जानिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की पूरी कहानी, कैसे अनदेखी करना भारी पड़ा कांग्रेस को

पीएम मोदी से मुलाकात के बाद सिंधिया ने चला मास्टर स्ट्रोक, दादी की राह पर चलते हुए सौंपा अपना इस्तीफा, सीएम पद या कैबिनेट के बीच अटक रही बात, कांग्रेस के पास बचे 88 विधायक जबकि बीजेपी के पास बहुमत से तीन ज्यादा 107

पॉलिटॉक्स न्यूज/मध्यप्रदेश. ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की लंबे समय से अनदेखी करना कांग्रेस को आखिरकार भारी पड़ ही गया. लगातार मिल रहे संकेतों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा और अब हालात ये हैं कि अपनी दादी विजयराजे सिंधिया के नक्शे कदम पर चलते हुए सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. सिंधिया के इस्तीफा देते हुए कमलनाथ सरकार में 22 विधायकों ने भी ‘मेरा नेता – मेरा स्वाभिमान’ शीर्षक से अपना इस्तीफा दे दिया. इन सभी कांग्रेस नेताओं के बीजेपी में जाने की संभावना है. 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया ने 36 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और गठन के केवल 19 महीनों बाद सरकार गिर गई थी. हालिया ताजा समाचार ये हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया फिलहाल आज बीजेपी में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन घटनाक्रम के बाद बीजेपी का मध्यप्रदेश में ऑपेरशन होली सफल होते दिख रहा है.

मध्यप्रदेश में इस सियासी उठापटक की सम्भावनाएं हफ्तेभर पहले ही नजर आने लगीं थीं, जब कांग्रेस, सपा-बसपा और निर्दलीय सहित सरकार के 10 विधायकों के दिल्ली के एक होटल में होने की बात सामने आई थी. इस बीच कांग्रेस नेताओं ने वहां पहुंच 6 विधायकों को वहां से भोपाल ले जाने में सफल हुए. शेष चार में से एक ने इस्तीफा दे दिया और दूसरे ने मंत्री न बनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की. इसके बाद सीएम कमलनाथ खुद डेमेज कंट्रोल करने में लगे लेकिन बिगड़ी परिस्थितियों का सही आकलन कमलनाथ कर ना सके.

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इधर महाराज सिंधिया ने मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए बाजी ही पटल दी. सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफे के बाद प्रदेश में इस्तीफों की झड़ी लग गई. 22 सिंधिया समर्थक विधायकों के टूटने के साथ ही कमलनाथ सरकार का गिरना तय हो गया है. मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं. यहां 2 विधायकों का निधन हो गया है. इस तरह से विधानसभा की मौजूदा शक्ति 228 हो गई है. कांग्रेस के पास कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल था, जिनमें से 22 ने इस्तीफे दे दिए हैं. यानी अब कांग्रेस के पास 99 विधायकों का ही समर्थन रह गया है. जबकि बीजेपी के पास अपने 107 विधायक हैं. ऐसे में 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा की संख्या 206 रह जाएगी, जिसके लिहाज से बहुमत के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी. ऐसे में ताजा आंकड़ों के हिसाब से बीजेपी कांग्रेस से आगे है और उसके पास सरकार बनाने का मौका दिखाई दे रहा है. हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति ने कहा है कि वो नियमों के हिसाब से ही आगे की कार्रवाई करेंगे.

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बता दें, ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों की लंबे समय से सिंधिया को मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की लड़ाई चल रही थी लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने इस मामले को टाले रखा. नाराज होकर सिंधिया ने पहले यूपी प्रभारी से इस्तीफा दिया और बाद में अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल से पूर्व कांग्रेस मंत्री हटाया लेकिन किसी ने इस पर इतना गौर नहीं किया. सरकार गठन के समय भी मुख्यमंत्री बनाए जाने की लड़ाई में राहुल गांधी ने सुलह कराते हुए कमलनाथ को सीएम पद दिलवा दिया जबकि मप्र में 15 साल से कांग्रेस का सूखा हटाने में सिंधिया का बड़ा योगदान रहा था. सिंधिया की ताकत का कांग्रेस ने आकंलन थोड़ा गलत किया और शायद पार्टी को अब इस बात का अहसास हो रहा हो.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का फोन सोमवार रात से ही बंद आ रहा था. आज उनके पिता माधोराज सिंधिया की 75वीं जयंती के अवसर पर ज्योतिरादित्य के एक बड़ा कदम लेने की पूरी उम्मीद थी. इसी के चलते मंगलवार सुबह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहले अमित शाह के आवास जाकर शाह से मुलाकत की, इसके बाद शाह के साथ ही पीएम आवास जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. पीएम मोदी और अमित शाह के साथ चली लगभग एक घण्टे की मुलाकत के बाद दोपहर एक बजे सिंधिया ने आलाकमान के नाम अपना इस्तीफा सार्वजनिक कर दिया. इस बीच सिंधिया ने मीडिया से भी कोई बात नहीं की और पत्रकारों को केवल ‘हैलो हैप्पी होली’ बोलकर निकल गए. मप्र के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए साफ तौर पर कहा कि ये कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई का परिणाम है और हमें इससे कोई लेना देना नहीं है.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार पता चला है कि ज्योतिरादित्य को राज्यसभा के टिकट के साथ मोदी सरकार के अगले मंत्रीमंडल विस्तार में कैबिनेट मिनिस्टर बनाया जा सकता है. साथ ही उनके समर्थित विधायकों को प्रदेश कैबिनेट में कुछ अहम विभागों के साथ उप मुख्यमंत्री पद मिल सकता है. हालांकि ये भी खबर आ रही है कि सिंधिया की मांग मुख्यमंत्री बनने की है और इसी वजह से मामला अटक हुआ है.

वहीं कांग्रेस की विधायक दल की बैठक में भी कमलनाथ सरकार को एक और झटका लगा. मंगलवार शाम 6 बजे शुरू हुई इस बैठक में कांग्रेस के महज 88 विधायकों ने हिस्सा लिया है. यानी कांग्रेस के चार और विधायक मीटिंग से गायब रहे. कांग्रेस की मीटिंग करीब दो घंटे तक चली. विधायक दल की इस बैठक में कुल 92 विधायक पहुंचे, जिनमें 4 निर्दलीय थे. बता दें कि कांग्रेस के कुल 114 विधायक थे, जिनमें से 22 ने खुले तौर पर अपने इस्तीफे दे दिए हैं, जबकि अब चार और विधायक मिसिंग हैं. यानी कुल 26 विधायक कांग्रेस से छिटकते नजर आ रहे हैं.

बताते चले कि ज्योतिरादित्य सिंधिया करीब 8 माह पहले तत्कालीन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने पहुंचे थे और वहीं से सिंधिया के मास्टर स्ट्रोक की नीव रखी जा चुकी थी. पॉलिटॉक्स ने ‘अमित शाह की मदद से सिंधिया बनेंगे मप्र के मुख्यमंत्री‘ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी. सिंधिया ने अपने इस्तीफे से इस खबर की करीब करीब पुष्टि तो कर दी है. अब देखना यह होगा कि महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इतनी बड़ी लड़ाई क्या सिर्फ केन्द्र में कैबिनेट मंत्री के लिए लड़ी थी या आने पिताजी का मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करने के लिए.

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