महाराष्ट्र (Maharastra) में होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. 288 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनावों में 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे और 24 अक्टूबर को नतीजे घोषित होंगे. प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और एनसीपी ने गठबंधन कर सीटें आपस में बांट ली है. दोनों ने 125-125 सीटों पर सहमति बना अन्य 38 सीटें अन्य सहयोगी पार्टियों के लिए छोड़ दी. भाजपा सत्ताधारी पार्टी है और शिवसेना सहयोगी पार्टी, इसके बावजूद दोनों में सीटों के बंटवारे का मंथन समुद्र-मंथन से भी मुश्किल लग रहा है. पार्टी के एक नेता ने तो गठबंधन पर यहां तक कहा है कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना (BJP-Shiv Sena Alliance) के बीच महज 288 सीटों का बंटवारा करना भारत-पाक के बंटवारे से भी मुश्किल फैसला लग रहा है.
ये बयान दिया है शिवसेना नेता संजय राउत (Sanjay Raut-Shiv Sena) ने जो सीट बंटवारे से जुड़ी परेशानियों से भली-भांति परिचित हैं. राउत ने कहा, ‘इतना बड़ा महाराष्ट्र है लेकिन ये जो 288 सीटों का बंटवारा है, ये भारत पाकिस्तान के बंटवारे से भी भयंकर है. यदि हम सरकार में होने के बजाय विपक्ष में होते तो तस्वीर दूसरी होती.’ उन्होंने ये भी कहा कि फिलहाल इस बारे में मंथन चल रहा है लेकिन सीटों के बंटवारे पर जो भी फैसला होगा, उसे तुरंत मीडिया को बताया जाएगा.
वैसे महाराष्ट्र की आंतरिक राजनीति को देखा जाए तो राउत के इस बयान से इत्तफाक रखा जा सकता है. विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे का ये विवाद अभी का नहीं बल्कि लोकसभा चुनावों से भी पहले का है. लोकसभा चुनावों में भाजपा और शिवसेना चाहें एक साथ चुनावी जंग लड़ रही थी लेकिन शिवसेना अपने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिए लगातार भाजपा और उनकी नीतियों पर हमला कर रही थी. महाराष्ट्र में भाजपा सत्ताधारी पार्टी है और पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने शिवसेना सहित कांग्रेस और एनसीपी तीनों को एक साथ पटखनी देते हुए 288 में से 122 सीटों पर कब्जा कर लिया. शिवसेना भाजपा की आधी सीटों तक ही पहुंच सकी और 63 पर सिमट गयी. कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली.
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लोकसभा चुनाव 2019 में दोनों पार्टियों ने 25-23 के अंतर से चुनाव लड़ा और कुल 41 सीटों पर कब्जा किया. उसके बाद से शिवसेना बीजेपी से 144-144 सीटों पर हक मांगने लगी. सियासी गलियारों में इस खबर से भी बाजार गर्म रहा कि शिवसेना चुनाव जीतने की स्थिति में ढाई-ढाई साल दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्री बिठाने के जुगाड़ में है. हालांकि भाजपा ने इस बात पर कभी मुहर नहीं लगाई. इसके बाद शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बताना शुरू कर दिया और प्रचार भी उसी तरह से हुआ.
हाल में एक मीडिया कार्यक्रम में महाराष्ट्र के भाजपायी मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मुख्यमंत्री पद किसी को देने और सांझा करने से साफ इंकार कर दिया. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि गठबंधन की स्थिति में शिवसेना चाहे तो डिप्टी सीएम बना सकती है. लेकिन हमारी बात अभी भी वहीं अटकी है…भाजपा-शिवसेना के बीच सीटों का बंटवारा.
उद्दव ठाकरे ने बीच का रास्ता निकालते हुए भाजपा से 150-130 के अनुसार सीट बांटने के बारे में बात की लेकिन भाजपा अपने सहयोगी को केवल 110 सीटों पर निपटाना चाहती है. अपने ठस से मस न होने की वजह ये भी है कि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव-2014 में भाजपा ने अकेले अपने दम पर तीनों विपक्षी पक्षों को धूल चटाई थी. हालांकि सरकार शिवसेना से गठजोड़ करके ही बनाई लेकिन शिवसेना को हमेशा ये बात याद रही कि भाजपा की सरकार केवल और केवल शिवसेना के सहयोग से बन पायी है.
अब इन चुनावों में भी शिवसेना इस बात का अहसास भाजपा को करा रही है कि अकेले दम पर वो प्रदेश में सरकार नहीं बना सकती और उन्हें शिवसेना के साथ की जरूरत है. हालांकि कहीं न कहीं शिवसेना को इस बात का अहसास भी है कि वो खुद भी आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में कांग्रेस, एनसीपी के साथ मोदी आंधी का सामना नहीं कर पाएंगे. ठीक ऐसा ही इल्म भाजपा को भी है कि तीन पुरानी पार्टियों को अकेले टक्कर दे पाना बिना किसी सहारे के पहाड़ चढ़ने जैसा है. यही वजह है कि शिवसेना के इतने आघातों के बाद भी भाजपा गठबंधन के लिए पूरी तरह से तैयार है.
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भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो करोड़ों लोगों की आवाजों पर अपने कान बंद करते हुए आजाद भारत के सीने पर एक लाल लकीर खींचते हुए हिंदूस्तान-पाकिस्तान बना दिया लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना का ये अटूट बंधन बंधा रहेगा या टूट जाएंगा, जल्दी ही मोदी-शाह बिग्रेड इससे पर्दा उठा देगी.