जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35ए हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद पूरे देश में भारी राजनीतिक उथल-पुथल मच गई है. सबसे ज्यादा परेशानी कश्मीर के अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों को है, जिनकी राजनीति ही कश्मीर की विशेष परिस्थितियों के आधार पर चलती थी. फारूख अब्दुल्ला आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें नजरबंद कर दिया गया है, जबकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कि वह अपनी मर्जी से अपने घर में बैठे हैं. कनपटी पर गन रखकर उनको संसद में नहीं लाया जा सकता. कांग्रेस भी भारी दुविधा में फंस गई है, क्योंकि कई कांग्रेस नेता मोदी सरकार के फैसले का समर्थन कर रहे हैं.
सोमवार को राज्यसभा में और मंगलवार को लोकसभा में विधेयक पारित हुआ. लोकसभा में अमित शाह ने हर सवाल का जवाब दिया और धारा 370 के पक्ष में जितने भी तर्क हो सकते थे, सबकी धज्जियां उड़ा दी. लोकसभा में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के प्रस्ताव का समर्थन 351 सदस्यों ने किया, जबकि 72 सदस्य विरोध में रहे. जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव 370 के मुकाबले 70 वोटों से पारित हुआ.
अमित शाह ने लोकसभा में प्रस्ताव पर हुई बहस के जवाब में विपक्षी सदस्यों के तमाम सवालों के जवाब दिए और कांग्रेस को बुरी तरह उलझा दिया. कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधरी मोर्चा संभाले हुए थे. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का मामला आंतरिक कैसे हो गया? इस मामले की निगरानी संयुक्त राष्ट्र कर रहा है. सरकार पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के बारे में क्यों नहीं सोच रही है? इस पर अमित शाह ने उलटे पूछ लिया कि क्या यह कांग्रेस का आधिकारिक रुख है.
अमित शाह ने स्पष्ट किया कि भारत और जम्मू-कश्मीर के संविधान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं. देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद को इसके लिए कानून बनाने का पूरा अधिकार है. जब मैं जम्मू-कश्मीर की बात करता हूं तो इसमें पीओके और अक्साई चिन भी शामिल है. जम्मू-कश्मीर में पीओके और लद्दाख में अक्साई चिन है. हम इनके लिए अपनी जान भी दे देंगे.
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अमित शाह के तेवर से संकेत मिलता है कि यह नए घटनाक्रम की शुरूआत है. सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने का पक्का इरादा कर लिया है. कश्मीर में महबूबा मुफ्ती और फारूख अब्दुल्ला बेचैन हैं. महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि धारा 370 से छेड़छाड़ करने के विस्फोटक नतीजे होंगे. फारूख अब्दुल्ला प्रतिनिधिमंडल के साथ रविवार को वह राष्ट्रपति से मिलकर मांग करने वाले थे कि धारा 370 हटाने का प्रयास नहीं किया जाए. हालांकि उन्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ी और महबूबा मुफ्ती के मुताबिक जो विस्फोटक नतीजे की आशंका थी, वह भी निर्मूल रही. उलटे उनकी खुद की पार्टी की जड़ें हिलती नजर आ रही हैं.
अब्दुल्ला और मुफ्ती की चेतावनियों की केंद्र सरकार ने परवाह नहीं की. अब खबर है कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती नजरबंद हैं. दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्री हैं और राहुल गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने उनको नजरबंद करने का विरोध किया है. श्रीनगर में फारूख अब्दुल्ला ने मंगलवार को पत्रकारों को बुलाया और अपने घर की छत से उनको संबोधित किया. उन्होंने आरोप लगाया कि अमित शाह ने संसद में झूठ बोला कि मैं अपनी मर्जी से घर में हूं.
मोदी सरकार के फैसले से कांग्रेस में भी मतभेद की स्थिति बन गई है. इसे भांपते हुए अमित शाह ने संसद में कांग्रेस सदस्यों से बार-बार पूछा कि वे धारा 370 का विरोध करते हैं या समर्थन, स्थिति स्पष्ट करें. जवाब में कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि हर चीज काली और सफेद नहीं होती. उसके बीच 50 रंग और होते हैं. गौरतलब है कि राहुल गांधी ने भी धारा 370 को हटाने का स्पष्ट विरोध नहीं किया है. इस मुद्दे पर उन्होंने मंगलवार को पहली बार ट्वीट किया था कि राष्ट्रीय एकीकरण को एक तरफ जम्मू-कश्मीर को तोड़कर, चुने हुए प्रतिनिधियों को कैद करके और संविधान का उल्लंघन करके आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, ज्योति मिर्धा ने फैसले का समर्थन किया है.
गौरतलब है कि सोमवार को राज्यसभा में जहां नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद जोरदार तरीके से फैसले का विरोध कर रहे थे, वहीं कांग्रेस के भुवनेश्वर कलीता ने मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि वह फैसले के समर्थन में थे. इसके बाद से ही संकेत मिलने लगे थे कि इस मुद्दे पर कांग्रेस एकजुट नहीं रह पाएगी. इससे पहले विपक्ष का बिखराव उसी समय सामने आ गया था, जब राज्यसभा में मोदी सरकार ने आरटीआई संशोधन और तीन तलाक विधेयक आसानी से पारित करवा लिए थे.
लोकसभा में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने जिस तरह राज्य के पुनर्गठन और धारा 370 हटाने का विरोध किया, उसकी बड़ी चर्चा है. कई लोग इसे सेल्फ गोल मान रहे हैं. उन्होंने जब यह कहा कि जम्मू-कश्मीर आंतरिक मामला नहीं है और संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में है तो इससे कई कांग्रेसियों को झटका लगा. सदन में ही कई सांसदों ने विरोध किया और सोनिया गांधी ने भी आश्चर्यचकित होकर उन्हें रोका. चौधरी के कहने का यह मतलब निकल रहा था कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानती है.