मतदान के बाद आए एक्जिट पोल्स के बाद हर जगह मोदी-मोदी का हल्ला है. होना भी जायज है क्योंकि अगर ये एक्जिट पोल्स नतीजों में तब्दील होते हैं तो मोदी इतिहास रचने की दहलीज पर खड़े होंगे. वो तीसरे ऐसे शख्स होंगे जो सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ वापसी कर रहे हैं. उनसे पहले ये कीर्तिमान जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी के नाम है.

लेकिन इन्हीं एग्ज़िट पोल्स ने आंध्र प्रदेश को लेकर यह आकलन बताया है कि यहां इस बार विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पूरा आंध्रा जगनमय होता दिखाई दे रहा है. जगन मोहन रेड्डी की आंधी में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी धाराशायी होती दिखाई दे रही है. लेकिन बीजेपी लहर और मोदी-मोदी के शोर के बीच जगन ने राज्य के माहौल को अपने पक्ष में आखिर कैसे किया, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं…

जगन मोहन रेड्डी के पिता वाईएसआर रेड्डी आंध्रप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री चुने रह चुके हैं. वह 2004 से 2009 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री रहे. उनकी लोकप्रियता उस समय आंध्रप्रदेश में अपने चरम पर थी. कांग्रेस ने उनकी लोकप्रियता के दम पर ही प्रदेश की सत्ता में 15 साल के बाद वापसी की थी. इस दौरान उनपर और उनके पुत्र जगन पर भ्रष्टाचार के अनेक कथित आरोप लगे लेकिन वाईएसआर की गाड़ी उसी स्पीड में चलती गई.

लेकिन साल 2009 में एक हेलिकॉप्टर हादसे में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत पूरे आंध्रा के लिए एक बड़ी क्षति थी. सैकड़ों लोगों ने उनकी मौत के बाद सदमे में आत्महत्या करने की कोशिश की. यह घटना ही उनकी लोकप्रियता को सबसे सामने रख देती है.

उनके निधन के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए उनके पुत्र तत्कालीन सांसद जगमोहन रेड्डी ने पार्टी आलाकमान के सामने सीएम पद की दावेदारी पेश की. लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को नकराते हुए कोनीजेती रोशैया को मुख्यमंत्री चुना. यह जगनमोहन के लिए झटके जैसा था. जगन ने पार्टी से बगावत कर दी और जगन ने 2011 में वाईएसआर कांग्रेस के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया.

यह कांग्रेस सरकार पर जगन का ही दबाव था कि मुख्यमंत्री कोनीजोती रोशैया को हटाकर जगन की जाति के किरण रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया. जगन ने पार्टी की स्थापना के साथ ही प्रदेश में कांग्रेस की कमर तोड़ना शुरु किया. जगन शुरु से ही आंध्र-प्रदेश को विभाजित करने के खिलाफ रहे.

2014 का चुनाव आया और आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजों में राजनीति के नए सूरज का उदय हो चुका था. मोदी लहर के बावजूद जगन की पार्टी ने पहले चुनाव में राज्य की 25 सीटों में से 9 पर कब्जा किया. वाईएसआर कांग्रेस ने विधानसभा की 67 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस का प्रदेश से सूपड़ा साफ हो चुका था.

जगन विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने लेकिन वह जानते थे कि उनके लिए चुनौती तो अब शुरू होने वाली है. उन पर जनता के द्वारा जताए गए विश्वास पर खरे होने का दबाव था. जगन उसी दिन से लोगों की अपेक्षाओं को पूर्ण करने में जुट गए.

प्रदेश की सत्ता पर चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी काबिज थी. जगन अपनी पैनी नजर इसी पर रखते कि टीडीपी कहां चूक रही है, बस जगन उसी दुखती रग पर हाथ रख देते. जगनमोहन रेड्डी ने प्रज्ञा संकल्प यात्रा के नाम से लगातार 431 दिन तक पदयात्रा की. वो इस दौरान आंध्रप्रदेश के हर हिस्से में पहुंचे और लोगों की समस्याओं को सुना. अगर उनसे निदान हो सका तो तुरंत निदान किया. इस यात्रा ने उनको आंध्रप्रदेश में एक जननेता की पहचान दे दी.

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