पॉलिटॉक्स ब्यूरो. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर अपने बगावती सुर तेज कर भाजपा के सरकार बनाने के सपने को क्षीण कर दिया. अब न तो भाजपा और न ही देवेंद्र फडणवीस शिव सेना को मुख्यमंत्री का पद देने के लिए राजी हैं. अब कांग्रेस से मिलकर तो भाजपा सरकार बनाएगी नहीं और शरद पवार (NCP) के पास जाने की फडणवीस में हिम्मत है नहीं. ऐसे में भाजपा के सामने अब एक और नया एलांयस खड़ा हो गया है जो बीजेपी को महाराष्ट्र में सरकार बनाने से रोक रहा है. ये है शिवसेना-एनसीपी का सम्भावित गठबंधन. पॉलिटॉक्स के विश्वस्त सूत्रों से तो यही नतीजे सामने आ रहे हैं और शिवसेना के बगावती सुर भी इसी बात का संकेत दे रहे हैं.
दरअसल, अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा महाराष्ट्र की नंबर एक पार्टी बनकर उभरी लेकिन सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सकी. उनके पिछले चुनाव में जीती गयी सीटों में भी गिरावट देखी गई. वहीं एनसीपी के पिछले प्रदर्शन में अच्छा सुधार हुआ है लेकिन शिवसेना वहीं की वहीं है. ऐसे में स्पष्ट है कि प्रदेश की जनता कम से कम भाजपा पर तो पूरी तरह से विश्वास नहीं कर पा रही है. वहीं जनता की सहानुभूमि एनसीपी के मुखिया शरद पवार के साथ ज्यादा रही. यही वजह है कि NCP का न केवल वोट बैंक बढ़ा, साथ ही उनकी पार्टी ने पहले से ज्यादा सीटें भी जीतीं.
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महाराष्ट्र के चुनावी परिणाम आते ही शिवसेना ने अपने बगावती तेवर फिर से तीखे कर दिए और शिवसेना प्रमुख उद्दव ठाकरे अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को आधी अवधि यानि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालवाने पर अड़ गए. देवेंद्र फडणवीस पहले ही ये साफ कर चुके हैं कि वे आदित्य या शिवसेना के किसी नेता को केवल डिप्टी सीएम की कुर्सी दे सकते हैं. ऐसे में वे सीएम कुर्सी को साझा करने के मूड में बिलकुल नहीं हैं. वहीं अगर बीजेपी शिवसेना के सामने झुकती है तो सरकार तो बन जाएगी लेकिन उन्हें शुरुआती ढाई साल पहले आदित्य-उद्दव ठाकरे व शिवसेना के नखरे सहने होंगे और आखिरी ढाई भी शिवसेना उनके कामों में दखल देती रहेगी.
भाजपा शिवेसना की बात मानने के मूड में तो दिख नहीं रही और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का विकल्प बन ही नहीं सकता. तो ऐसे में अब केवल शरद पवार एक मात्र विकल्प है, लेकिन पिछले चुनावों के बाद NCP का रवैया भाजपा स्पष्ट तौर पर देख चुकी है जब शरद पवार ने अचानक से भाजपा को दिया समर्थन वापिस ले लिया था. इसके बाद हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा शरद पवार पर ईडी की जो कार्रवाई हुई उसके बाद तो अब फडणवीस भी किस मुंह से पवार के सामने जाकर समर्थन की मांग करेंगे. बता दें, सरकार द्वारा शरद पवार का नाम बैंक घोटाले में लाकर उन पर ईडी की कार्रवाई का दांव ही बीजेपी पर उलटा पड़ गया है. इसके बाद ही भाजपा को चारों ओर से घिर गई थी और पवार जनता की सहानुभूति जीतने में कामयाब रहे.
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लेकिन शिवसेना के पास आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का इससे बढ़िया मौका दुबारा शायद ही मिले. अगर शिवसेना शरद पवार के पास जाकर संपर्क साधे और वहां ढाई-ढाई का फॉर्मूला चाहे तो उनका काम आसानी से बन सकता है. क्षेत्रप पार्टी होने के नाते जनता के सामने ये अच्छा विकल्प भी है. चूंकि कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है, ऐसे में उन्हें इस स्थानीय गठबंधन को समर्थन देने में कोई आपत्ति नहीं होगी.
इससे शिवसेना ही नहीं बल्कि NCP के कई काम भी सध जाएंगे. लंबे समय से भाजपा सरकार में सत्ता की भागीदारी चाह रही शिवसेना का भविष्य आदित्य ठाकरे आधे या फिर पूरे समय के लिए सत्ता की बागड़ोर संभाल सकते हैं. वहीं अगर शरद पवार चाहें तो अजित पवार या फिर उनके पोते रोहित पवार को डिप्टी सीएम या फिर 50-50 फॉर्मूले के आधार पर सीएम भी बना सकते हैं. शिवसेना को इस पर कोई नुकसान नहीं होना चाहिए.
शिवसेना का अपने मुखपत्र ‘सामना’ में लगातार शरद पवार और उनकी लीडरशिप की तारीफ के साथ फडणवीस सरकार के कमजोर नेतृत्व का बखान इस दिशा में पहला कदम माना जा रहा है. अगर शिवसेना को अपनी खुद की सरकार बनानी है तो उद्दव ठाकरे किसी भी सूरत में शरद पवार से पंगा नहीं लेंगे और न ही उन्हें नाराज करेंगे. अपने भाषणों में शिवसेना के किसी नेता ने शरद पवार पर सीधे तौर पर कोई आक्षेप भी कभी नहीं लगाए. शायद शिवसेना को इस बात का पहले से आभार था कि प्रदेश में ऐसे स्थिति आ सकती है, शायद इसीलिए शिवसेना ने इन परिथितियों को बरकरार रखा.
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शरद पवार से संबंध गांठना शिवसेना के लिए इसलिए भी आसान होगा क्योंकि सभी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि शरद पवार ही एनसीपी हैं और एनसीपी का मतलब शरद पवार ही है. जबकि प्रदेश की भाजपा में देवेंद्र फडणवीस, नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अब जेपी नड्डा जैसे कई नाम हैं जिन्हें पार्टी के फैसलों में शामिल किया जाता है.
लेकिन ये स्थिति केवल और केवल शिवसेना चाहे तो ही बन सकती है. भाजपा को समर्थन के लिए 44 विधायकों की आवश्यकता है. शिवसेना आधे विधायक जीतकर भी विश्वास से भरी है क्योंकि उन्हें पता है कि फडणवीस उनके बिना सरकार बनाने में सक्षम नहीं हैं. अब उन्हें या तो सत्ता ठाकरे परिवार से बांटनी होगी या विपक्ष में बैठना होगा. एनसीपी से गठबंधन हो जाए तो बात अलग है लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है. ठाकरे परिवार का पवार परिवार से कोई बड़ा मतभेद भी नहीं है. शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में कद और उनकी साफ सुधरी छवि के तो चाहने वाले भी काफी हैं. ऐसे में शिवसेना उनपर आंख मूंदकर भरोसा कर सकती है. और ऐसे में शिवसेना को कांग्रेस का समर्थन मिलना भी तय है. महाराष्ट्र की राजनीति में बन रहा ये तीसरा धड़ा निश्चित रूप से भाजपा की नींदे उड़ाने वाला है, इसमें कोई शक नहीं है.