जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 और 35ए लागू होने के कारण उसे पूरे देश से अलग राज्य का दर्जा मिला हुआ है, इसको लेकर बहुत विवाद है. केंद्र की सत्ता में आने से पहले धारा 370 भाजपा का चुनावी मुद्दा भी हुआ करता था. भाजपा उसे हटाने की मांग करती थी, लेकिन अब पांच साल पूरे करने के बाद भाजपा फिर से पांच साल के लिए सत्ता में आ गई है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हमेशा की तरह लगी हुई है. अब भाजपा के दुबारा सरकार में आने के बाद धारा 35ए के मुद्दे ने भी जोर पकड़ लिया है.

धारा 370 के तहत कश्मीर राज्य तीन विषयों में भारतीय संघ से जुड़ा हुआ है. बाकी मामले में उसे स्वायत्तता हासिल है. धारा 370 अस्तित्व में कैसे आई, इसका इतिहास उस प्रारूप से संबंधित है, जो भारतीय रियासतों के एक राष्ट्र भारत में विलय के लिए बनाया गया था, क्योंकि अंग्रेज सरकार भारत छोड़कर जा रही थी, भारतीय रियासतों को नहीं. इसलिए विलय का प्रारूप बना. भारत के दो हिस्से किए गए, हिंदुस्तान और पाकिस्तान. इस स्थिति में विलय का प्रारूप बनाना जरूरी भी था. विलय का प्रारूप बनने के बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन की अध्यक्षता में 25 जुलाई 1947 को सभी रियासतों के प्रमुखों की बैठक हुई, जिसमें रियासतों से यह तय करने के लिए कहा गया कि वे किस देश में रहना पसंद करेंगे.

रियासत प्रमुखों को वितरित किए गए विलय पत्र का प्रारूप एक समान था, जिसमें कुछ भी लिखना या काटना संभव नहीं था. रियासतों के राजा या नवाब को अपना नाम, पता, रियासत का नाम और उस पर मुहर लगाकर दस्तखत करके यह निर्णय करना था कि वे किस देश रहेंगे. 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय पत्र पर दस्तखत किए थे. अगले दिन 27 अक्टूबर को माउंटबेटन ने इसकी मंजूरी दी. इसमें कोई शर्त नहीं थी और विशेष दर्जे जैसी कोई मांग भी नहीं थी. इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होने के बाद पूरा जम्मू-कश्मीर (पाक अधिकृत कश्मीर सहित) भारत का अभिन्न अंग बन गया था. सरदार वल्लभभाई पटेल गृह मंत्री थे और केंद्र और रियासत के कानून एक समान थे.

जम्मू-कश्मीर को लेकर 17 अक्टूबर 1949 को पैदा हुए विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि यह राज्य समस्याग्रस्त बन गया. उस दिन संसद में गोपाल स्वामी अयंगार ने कहा कि हम जम्मू और कश्मीर को नया आर्टिकल देना चाहते हैं. तब महाराजा हरि सिंह के दीवान रहे गोपाल स्वामी अयंगार भारत के पहले मंत्रिमंडल के सदस्य थे. उनसे पूछा गया, ऐसा क्यों, तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इधर बचे हिस्से में नई समस्याएं पैदा हो गई हैं. इस तरह वहां की स्थिति अन्य राज्यों से अलग है. ऐसे में फिलहाल वहां के लिए एक नए आर्टिकल की जरूरत होगी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में पूरा संविधान लागू करना संभव नहीं होगा. इसलिए अस्थायी तौर पर धारा 370 लगाई जा सकती है, जो हालात सामान्य होने के बाद हटा दी जाएगी.

बहस के बाद आयंगार का प्रस्ताव पारित हो गया और भारतीय संविधान के 21वें भाग में एक अनुच्छेद 370 भी जोड़ दिया गया. संविधान में यह धारा सबसे आखिरी में जोड़ी गई थी. इस धारा के तीन खंड हैं, इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है. हालांकि अब संविधान सभा नहीं है, इसलिए राष्ट्रपति को यह धारा हटाने के लिए किसी से परामर्श की जरूरत भी नहीं है.

इससे स्पष्ट है कि धारा 370 भारत की संसद ने लागू की है और वही उसे हटा भी सकती है. इस धारा को हटाने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को नहीं है, क्योंकि वहां के राजा ने इसे लागू नहीं किया था. यह धारा उस समय लागू की गई थी, जब वहां युद्ध जैसे हालात थे और पाक अधिकृत कश्मीर की जनता पलायन करके भारत में आ रही थी. इन परिस्थितियों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वहां संपूर्ण संविधान को लागू करना उचित नहीं समझा.

धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है. अन्य किसी विषय से संबंधित कानून लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति लेना जरूरी है. इस विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर में धारा 356 लागू नहीं की जा सकती. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार भी नहीं है. 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता. भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. भारतीय संविधान की धारा 360 को भी जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता जिसके तहत राज्य में वित्तीय आपातकाल लागू करने का प्रावधान है.

धारा 35ए का इतिहास यह है कि जम्मू-कश्मीर के अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के बाद शेख अब्दुल्ला वहां के अंतरिम प्रधानमंत्री बने थे. 1952 में इनका भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ समझौता हुआ, जो दिल्ली समझौता कहा जाता है. इसके तहत संविधान की धारा 370 (1) (डी) के तहत भारत के राष्ट्रपति को राज्य विषयों के लाभ के लिए संविधान में अपवाद और संशोधन करने का अधिकार है. इसका इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मई 1954 में एक आदेश के जरिए धारा 35ए लागू की थी. यह धारा जम्मू-कश्मीर की सरकार और वहां की विधानसभा को जम्मू-कश्मीर की स्थायी नागरिकता तय करने का अधिकार देती है. इसी धारा के आधार पर 1956 में जम्मू-कश्मीर ने राज्य में स्थायी नागरिकता की परिभाषा तय कर दी, जो अब विवाद की जड़ बनी हुई है.

जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 का कड़ा विरोध किया था. वह जम्मू-कश्मीर को अलग दर्जा दिए जाने के सख्त खिलाफ थे. इसके लिए उन्होंने एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगा- नारा भी दिया था. मतभेदों के कारण उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर नई राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी बिना परमिट जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकले थे, जिसके कारण 11 मई 1953 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद 23 जून 1953 को उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई. उस समय धारा 370 के तहत कश्मीर में बिना परमिट यात्रा करना गैर कानूनी था. यह प्रावधान बाद में हटा दिया गया.

धारा 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक वह है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो. भारत के किसी अन्य राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता है और इसलिए वह वहां वोट भी नहीं डाल सकता है. इसके तहत राज्य में कोई गैर कश्मीरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता. अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी अन्य राज्य के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाते हैं. साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं. राज्य सरकार अपने हिसाब से कोई कानून बदले तो उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. किसी अन्य राज्य का व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में व्यापारिक संस्थान भी नहीं खोल सकता है.

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