मध्य प्रदेश की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर है जब एक पीढ़ी अपनी विरासत दूसरी पीढ़ी को सौंपने जा रही है. बात कर रहे है मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट की, जहां पिछली नौ बार के सांसद और लोकसभा में वरिष्ठ नेता कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी राजनीतिक विरासत देकर खुद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की सत्ता चलाएंगे. आज तक कमलनाथ ने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन अब पहली बार विधानसभा चुनाव के दंगल में उतर रहे हैं. वहीं नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से नामांकन दर्ज किया है.

1980 में इंदिरा गांधी के कहने और संजय गांधी के आदेश पर मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ने पहुंचे कमलनाथ ने पहले ही चुनाव में अपनी अलग पहचान स्थापित की. छिंदवाड़ा लोकसभा के अंर्तगत आने वाले पातालकोट जिसके बारे में कहा जाता था कि यहां धूप भी बड़ी मुश्किल से पड़ती थी, वहां सांसद रहते कमलनाथ ने विकास की ऐसी गंगा बहाई कि गुजरात मॉडल की तरह पिछले विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा मॉडल की खूब चर्चा हुई. वैसे पहले संजय गांधी की मौत और उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या ने कमलनाथ के राजनीतिक करिअर के उठान पर असर ज़रूर डाला लेकिन वे कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति प्रतिबद्ध बने रहे.

कमलनाथ के अनुसार, उनकी लोकसभा सीट नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय के बेहद ही करीब है. उन्होंने जितने भी लोकसभा चुनाव लड़े, आरएसएस ने उनके खिलाफ जमकर प्रचार किया. संघ स्वयंसेवक यहां चुनाव आते ही डेरा डाल देते थे और घर-घर जाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार करते थे लेकिन उन्होंने अपने काम से उनके इस दुष्प्रचार का जवाब दिया. अब कमलनाथ के सुपुत्र नकुलनाथ के समक्ष भी यही चुनौतियां आएंगी.

हालांकि कमलनाथ ने सांसद रहते छिंदवाड़ा के विकास के साथ ही यहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए कई अभूतपूर्व काम किए. आदिवासी और नामालूम इलाक़े से 1980 में पहली बार जीतने वाले कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है. उन्होनें यहां स्कूल-कालेज सहित आईटी पार्क तक बनवाए हैं. स्थानीय लोगों को रोजगार मिले, इस सोच के साथ उन्होंने केन्द्र में मंत्री रहते वेस्टर्न कोल्ड फील्ड्स और हिन्दुस्तान यूनिलिवर जैसी कंपनियों को छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में स्थापित कराया. उन्होंने यहां कई ट्रेनिंग सेंटर भी खुलवाए ताकि स्थानीय लोग आत्मनिर्भर बन सकें.

नौ बार लोकसभा चुनाव जीत लोकतंत्र के सबसे बडे़ मंदिर पहुंच चुके कमलनाथ इस बार छिंदवाड़ा से लोकसभा से नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. लगातार 1980, 84, 89, 91, 98, 99, 2004, 2009 और 2014 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज की. 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद पार्टी ने जब उनको टिकट नहीं दिया तो उन्होंने छिंदवाड़ा से अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव लड़वाया और कमलनाथ के नाम पर उन्होंने भी जीत दर्ज की. हालांकि वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं. उनके इस्तीफे के बाद हुए हुए उपचुनाव में कमलनाथ को बीजेपी प्रत्याशी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा से हार का स्वाद चखना पड़ा था. अगले साल 1998 में फिर हुए चुनावों में इस बार पटवा कमलनाथ के सामने पानी भरते नजर आए.

कमलनाथ की छिंदवाड़ा लोकसभा में लोकप्रियता इस कदर हावी है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में लोकसभा की सात विधानसभाओं में से चार पर बीजेपी विधायकों का कब्जा होने के बावजूद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने जीत दर्ज की. यही वजह है कि छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है इसीलिए उन्होंने छिंदवाड़ा के शिकारपुर में अपना बंगला बनवाया है, जहां उनका हेलीकॉप्टर सीधे उतरता है. अब उसी कमलनाथ के गढ़ में उनके बेटे नकुल नाथ अपने पिता की विरासत को आगें बढ़ाने मैदान में उतर रहे हैं. 9 अप्रैल, 2019 को जहां कमलनाथ विधायक का चुनाव लड़ने के लिए छिंदवाड़ा विधानसभा से नामांकन दाखिल किया तो वहीें छिंदवाड़ा लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नकुलनाथ ने भी पर्चा दाखिल किया है.

दरअसल, कमलनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधायक होना जरूरी है. वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को जीत नकुलनाथ अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं. छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ के सामने बीजेपी ने नत्थन शाह को चुनाव मैदान में उतारा है जो छिंदवाड़ा लोकसभा की जुन्नारदेव विधानसभा सीट से 2013 में विधायक रहे और आरएसएस के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से देखे जाते रहे हैं. ऐसे में उनका वास्तविक मुकाबला नागपुर यानि राष्ट्रीय स्वमंसेवक संघ से है. इस तरह कमलनाथ की परंपरागत लोकसभा सीट पर अपने पिता की विरासत को संभालना और उसे आगे बढ़ाना नकुलनाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, वहीं कमलनाथ के सामने बीजेपी से युवा नेता विवेक साहू बंटी होंगे जो उन्हें विधानसभा चुनाव में चुनौती देंगे.

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