इसी हफ्ते मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल को 100 दिन पूरे होने वाले हैं. लेकिन इस छोटे से अंतराल में मोदी 2.0 ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल, धारा 370 और 35ए, तीन तलाक, मोटर वाहन संशोधन विधेयक मोटर व्हीकल एक्ट, ट्रांसजेंडर बिल, नेशनल मेडिकल कमिशन बिल और RTI संशोधन, UAPA जैसे भारी भरकम बिल पहले सत्र में, एक ही महीने में दोनों सदनों से वास करवाकर लागू भी कर दिये. आखिर इतनी हड़बड़ी में क्यों है मोदी 2.0 सरकार..?
नरेंद्र मोदी की पॉपुलर्टी युवाओं में तेजी से बढ़ने का नतीजा ये है कि पिछली बार की तुलना में इस बार मोदी सरकार भारी बहुमत से केंद्र में सत्ता पर काबिल हुई. लेकिन पिछली बार और इस बार के मोदी सरकार के कार्यों में एक सबसे बड़ी असमानता जो दिख रही है, वो है काम करने में जल्दबाजी. सरकार बनने के तीन महीनों में ही मोदी सरकार और मंत्रीमंडल ने कई क्रांतिकारी फैसले लेकर सभी को चौंका दिया. हालांकि ये सभी कार्य जनता के लिए काफी अच्छे हैं लेकिन राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ इस बात से जरूर हैरान हैं कि आखिर क्या वजह है कि मोदी सरकार अपने सभी फॉर्मूलों को जल्दी से जल्दी लॉन्च करना चाह रही है, आखिर ये हड़बड़ी क्यों?
गौरतलब है कि सबसे मुश्किल समझा जाने वाला जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल को धारा 370 और 35ए को हटाते हुए वर्तमान मोदी सरकार ने दोनों सदनों में एक तरफा वोटों से लागू कराने में सफलता हासिल की. वहीं तीन तलाक, मोटर वाहन संशोधन विधेयक मोटर व्हीकल एक्ट, ट्रांसजेंडर बिल, नेशनल मेडिकल कमिशन बिल और आरटीआई संशोधन, UAPA जैसे भारी भरकम बिल पहले सत्र में, एक ही महीने में दोनों सदनों से पास करवाकर लागू भी कर दिये. लेकिन अभी भी वही सवाल अपने उत्तर का इंतजार कर रहा है कि आखिर बीजेपी सरकार को ये सभी फैसले करने की इतनी जल्दी क्यों? क्योंकि सरकार बहुमत के साथ सत्ता में आयी है इसलिए डूबने का तो खतरा है नहीं फिर क्यों…?
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वजह है भारत की लगातार गिरती अर्थव्यवस्था (Indian Economy), आर्थिक मंदी वर्तमान सरकार के सामने सबसे बड़ा चेलेंज है. पिछले एक साल में भारत की जीडीपी 8 फीसदी से घटकर 5 फीसदी आ चुकी है. ये तो वो आकंड़े हैं जो कागजों में दिखते हुए हैं, जानकार बताते हैं कि एक्चुअल में GDP 3 फीसदी पर आ चुकी है (लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है). जबकि वर्ष की पहली तिमाही में ग्रोथ 0.8 फीसदी घटी है. इसकी वजह है कि नोटंबदी के बाद हजारों की संख्या में कारोबार बंद हो गए और लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं.
बता दें, वर्तमान में बेरोजगारी (Unemployment) इतनी ज्यादा बढ़ गयी है, जितनी पिछले 70 साल में कभी नहीं बढ़ी. एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा समय में करीब डेढ़ करोड़ लोग बेरोजगार होकर घर बैठे हैं. ऑटो उद्योग में साढ़े तीन लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं. आने वाले तीन सालों में ये संख्या 10 लाख तक जा सकती है. लाखों की संख्या में चमचमाती गाड़ियां शोरूम में खड़ी हैं लेकिन खरीदार नहीं हैं. ऐसे में पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों के ताले लगने की नौबत आ गयी है. रिसेल कार बाजार की हालत भी कुछ खास अच्छी नहीं है.
देश की सबसे बड़ी बिस्किट कंपनी पार्ले ने 10 हजार कर्मचारियों की छटनी की है. मीडिया सेक्टर से कर्मचारियों की छटनी बदस्तूर जारी है. अन्य सेक्टर्स की स्थिति भी जुदा नहीं है. वहीं एक बड़ा तबका वो भी है जो हाई सैलेरी से नीचे गिरकर प्राइमरी वेतन पर काम करने के लिए मजबूर है.
दूसरी ओर, भवन निर्माण उद्योग (प्रोपर्टी सेक्टर) करीब-करीब दीवालिया होने की कगार पर है. लाखों की संख्या में फ्लैट अपने खरीदारों का इंतजार करते हुए जर्जर हालत में पहुंच चुके हैं. इनमें हाउसिंग बोर्ड, सरकारी और प्राइवेट सभी श्रेणी के घर शामिल हैं. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योजना के चलते सब्सिडी मिलने के बावजूद बिक्री के आंकड़े तेजी से नीचे गिर रहे हैं. मार्केट में घरेलू वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं और महंगाई अपने चरम पर है.
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नोटबंदी (Demonetization) के बाद लचर-पचर हालत में लागू की गयी GST ने व्यापारियों के घुटने ही तोड़ दिए जिसका असर सीधे-सीधे मजदूरों पर पड़ा. इससे लोगों और कारोबारियों को फायदा तो कम हुआ, नुकसान दो-तीन गुना हो गया. बैंकों का अरबों-खरबों रुपया कर्जदारों की मिली भगत के चलते डूब गया.
अब सरकार इस आर्थिक मंदी की मार पर से ध्यान हटाने के लिए ये सभी काम जल्दी जल्दी कर रही है. वजह है कि जिस तरह का माहौल चल रहा है, सरकार इस स्थिति को लंबे वक्त तक संभाल नहीं पाएगी. इसलिए सरकार बीच बीच में कश्मीर का पूर्ण विलय और बालाकोट जैसी राजनीतिक घटनाओं का सहारा ले रही है ताकि अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए समय तो मिल सके, साथ ही जनता का ध्यान भी भटकता रहे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ज्यों ही बेरोजगारी और महंगाई और बढ़ी, सारे देश में हा-हाकार मचना शुरू हो जाएगा. उसके बाद जनता की आवाज विपक्ष की आवाज बन सदन में गूंजेगी और सरकार सत्ता में रहते हुए भी जनता का विश्वास खो देगी. अगर ऐसा हुआ तो ज्यादा समय नहीं बीतेगा और सफलता के घोड़े पर सवार बीजेपी की हालात मौजूदा कांग्रेस की तरह हो जाएगा और पांच खरब की अर्थ व्यवस्था का सपना देखने वाली सरकार को सारी ताकत खुद को बचाने में खर्च करनी पड़ेगी.
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तेजी से नीचे गिरती भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को संभालने और पटरी पर लाने के लिए ही सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से 1.7 लाख रुपये ले रही है ताकि ये गिरावट थम सके. इस फंड में से 70 हजार करोड़ बैंकों को दिए जाएंगे ताकि लोगों को आसानी से लोन दिया जा सके. वहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ऐसी घोषणाएं भी लागू करने जा रही हैं जिनसे भारत में विदेशी विनियोग में आसानी हो. गन्ना किसानों को 6 हजार करोड़ रुपये की सहायता देने की कोशिश हो रही है. वहीं 75 नए मेडिकल कॉलेज खोलना तय हुआ है. भवन निर्माण और आयकर में भी रियायतों का पिटारा खोलने की तैयारी हो रही है.
देश के प्रमुख अर्थशास्त्री (Economist) सरकार को नई आर्थिक नीति बनाने की सलाह दे रहे हैं ताकि अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को मजबूत बनाने के लिए साहसिक कदम उठाए जा सकें. माना जा रहा है कि सितम्बर महीने के पूरे दो हफ्ते केवल अर्थव्यवस्था के नाम किए जाएंगे ताकि जनता की सुगबुगाहट को सुलगने से समय रहते रोका जा सके. अगर जल्दी ही ऐसा न हुआ तो भारत सबसे ज्यादा युवाओं का देश तो होगा लेकिन वो केवल बेरोजगारी (Unemployment) की फौज से ज्यादा कुछ नहीं होगी.