दौसा संसदीय सीट, वह क्षेत्र जिसकी नुमाइंदगी लंबे समय तक कांग्रेस के दिग्गज़ नेता राजेश पायलट ने की. वह इस सीट से पांच बार सांसद चुने गए थे. हालांकि दौसा कांग्रेस का मजबूत किला रहा है लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई और तभी से कांग्रेस के लिए यहां से जीत का खाता खुलना बंद हो गया. इस बार दौसा सीट पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. कांग्रेस ने सविता मीणा और बीजेपी ने जसकौर मीणा को प्रत्याशी बनाया है. अब जनता जनार्दन दोनों की किस्मत का फैसला करेगी.

दौसा सीट का इतिहास
दौसा लोकसभा सीट का लंबे समय तक राजेश पायलट ने प्रतिनिधित्व किया है. वह यहां से पांच बार सांसद की कुर्सी संभाल चुके हैं और यहीं से कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे. उनकी पॉपुलर्टी यहां इतनी अधिक थी कि 2000 में जटवाड़ा के पास एक सड़क हादसे में उनकी मौत के बाद राजनीति में अनुभवहीन उनकी पत्नी रमा पायलट ने बीजेपी के आर.के. शर्मा को करीब 65 हजार मतों से मात दी. 2004 में राजेश पायलट के सुपुत्र सचिन पायलट ने राजनीति में कदम रखा और एक लाख 15 हजार मतों से यह सीट अपने नाम की. 2009 में परिसीमन के बाद ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई.

उसके बाद हुए दोनों चुनावों में कांग्रेस की हालात बदतर हो गई. 2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मण मीणा के साथ बीजेपी उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी. इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी किरोड़ी लाल मीणा ने जीत हासिल की. 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट मोदी लहर में बह गई और बीजेपी के हरीश मीणा यहां से विजयी हुए. हरीश ने कांग्रेस के नमोनारायण मीणा और तत्कालीन सांसद किरोड़ीलाल मीणा को करीब 45 हजार वोटों से मात दी. कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे. लेकिन विधानसभा चुनावों से पहले हरीश मीणा ने बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया और देवली-उनियारा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बन गए.

दौसा सीट का गठन
दौसा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें दौसा, बस्सी, चाकसु, थानागाजी, बांदीकुई, सिकराय, महुवा और लालसोट शामिल हैं. यहां की चार विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति और दो सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इन क्षेत्रों में आए विधानसभा चुनाव के नतीजे जहां कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने वाले हैं, वहीं बीजेपी पर संकट के बादल मंडरा रहे है. इन आठ में से 5 सीटों पर कांग्रेस और शेष 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया है. बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका.

अब बस्सी और थानागाजी विधानसभा से विजयी प्रत्याशियों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. ऐसे में दौसा संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटों की बहुतायत यहां कांग्रेस का दावा क्षेत्र में मजबूत करती है. सचिन पायलट की वजह से गुर्जर वोट बैंक जिस तरह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में आ गया था, अगर यह साथ लोकसभा चुनाव में भी मिला तो कांग्रेस को यहां बड़े अंतर से जीत मिल सकती है. लेकिन हाल ही में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बीजेपी में शामिल होने के बाद गुर्जर बीजेपी की तरफ अपना रुख करेंगे, इस बात में कोई संशय नहीं है.

जसकौर बनाम सविता मीणा
यहां से बीजेपी उम्मीदवार जसकौर मीणा पूरी तरह मोदी के भरोसे है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही वोट मांग रही है. क्षेत्र के दिग्गज़ किरोड़ी लाल मीणा ने उनकी परेशानी बढ़ा रखी है. पूर्व सांसद किरोड़ी लाल मीणा प्रदेश के अन्य हिस्सों में तो पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार करते नजर आ रहे है लेकिन एकआद जनसभाओं को छोड़ अपने गृह क्षेत्र में उनकी कुछ खास सक्रियता देखने को नहीं मिल रही है. असक्रियता का कारण है कि किरोड़ी अपने परिवार में से किसी सदस्य को यहां से टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को दरकिनार करते हुए सवाईमाधोपुर की पूर्व सांसद जसकौर मीणा को टिकट थमा दिया.

पार्टी पहले यहां से महुवा विधायक ओमप्रकाश हुड़ला की पत्नी प्रेमप्रकाश हुड़ला को टिकट देना चाहती थी लेकिन किरोड़ी लाल मीणा के दबाव में ऐसा संभव न हो सका. इस बात के चलते मीणा के साथ हुड़ला भी दौसा में असक्रिय हैं. टिकट का देरी से घोषित होना भी जसकौर के लिए परेशानी का सबब है. जसकौर मीणा सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र से 1998 और 1999 में दो बार सांसद और वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकी है.

बात करें सविता मीणा की तो सविता मीणा इससे पहले बांदीकुई विधानसभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी है. वह दौसा के विधायक मुरारीलाल मीणा का पत्नी है. दौसा विधायक का प्रभाव क्षेत्र में आसानी से देखा जा सकता है. मीणा तीसरी बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए है. वह एक बार बांदीकुई और दो बार दौसा सीट से विधायक चुने गए है और गहलोत की पिछली सरकार में मंत्री भी चुके हैं. उनकी इस क्षेत्र में पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके है. सविता के चुनाव प्रचार की पूरी जिम्मेदारी मुरारी लाल मीणा ने अपने कंधों पर ले रखी है. अब 23 मई को ये देखना दिलचस्प होगा कि दौसा मोदी लहर पर सवार होगा या कांग्रेस के हाथ को मजबूत करेगा.

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