Politalks.News/Bihar Election. बिहार एक ऐसा राज्य है जो अपने देसी अंदाज को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के तीज-त्यौहार और यहां की राजनीति में जमीनी हकीकत देखने को आज भी मिलती है. ‘बिहार का रहन-सहन और बोलने का अंदाज ग्रामीण परिवेश पर आधारित माना जाता है. कई हिंदी सिनेमा में आपने देखा होगा बिहार का ठेठ अंदाज दिखाया जाता है‘. लोकसभा या विधानसभा चुनावों में यहां की राजनीति सिर चढ़कर बोलती है. ‘चुनावी रैलियों के दौरान नेताओं का बोलने का अंदाज पूरे देश भर में बता देता है कि बिहार में चुनाव की शुरुआत हो चुकी है‘.
शुक्रवार को आचार संहिता लगने से पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 15 दिनों से एक के बाद एक बिहार में सौगातों की झड़ी लगाए जा रहे थे, यहां तक की अधिकांश राजनीति दलों ने इस संकट काल में भी चुनाव टालने की बात नहीं कही. ‘कई दिनों से बिहार की जनता के साथ कई राजनीतिक दल के नेता भी चुनाव की तारीखों के एलान को लेकर उतावले थे‘. आखिरकार आज निर्वाचन आयोग ने नेताओं को बिहार में राजनीति करनेे का अवसर दे दिया. यानी बिहार में विधानसभा चुनाव कराने की तारीखों की घोषणा कर डाली.
इस बार बिहार में तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे. ‘लेकिन इस बार बिहार में देसी अंदाज वाले चुनाव देखने को नहीं मिलेंगे‘. इस बार बिहार में विधानसभा चुनाव वर्चुअल (डिजिटल) पर आधारित होने जा रहे हैं. केंद्रीय चुनाव आयोग के मुखिया सुनील अरोड़ा ने इसके लिए बाकायदा पूरी लिस्ट जारी की है. ‘आयोग के फरमान के बाद बिहार के देसी वोटर्स के सामने वर्चुअल रैली और नेताओं की हाईटेक सियासत को भी समझना होगा’. साथ ही कोरोना संकटकाल में दी गई गाइडलाइन का भी शत-प्रतिशत पालन करना होगा. राजनीतिक दलों को भी कोरोना संकट के कारण कई नियमों का पालन करना होगा, डोर टू डोर कैंपेन में पांच लोग ही जा सकेंगे. इस बार नामांकन और हलफनामा ऑनलाइन भरा जाएगा, डिपोजिट को भी ऑनलाइन सबमिट करना होगा. इसके अलावा नामांकन के वक्त उम्मीदवार के साथ सिर्फ दो लोग मौजूद रहेंगे, प्रचार के दौरान किसी से हाथ मिलाने की इजाजत नहीं होगी. ‘सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिहार की जनता ऐसे नियमों को मानने की आदी नहीं है.’ दूसरी ओर राजनीतिक दलों के नेताओं को भी उनको समझाने में बहुत मेहनत करनी होगी.
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आयोग के सामने भी बिहार चुनाव कराने की सबसे बड़ी चुनौती—
‘सही मायने में देश को अभी किसी भी राज्य में चुनाव की जरूरत नहीं थी क्योंकि कोरोना संकटकाल में देशवासी जबरदस्त डरे और सहमे हुए हैं.’ लेकिन जिस हिसाब से पिछले कई दिनों से भारतीय जनता पार्टी, जेडीयू, आरजेडी, एलजीपी और कांग्रेस द्वारा बिहार चुनाव को लेकर अपनी गतिविधियां तेज करने पर चुनाव आयोग भी सक्रिय होना पड़ा. सभी दलों के किसी नेताओं ने बिहार विधानसभा चुनाव आगे टालने के लिए कोई पहल नहीं की. कोरोना के दौर में ये पहला बड़ा चुनाव होने जा रहा है. इस बात को चुनाव आयोग ने भी माना. आयोग ने कहा कि संकट काल में चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती होगी. ‘मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि 50 से ज्यादा देशों ने चुनाव टाले, लेकिन हमने सोचा कि राजनीति दलों की सभ्यता और जनता के लोकतांत्रिक अधिकार को बरकरार रखने के लिए ये जरूरी है.’
बता दें कि इस बार बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की तस्वीरें एकदम अलग होंगी. निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए सख्त नियम बनाए हैं. जिसके तहत, भारी संख्या में लोगों के साथ प्रचार करने वाले नेता सिर्फ पांच लोगों के साथ ही घर जाकर प्रचार कर पाएंगे, नामांकन में जहां लंबा काफिला जाता था तो वहीं इस बार सिर्फ दो वाहनों को ही इजाजत दी गई है. नेताओं को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ प्रचार करना होगा और चुनाव प्रचार सिर्फ वर्चुअल होगा. इसके अलावा उम्मीदवार नामांकन ऑनलाइन ही भर सकेंगे. चुनाव आयोग ने महामारी को देखते हुए तमाम नियम बना दिए हैं. यहां हम आपको बता दें कि बिहार में 243 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरण में चुनाव होगा. पहले चरण की वोटिंग 28 अक्टूबर, दूसरे चरण की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे चरण की वोटिंग 7 नवंबर को होगी. वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी.
राजनीतिक दलों को बिहार की जनता से भी चुनाव कराने के लिए पूछना चाहिए था—
‘सत्ता और सिंहासन पाने के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं में ऐसी अंधी दौड़ लगी हुई है कि वह इस महामारी को भी दरकिनार करते हुए बिहार में चुनाव कराना चाहते हैं.’ जबकि दूसरी ओर कोरोना से बिहार आज परेशान है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज में बिहार में विकास करने के लिए अभी बहुत कुछ बाकी रह गया है. ‘इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखा गया है कि पिछले दिनों पीएम मोदी ने बिहार के लिए कई विकास घोषणाएं करने पर नीतीश कुमार के विकास पुरुष पर ही सवाल खड़ा हो गया’. ‘सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिहार वोटिंग के लिए जनता कितनी तैयार है, इसका भी राजनीतिक दलों के नेताओं को सर्वे करवाना चाहिए था.’
इससे पहले सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड को छोड़ लगभग सभी पार्टियों ने कोरोना काल में चुनाव कराने का विरोध करते हुए इसे टालने का अनुरोध किया था. हालांकि बाद में अदालत द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार किए जाने के बाद सभी दलों ने तैयारी तेज कर दी थी. वर्चुअल सभाओं का दौर शुरू हो गया. सभी पार्टियां डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ गईं. इन सबसे इतर वोटर्स में कोरोना के कारण संशय की स्थिति है. दूसरी ओर बिहार में चुनाव की तारीखों के एलान करने के बाद शिवसेना के राजस्व सांसद संजय राउत ने सवाल उठाए हैं. संजय रावत ने कहा है कि केंद्र सरकार और जेडीयू बिहार में कोरोना संकटकाल में भी चुनाव कराना चाहते हैं, जबकि उन्हें जनता की कोई चिंता नहीं है.