Politalks.News/Punjab. पंजाब में सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद नाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब अपनी ही पार्टी को दोहरा झटका देने का फैसला लिया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मंगलवार को नई पार्टी बनाने का ऐलान किया और साथ ही किसान आंदोलन का हल निकलने की सूरत में भाजपा संग गठबंधन की भी बात कही है. फिलहाल किसान आंदोलन जिस जटिल मोड़ पर पहुंच गया है, उसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है. साथ ही ये भी सच है कि मोदी सरकार अपने फैसले से पीछे हटने वाली नहीं है फिर भी सूत्रों की माने तो कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान से यह संकेत जरूर मिलता है कि केंद्र सरकार उनसे मशविरा लेकर अंदरखाने किसान आंदोलन खत्म कराने के लिए प्रयास कर रही है. हालांकि की सूत्रों का यह भी दावा है कि कैप्टन को भाजपा की ओर से ज्यादा भाव नहीं दिए गए हैं. ऐसे में अब भी उनके समर्थक उन्हें कांग्रेस में रहने की ही सलाह दे रहे हैं. क्योंकि किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार पीछे हटने वाली नहीं है और अगर किसान आंदोलन का हल नहीं निकलता है तो कैप्टन का भाजपा में और पंजाब में इन दोनों का नहीं है कोई भविष्य?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन का यदि कोई हल निकलता है तो यह भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है. इस एक मामले पर ही दोनों की राजनीति भी टिकी हुई है. किसान आंदोलन यदि इसी तरह जारी रहता है तो कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भाजपा के साथ जाना रिस्की हो सकता है. भाजपा का राज्य में जिस तरह का तीखा विरोध है, उसका खामियाजा सीधे तौर पर कैप्टन को भी भुगतना पड़ सकता है. ऐसे में यह भाजपा और कैप्टन, दोनों के ही हित में होगा कि पंजाब में चुनाव से पहले किसान आंदोलन का कोई समाधान निकल आए.
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आपको बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने सीमांत राज्यों में बीएसएफ के क्षेत्राधिकार के दायरे को 10 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक कर दिया है. केन्द्र सरकार के इस फैसले का पंजाब में भी विरोध हो रहा है. कांग्रेस ने इसे लेकर आरोप लगाया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की सलाह पर ही केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है. भले ही कैप्टन अमरिंदर और भाजपा के बीच अंदरखाने कोई सहमति हो, लेकिन खुलकर साथ आने का रिस्क फिलहाल नहीं लिया जा सकता. ऐसे में कैप्टन अमरिंदर यदि यह कहते हैं कि किसान आंदोलन का हल निकलने पर वह भाजपा के साथ जा सकते हैं तो फिर इसके मायने हैं. यह संभव है कि पंजाब में चुनाव से पहले कोई हल निकल आए.
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कैप्टन द्वारा नई पार्टी बनाने के ऐलान और भाजपा के साथ गठबंधन की शर्त को देखते हुए सियासी गलियारों में चर्चा है कि, ऐसा लग रहा है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के एक महीने बाद तक कैप्टन तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे क्या करेंगे. जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने उनको कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं दिया है, जो बहुत आकर्षक हो. उनको अभी राज्यपाल नहीं बनना है और भाजपा उनको न तो केंद्र में मंत्री बना रही है और न प्रदेश में अपनी पार्टी का चेहरा बना कर चुनाव लड़ने को तैयार है. यह भी संभव है कि अगले चुनाव में भाजपा उनको टिकट भी न दे. इसलिए भाजपा उनके लिए अच्छा विकल्प नहीं है. किसानों का संगठन बनाना जरूर अच्छा विकल्प है लेकिन इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. इसलिए कैप्टन किसानों को कुछ दिलाने की स्थिति में नहीं हैं. उनके साथ बच गए थोड़े से लोग भी अब यह मानने लगे हैं कि कांग्रेस में कैप्टन की संभावना है. कांग्रेस में रह कर ही वे राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं और बेटे का भविष्य भी बचा सकते हैं.