Politalks.News/Delhi. देश के पांच अहम राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार के चुनाव में सबसे खास बात यह है कि वर्तमान बीजेपी की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह फ्रेम में कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तरप्रदेश में पिछले दो चुनाव अमित शाह के नेतृत्व में लड़े गए हैं. लेकिन इस बार अभी तक अमित शाह ने कहीं भी प्रचार का आगाज नहीं किया है. चुनावों में 6 महीने से भी कम समय रह गया और ऐसे में अमित शाह के अभी तक सक्रिय नहीं होने से सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. लोगों की ‘कानों देखी’ की मानें तो कहा तो यहां तक जा रहा है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद से पीएम मोदी और अमित शाह के रिश्तों में वो पहले वाली बात नहीं है, जिसके चलते अमित शाह ने अपने आपको सीमित कर लिया है.
‘चाणक्य’ कब उतरेंगे चुनावी रण में!
पिछले सात साल में कभी ऐसा नहीं हुआ कि केंद्र में या किसी राज्य खासकर यूपी जैसे राज्य में चुनाव होने वाले हों और अमित शाह सक्रिय नहीं हुए हैं. अगले साल के शुरू में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और अभी तक भाजपा के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कमान नहीं संभाली है. हालांकि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के नेताओं से उनकी बैठक हुई और पार्टी संगठन, सरकार में फेरबदल और चुनावी तैयारियों को लेकर चर्चा भी हुई लेकिन चुनावों में पांच महीने बचे हैं और अमित शाह ने प्रचार अभियान नहीं शुरू किया है.
2014 से यूपी में कमल खिलाया है शाह ने
उत्तरप्रदेश को लेकर यह बात खासतौर पर खटकने वाली है, अमित शाह प्रभारी रहे हैं. शाह ने प्रभारी के नाते 2014 का लोकसभा चुनाव लड़वाया था और उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते 2017 का विधानसभा चुनाव लड़वाया था. शाह के नेतृत्व में दोनों चुनावों में भाजपा ने यूपी में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. इसके बावजूद अमित शाह न उत्तर प्रदेश में सक्रिय दिख रहे हैं और न उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में उनकी कोई सक्रियता दिख रही है
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बंगाल-असम में कई महिनों पहले सक्रिय हो गए थे शाह
आपको बता दें कि हाल के दिनों में केंद्रीय गृह मंत्रालय के कामकाज से बाहर अमित शाह की राजनीतिक सक्रियता भी कम दिखी है. अमित शाह अपने गृह प्रदेश गुजरात जरूर गए थे और वहां सत्ता परिवर्तन के समय मौजूद थे. लेकिन माना जा रहा है कि उसमें भी उन्होंने कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई. आपको याद तो होगा ही कैसे इस साल मई में पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव होने वाले थे तो अमित शाह ने कई महीनों पहले अभियान शुरू कर दिया था और उनकी सभाएं होने लगी थीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है.
पश्चिम बंगाल चुनाव परिणामों के बाद से अपने आप को सीमित किया शाह ने
कहते हैं जहां आग होती है वहीं धुंआ उठता है, ऐसा ही कुछ वर्तमान में अमित शाह और पीएम नरेन्द्र मोदी के रिश्तों को लेकर कहा-सुना जा रहा है. लोगों की ‘कानों देखी’ को मानें तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी को मिली करारी हार के बाद से ही पीएम मोदी और अमित शाह के रिश्तों में अब वो पहले वाली बात नहीं रही है. आपको याद दिला दें कि, बंगाल चुनाव के बाद लगभग 2 से ज्यादा महीनों तक अमित शाह किसी भी समारोह या किसी बड़ी बैठक में नजर नहीं आए थे. कहा तो यह भी जा रहा है कि गुजरात में विजय रुपाणी की कुर्सी जाना भी इसी तनातनी का एक हिस्सा है. अब अमित शाह द्वारा अभी तक पांचों चुनावी राज्यों में से कहीं भी राज्य में सक्रिय नहीं होने को भी इसी कड़ी में जोड़कर देखा जा रहा है. वरना, जिस अमित शाह की बदौलत 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तरप्रदेश में 80 में से 72 सीटों पर कब्जा जमाया हो और 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 325 सीटों का कीर्तिमान स्थापित किया हो, उस अमित शाह ने अभी तक यूपी में चुनावी प्रचार का बिगुल नहीं बजाया?
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पीएम मोदी ने यूपी और उत्तराखंड में खोला मोर्चा
इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूपी के अलीगढ़ में एक बड़ी सभा की, जहां पीएम मोदी ने राजा महेंद्र प्रताप के नाम से एक यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया और योगी सरकार की जम कर तारीफ की. अगले महीने के शुरू में ही पीएम का केदारनाथ धाम जाने का कार्यक्रम बन रहा है. वहां से वे उत्तराखंड के चुनाव अभियान का आगाज करेंगे. इन सबके बीच अमित शाह की चुनाव से दूरी खटकने वाली है. आखिर वे भाजपा के सबसे सफल और बेहतरीन चुनाव रणनीतिकार हैं.