Politalks.News/Punjab. क्या पंजाब (Punjab) में कांग्रेस (Congress) कर रही है भूल? क्या मास्टरस्ट्रोक को बेवजह बेकार जाने दे रही है? क्या अपने ट्रंप कार्ड को खुद पार्टी ही कर रही है नाकाम? सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा है कि चुनावी सूबे में जो कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक चला था क्या खुद पार्टी उसे बर्बाद करने में जुटी है. दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह (Charanjeet Singh Channi) के चेहरे पर चुनाव में उतरने को लेकर असमंजस में है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) और सुनिल जाखड़ (Sunil Jakhar) ने इसको लेकर आलाकमान पर दबाव बनाया है. सूबे में सत्ता की चाबी दलितों के पास है. सियासी जानकारों का कहना है कि चन्नी के चेहरे पर अगर पार्टी जाती है चुनाव में तो फायदा मिलना तय है. लेकिन…..
कांग्रेस का मास्टरस्ट्रोक!
पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने हालही में मास्टर स्ट्रोक चला था. ‘महाराजा’ कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर एक दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था. राज्य का पहला दलित मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने अपना ‘तुरुप का पत्ता’ चल दिया था. इससे विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले ही कांग्रेस को बाकी पार्टियों के मुकाबले बहुत बड़ी बढ़त मिली थी. अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ तालमेल करके दलित वोट हासिल करने का दांव चला था और आम आदमी पार्टी ने दलित उप मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करके दलित वोट के लिए अपनी बिसात बिछाई थी. लेकिन इसके बीच कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बना पर पूरी बिसात पलट दी थी. लेकिन उसके बाद से खुद कांग्रेस ही अपने इस दांव को फेल करने में लगी है.
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दलितों में कांग्रेस का बड़ा मैसेज!
पंजाब से सामाजिक समीकरण में सबसे मजबूत अंकगणित दलित वोट का है. सूबे की सत्ता की आकांक्षा भी सबसे ज्यादा इसी समूह में है. चुनावी राज्य की करीब 34 फीसदी आबादी दलित समुदाय की है. पिछले कुछ समय से इस समुदाय में सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व की भावना बहुत प्रबल हुई है. जबकि मजे की बात यह है सूबे में कांग्रेस के अलावा सारी पार्टियां 16 फीसदी आबादी वाले जाट सिख समुदाय के नेतृत्व वाली हैं. इसलिए दलित सामाजिक उभार के बावजूद राजनीतिक हिस्सेदारी में पीछे रहे. कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बना कर एक बड़ा मैसेज दिया, जिसका बहुत बड़ा फायदा उसको अगले चुनाव में मिल सकता है.
कांग्रेस जीतती है तो क्या चन्नी बन पाएंगे सीएम!
लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार कह रहे हैं कि अगला चुनाव मुख्यमंत्री चन्नी के नाम पर नहीं, बल्कि कांग्रेस के नाम पर लड़ेंगे और मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद विधायक करेंगे. जनता में खासकर दलित समाज में इसका सीधा मैसेज यह जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीतती है तो चन्नी मुख्यमंत्री नहीं होंगे. क्योंकि उनके मुख्यमंत्री रहते अगर राज्य की दबंग आबादी खास कर जाट सिख और जाट समुदाय के नेता उनके नाम की घोषणा नहीं होने दे रहे हैं तो वे चुनाव के बाद उनको कैसे मुख्यमंत्री बनने देंगे? यह बात समझना दलित मतदाताओं के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.
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सिद्धू- रंधावा और जाखड़ का दबाव!
पंजाब कांग्रेस के सूत्रों की माने तो प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, राज्य के उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाया है कि चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम का चेहरा नहीं प्रोजेक्ट किया जाए. जाखड़ तो लगातार बयान दे रहे हैं कि कांग्रेस में किसी के भी चेहरे पर चुनाव लड़ने की परंपरा नहीं रही है. हालांकि आपको याद दिला दें कि पिछला चुनाव कांग्रेस ने यहां कैप्टन के चेहरे पर लड़ा था. जो कि कांग्रेस के इतिहास में एक अपवाद के रूप में मानी जाती है.
चन्नी को प्रोजेक्ट नहीं करना होगी महाभूल!
सियासी जानकारों का कहना है कि अगर पंजाब में कांग्रेस चन्नी को सीएम का चेहरा नहीं प्रोजेक्ट करती है तो यह महाभूल होगी. आज जो नेता आलाकमान पर दबाव डाल रहे हैं उनकी हैसियत पांच फीसदी वोट की नहीं है. जाट सिख आबादी 16 फीसदी है, जिसका वोट पारंपरिक रूप से अकाली दल को जाता है और बचा हुआ कट्टरपंथी सोच वाला वोट पिछले दो चुनाव से आम आदमी पार्टी को जा रहा है. इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इस वोट के लिए अलग से दावेदार हैं. माना जा रहा है कि सिद्धू, रंधावा और जाखड़ इस वोट का पांच फीसदी भी कांग्रेस को दिला दें तो बड़ी बात होगी. लेकिन चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करके कांग्रेस लड़े तो बहुसंख्यक दलित वोट की गारंटी होगी. उनके साथ हिंदू सवर्ण और ओबीसी वोट भी जुड़ेगा.