नेपाल में ओली ने दिखाया राजनीतिक कौशल, फिर बने प्रधानमंत्री, विपक्ष साबित नहीं कर पाया बहुमत

केपी शर्मा ओली ने एक बार फिर से संभाली नेपाल के प्रधानमंत्री पद की कमान, तमाम कोशिशों के बाद भी नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) का विपक्षी गठबंधन गुरुवार को नई सरकार बनाने के लिए सदन में आवश्यक बहुमत जुटाने में रहा नाकाम

केपी शर्मा ओली फिर बने नेपाल के प्रधानमंत्री
केपी शर्मा ओली फिर बने नेपाल के प्रधानमंत्री

Politalks.News/Nepal तमाम कोशिशों के बाद भी नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) का विपक्षी गठबंधन गुरुवार को नई सरकार बनाने के लिए सदन में आवश्यक बहुमत जुटाने में नाकाम रहा और केपी शर्मा ओली ने एक बार फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री पद की कमान संभाल ली है. राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने विपक्षी दलों को गुरुवार रात 9 बजे तक नई सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत के साथ आने के लिए कहा था, लेकिन विपक्षी धड़ों के बीच गुटबाजी की वजह से आपसी सहमति नहीं बन सकी. इससे पहले केपी शर्मा ओली सोमवार को प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत नहीं हासिल कर सके थे. विपक्षी गठबंधन में एकमत नहीं होने की वजह से ओली फिर से प्रधानमंत्री बन गए.

आपको बता दें, सोमवार को नेपाल की संसद प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत के लिए हुए मतदान में केपी शर्मा ओली के पक्ष में महज 93 वोट ही पड़े थे. जबकि विपक्ष में 124 सांसदों ने मतदान किया. ओली की अपनी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल के 28 सांसद व्हीप का उल्लंघन करते हुए सदन में उपस्थित ही नहीं हुए थे. विश्वास प्रस्ताव के दौरान कुल 232 सदस्यों ने मतदान किया था.

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दरअसल पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड‘ की अगुवाई वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) ने पार्टी के विभाजन के 3 महीने बाद ओली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था जिसके बाद ओली सरकार को फ्लोर टेस्ट का सामना करना पड़ा. राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच नेपाल में सोमवार को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था जिसमें ओली विश्वास मत हासिल नहीं कर सके थे. हालांकि राष्ट्रपति की ओर से नई सरकार के गठन को लेकर दी गई समयसीमा गुरुवार रात 9 बजे हो रही थी, लेकिन इस बीच विपक्षी गठबंधन में कोई सहमति नहीं बन सकी. लेकिन गुरुवार को विपक्षी दल नई सरकार बनाने के लिए सदन में आवश्यक बहुमत जुटाने में असफल रहे, जिसके बाद ओली के प्रधानमंत्री पद पर दोबारा काबिज होने का रास्ता साफ हो गया.

ओली के विश्वास मत खोने के बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने बृहस्पतिवार रात तक सरकार गठन की समयसीमा तय की थी, लेकिन नेपाल के राजनीतिक दल अपने धड़ों के बीच गुटबाजी के चलते कोई सहमति नहीं बना पाए. इससे पहले शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री पद के लिये दावा पेश करने का निर्णय लिया था, लेकिन गठबंधन सरकार बनाने की उसकी कोशिशों को तब झटका लगा जब महंत ठाकुर की अगुवाई वाली जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के एक वर्ग ने साफ कर दिया कि वह सरकार गठन की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेगा.

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आपको बता दें, ठाकुर के नेतृत्व वाले धड़े के प्रतिनिधि सभा में करीब 16 मत हैं. नेपाली कांग्रेस के पास 61 मत हैं. उसे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी मध्य) का समर्थन हासिल है, जिसके पास 49 मत हैं. कांग्रेस-माओवादी मध्य के गठबंधन को उपेन्द्र यादव नीत जनता समाजवादी पार्टी के करीब 15 सांसदों का भी समर्थन हासिल है. लेकिन इन तीनों दलों के पास कुल 125 मत हैं जो 271 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 136 से 11 मत कम हैं.
सीपीएन-यूएमएल के माधव कुमार नेपाल-झालानाथ खनल धड़े से संबंध रखने वाले सांसद भीम बहादुर रावल ने गतिरोध खत्म करने के लिये मंगलवार को दोनों नेताओं के करीबी सांसदों से नयी सरकार का गठन करने के लिये संसद सदस्यता से इस्तीफा देने का आग्रह किया था. रावल ने बुधवार को ट्वीट किया कि ओली नीत सरकार को गिराने के लिये उन्हें संसद सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये.

सांसद भीम बहादुर रावल ने लिखा, ”असाधारण समस्याओं के समाधान के लिये असाधारण कदम उठाए जाने की जरूरत होती है. प्रधानमंत्री ओली को राष्ट्रीय हितों के खिलाफ अतिरिक्त कदम उठाने से रोकने के लिये उनकी सरकार गिराना जरूरी है. इसके लिये हमें संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये. राजनीतिक नैतिकता और कानूनी सिद्धांतों के लिहाज से ऐसा करना उचित है.”

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बता दें, यदि नेपाल-खनल धड़े के यूएमएल के 28 सांसद एक साथ संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देते तो नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-माओवाद मध्य के लिये जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के एक धड़े के सांसदों का समर्थन लिये बिना भी नयी सरकार के गठन की राह आसान हो जाती, क्योंकि यूएमएल के 28 सांसद सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देते हैं तो 271 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में सांसदों की संख्या घटकर 243 हो जाती और बहुमत का आंकड़ा भी कम हो जाता. इसके बाद नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-माओवाद मध्य गठबंधन आसानी से सरकार बना सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. ऐसे में केपी शर्मा ओली ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए न सिर्फ अपने आप को सिद्ध किया बल्कि अपना वजूद यानी कुर्सी बचाने में भी कामयाब रहे.

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