जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल बन गए हैं. आज राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद थे. लोकपाल के साथ जस्टिस दिलीप बी. भोंसले, जस्टिस प्रदीप मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी को न्यायिक सदस्य नियुक्त किया गया है. जबकि दिनेश कुमार जैन, अर्चना रमासुदर्शन, महेंद्र सिंह और डॉ. महेंद्र सिंह को गैर न्यायिक सदस्य बनाया गया है.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, कानूनविद मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने सर्वसम्मति से पीसी घोष को लोकपाल नियुक्त करने की सिफारिश की थी. लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी चयन समिति के सदस्य थे, लेकिन वे चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए. इसकी वजह बताते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में कहा था कि लोकपाल अधिनियम-2013 की धारा चार में ‘विशेष आमंत्रित सदस्य’ के लोकपाल चयन समिति की हिस्सा होने या इसकी बैठक में शामिल होने का कोई प्रावधान नहीं है. खड़गे ने तब कहा था कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने लोकपाल कानून में ऐसा संशोधन करने का कोई प्रयास नहीं किया जिससे विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का नेता चयन समिति के सदस्य के तौर पर बैठक में शामिल हो सके.
जस्टिस घोष 1997 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज बने और उसके बाद दिसंबर 2012 में उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. वे 2013 से 2017 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए उनकी ओर से किए गए फैसलों में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सहयोगी रही शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार देने का मामला भी शामिल है. लोकपाल बनने से पूर्व घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य थे.
गौरतलब है कि लोकपाल की मांग को लेकर 2012 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की अगुवाई में बड़ा आंदोलन हुआ था. इसमें अन्ना के अलावा दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनकी सरकार के कई मंत्री व विधायक, पुदुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी सहित कई जानी मानी-हस्तियों ने शिरकत की थी. 12 दिन चले इस आंदोलन के दौरान तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ पूरे देश में जबरदस्त जन प्रतिरोध देखने को मिला था.