता होना संभावित नहीं है. वहीं इस प्रकार का कोई भी प्रस्ताव अगर पारित होता है तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के बीच अनबन होना है. संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के अनुसार, राज्यपाल ‘राष्ट्रपति की प्रसन्नता पर्यन्त’ राज्य में केन्द्र का प्रतिनिधि होता है.इसलिए इन अनुच्छेदों का व्यावहारिक पक्ष यह है कि कोई राज्य सरकार राज्यपाल को हटा नहीं सकती है. ममता सरका की इस प्रस्तावित कार्यवाही के कुछ राजनैतिक नतीजे अवश्य होंगे.

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कमेटी और आयोगों की रिपोर्ट में क्या कहा गया?- वैसे राज्यपाल के पद से संबंधित विवाद उतने ही पुराने हैं जितना भारत का लोकतंत्र और इसको लेकर कई बार कमेटियां बनी है. जहां सरकारिया आयोग और वैंकटचलैया आय़ोग ने सिफारिश की थी कि राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होना चाहिए और उन्हें हटाए जाने की कार्यवाही राज्य सरकारों से विचार विमर्श करने के बाद ही होनी चाहिए. पुंछी आयोग ने राज्यपाल को हटाने की शक्तियां केन्द्र से छीन लिए जाने की सिफारिश की थी और कहा कि राज्यपाल को को राज्य विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव से हटाए जाना चाहिए.
केन्द्र और ममता दीदी के बीच बढ़ेगी खाई राज्यपाल जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव लाकर ममता बनर्जी इस मामले में फिर से राज्यपालों को लेकर बहस शुरू करना चाहती हैं. वैसे हाल ही के समय में अन्य राज्यपालों ने ऐसी विवादास्पद स्थितियां उत्पन्न की. उनमें राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र भी शामिल है. राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के निर्णय में विलंब कर दिया था. जब अशोक गहलोत सरकार, सचिन पायलट के नेतृत्व वाली पार्टी गुट के विद्रोह का सामना कर रही थी. इस लिस्ट में दूसरा नाम आता है महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का. कोश्यारी ने विधानसभा चुनाव के बाद अलसुबह ही बीजेपी के देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी.
मद्रास हाइकोर्ट में हार चुकी है तमिलनाडु सरकार राज्यपाल को हटाने का मुद्दा मद्रास हाइकोर्ट पहुंचा, तो तमिलनाडु सरकार को वहां मुंह की खानी पड़ी थी. मामला वर्ष 2020 का है. एक गैर-राजनीतिक संगठन ने मद्रास हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की. उसने मांग की कि हाइकोर्ट केंद्र सरकार को तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को हटाने का आदेश दे, लेकिन हाइकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था.

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