झारखंड: पिछले चुनावों में कई दिग्गजों ने तय किया था अर्श से फर्श तक का सफर

चार पूर्व मुख्यमंत्री और एक डिप्टी सीएम हार गए थे चुनाव, तीन बार के सीएम अर्जुन मुंडा को खुरसावां से तो बाबूलाल को दो सीटों पर मिली थी पराजय, बरहेट ने बचाया कोड़ा का सम्मान

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. झारखंड (Jharkhand) में इसी महीने में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने जा रहे हैं. जैसा कि पहले ही कह चुके हैं, झारखंड की राजनीति इतनी आसान नहीं रही जितनी दिखायी देती है. पिछले 19 सालों में यहां तीन बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है. यहां के सियासी घटनाक्रम तो छोड़िए, चुनावी परिणाम भी राजनीतिक दलों को अप्रत्याशित नतीजे देते रहे हैं. हालात ये है कि यहां पिछले विधानसभा चुनाव में जनता जनार्दन ने पूर्व मुख्यमंत्रियों तक को ऐसा सबक सिखाया जिसके चलते इन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र तक में जीत नसीब नहीं हो पायी. विधानसभा चुनाव-2014 के परिणाम कुछ ऐसे रहे जैसे पिछले चुनावों में भी नहीं रहे थे.

पिछले चुनावों में जनता ने ऐसी पटखनी दी कि चार पूर्व मुख्यमंत्री सहित एक उप मुख्यमंत्री अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल न कर सके. अर्जुन मुंडा भी इस फेहरिस्त में शामिल थे जो तीन बार झारखंड (Jharkhand) की सत्ता की कुर्सी पर आसीन हो चुके हैं. 2014 के चुनावों (Assembly Election) में भाजपा के मुंडा खरसावां से चुनाव हारे. उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के दशरथ गगराई ने करीब 12 हजार वोटों से हराया. गगराई को 72002 वोट मिले तो मुंडा को 60036 मत. अर्जुन मुंडा की हार भाजपा के लिए एक सदमे की तरह थी. इसी हार ने वर्तमान मुख्यमंत्री रघुबर दास को आगे आने का अवसर दिया.

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मुंडा के साथ पूर्व मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन अपना सम्मान बरहेट विधानसभा (Assembly Election) सीट से बमुश्किल बचाने में कामयाब हो पाए. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सोरेन ने बरहेट के साथ दुमका सहित दो सीटों से नामांकन दर्ज किया था. दुमका में भाजपा की लुइस मरांडी ने उन्हें करीब पांच हजार वोटों से हराया. दूसरी सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बरहेट सीट पर हेमंत सोरेन ने हेमलाल मुर्मू को हराया.

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प्रदेश (Jharkhand) के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी गिरिडीह और धनवार सहित दो सीटों से चुनाव (Assembly Election) लड़ा और दोनों जगह से हार का मुंह देखना पड़ा. धनवार में उन्हें माले के राजकुमार यादव ने करीब 11 हजार वोटों से हराया. गिरिडीह में तो स्थिति ज्यादा खराब रही. यहां वे तीसरे नंबर पर रहे. इस सीट पर भाजपा ने निर्भय शाहबादी ने जीत दर्ज की. मरांड को निर्भय को मिले 57531 के मुकाबले केवल 26651 वोट मिल पाए.

पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा मझगांव से चुनाव हार गए. उन्हें झामुमो के नीरल पूर्ति ने करीब 11 हजार वोटों से पटखनी दी. इसी तरह उपमुख्यमंत्री रहे चुके सुदेश महतो को सिल्ली ने जनता से झटका मिला. अमित महतो ने सुदेश को करीब 30 हजार वोटों के भारी अंतर से पराजित किया. सिल्ली के उप चुनावों में सुदेश महतो को हार का सामना करना पड़ा.

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झारखंड (Jharkhand) की दूसरी बड़ी क्षत्रप पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख खुद दो विधानसभा सीटों से नामांकन करने के बावजूद दोनों जगहों से हार (Assembly Election) गए थे. लेकिन उनकी पार्टी के आठ विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसी पार्टी के साथ मिलकर भाजपा ने रघुबर दास के नेतृत्व में सरकार बनायी. बाद में झाविमो के 6 विधायक भाजपा में विलय हो गये और दोनों पार्टियों के बीच रार पड़ गयी.

गौर करने वाली बात ये है कि जितने भी पूर्व मुख्यमंत्री पिछले विधानसभा के दंगल में चुनाव हारे, वे सभी अपनी अपनी पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे. भाजपा के अर्जुन मुंडा को खरसावां, बाबूलाल मरांडी को गिरिडीह और धनवार, मधु कोड़ा को मझगांव और हेमंत सोरेन को दुमका से पराजय देखनी पड़ी.

पिछले दो दशकों में हुए चुनावों (Assembly Election) में रघुबर दास झारखंड (Jharkhand) के इकलौते मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्होंने अपने पांच साल का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया है. दूसरे नंबर पर भाजपा के अर्जुन मुंडा हैं जिन्होंने 2 साल 4 महीने और 7 दिन (11 सितम्बर, 2010 से 18 जनवरी, 2013) तक सत्ता की बागड़ोर संभाली है. प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 2 साल 4 महीने और 3 दिन (5 नवंबर, 2000 से 18 मार्च, 2003) तक पदभार संभाला है.

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