Politalks.news/Rajasthan. लोकतंत्र कहीं बैठा जरूर आंसू बहा रहा होगा. जनता का जनादेश बहुमत के साथ राजभवन जाकर मांग कर रहा है कि हाउस बुलाओ. राज्य की सरकार खुद विधानसभा सत्र बुलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही है. राजभवन में नारे लग रहे हैं, “तानाशाही नहीं चलेगी-नहीं चलेगी, लोकतंत्र के हत्यारों का नाश हो-नाश हो,” क्या यही लोकतंत्र है? क्या ऐसे ही तमाशा बनता रहेगा जनता के जनादेश का. एक बाद एक चुनी हुई राज्य सरकारों का गिरना आम बात होती जा रही है. राजस्थान में जो भी कुछ हो रहा है, वो लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं तो क्या है. अगर ऐसा नहीं होता तो जनता के चुने हुए विधायकों को राजभवन जाकर इंकलाब जिंदाबाद के नारे नहीं लगाने पड़ते.
कुछ तो जरूर ऐसा चल रहा है जिससे लोकतंत्र का दम घुट रहा है. इंकलाब जिंदाबाद के नारे कब लगते हैं. जरा सोचिए यह नारा कब लगा था. आजादी से पहले अंगेजी शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ भगतसिंह जैसे देश भक्तों ने लगाया था. अंगेजी तानाशाही के खिलाफ यही नारा आजादी की लड़ाई का मंत्र बना था. इस नारे की ताकत ने अंगेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी.
आजादी के 80 सालों के बाद अब जब हम अपने खुद के बनाएं हुए लोकतंत्र में जी रहे हैं, तो राजभवन जैसे स्थानों पर जनता के प्रतिनिधियों को जाकर प्रदर्शन करना पड़ रहा है. वो भी विधानसभा में बहुमत के पूरी संख्या बल के साथ. यह क्या तमाशा चल रहा है? क्यों चल रहा है. कौन इसे चला रहा है. क्यूं एक चुनी हुई सरकार मजबूर और लाचार होकर अपने ही अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करती हुई नजर आ रही है.
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जनता जिसके लिए यह लोकतंत्र बना. उसका क्या, वह कहां. सत्ता के लिए खेल पर खेल के बीच जनता की आवाज कहां नजर आ रही है. पिछले 15 दिनों से सरकार को एक होटल में बंद होकर बैठना पड़ गया हैं. क्यूं कौन है वो लोग, जो चुुनी हुई सरकार को गिराना चाहते हैं. क्यूं गिराना चाहते हैं. कौन है वो लोग जो करोड़ो रूपए लेकर विधायकों को खरीदने के लिए तैयार बैठे हैं, और क्यूं. क्या यही लोकतंत्र है. क्या इसलिए ही हमारा भारत महान शब्द कहें जाते हैं.
राज्य का मुख्यमंत्री विधानसभा सत्र नहीं बुलवा पा रहा है, जो कि उसका अधिकार है. वो देश की जनता को अपना बहुमत दिखाना चाहता है. विधानसभा में भी और सड़कों पर भी. लेकिन उसके बहुमत को साबित नहीं होने दिया जा रहा. यह कैसा लोकतंत्र है. यह घिनौना सियासी खेल कब समाप्त होगा. जानकार कह रहे हैं, कि इसका हल कोर्ट में नहीं बल्कि विधानसभा में ही निकलेगा. कोर्ट में जो मामले गए हुए हैं, वो अलग कारणों से गए हैं. वो स्पीकर के नोटिस, उनके अधिकार को लेकर हैं. यहां मामला सरकार का है. कोरोना के इतने विकट समय में जब जनता को सरकार की जरूरत है, ऐसे समय में सरकार पूरा बहुमत होने के बाद भी अपने अस्त्तिव को साबित करने के लिए जूझती नजर आ रही है.
हर दिन एक नई राजनीति सामने आ रही है. कहीं ईडी, कहीं इंकम टेक्स, कहीं सीबीआई. सबकुछ हो रहा है. एसओजी, कोर्ट और अब हालात यहां तक पहुंच गए कि सरकार सड़कों पर रोष जाहिर कर रही है. जरा सोचिए- सरकार. किसे कहते हैं, सरकार. क्या ताकत होती है सरकार की. लेकिन सरकार के उपर भी सरकार है. छोटी सरकार से बड़ी सरकार. अगर ऐसा महसूस नहीं करते तो मुख्यमंत्री नहीं कहते कि राज्यपाल उपर के दबाव में विधानसभा सत्र नहीं बुला रहे. सबके अपने संवैधानिक अधिकर हैं. राजभवन का है तो मुख्यमंत्री का भी है. ऐसे टकराव शोभा जनक नहीं. बल्कि लोकतंत्र को शर्मसार करते हैं.
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एक खास बात यह है कि लोकतंत्र बना ही जनता की आवाज को बचाने के लिए है. सारा लोकतंत्र चलता ही जनता के जानदेश से है. लोकतंत्र में जनता के जनादेश से बड़ा कुछ नहीं. यहां हालात ऐसे हैं कि जनता के जनादेश से चुनी हुई सरकार, अपने ही अधिकार को प्राप्त करने के लिए असहाय सी नजर आ रही है.