पॉलिटॉक्स न्यूज/उत्तराखंड. उत्तराखंड में विधानसभा की 70 विधानसभा सीटें हैं. एक विधायक एंग्लो इंडियन प्रतिनिधि को मिलाकर कुल विधायकों की संख्या 71 है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि वहां मंत्रियों की संख्या 67 है. अजीब है लेकिन 100 फीसदी सच है और इससे भी अजीब बात ये है कि वहां मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मंत्रालय में शामिल सदस्यों की संख्या केवल 9 ही है. अब सवाल ये है कि बाकी 58 मंत्री कौनसे हैं? अब कोई भी कह सकता है कि निश्चित तौर पर ये मंत्री बीजेपी के शेष 58 विधायक होंगे. अगर आपका यही मानना है तो हम आपको बता दें कि ये गलत है.
दरअसल ये उत्तराखंड बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता हैं जिन्हें सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियों के तहत अहम पदों पर मनोनीत कर केबिनेट और राज्य मंत्री पद का दर्जा दिया हुआ है. इनमें से 8 कैबिनेट मंत्री के दर्जे पर विराजमान हैं और शेष 50 को राज्य स्तरीय मंत्री को ओहदा मिला हुआ है. दिलचस्प बात ये भी है कि इन 58 में से कोई भी विधायक नहीं है लेकिन विधायक से कम भी नहीं है. इन सभी को सरकार की तरफ से हर माह सवा लाख रुपये का मानदेय और भत्ता भी दिया जा रहा है.
जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड सरकार के मंत्रीमंडल में अधिकतम 12 मंत्री हो सकते हैं. इनमें भी वर्तमान सरकार के 3 मंत्रियों की जगह खाली है. वर्तमान में 6 कैबिनेट और दो राज्य मंत्री सहित सीएम त्रिवेंद्र रावत शामिल हैं.
दरअसल, सत्ता में आने पर सियासी पार्टियां अपने खास और प्रमुख नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को इस तरह के पद बांटती हैं जिन्हें राजनीतिक नियुक्तियां कहा जाता है. सत्ताधारी पार्टी द्वारा अलग-अलग विभागों के अंतर्गत गठित परिषदों, निगमों, आयोगों और समितियों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य नियुक्त किए जाते हैं. ज्यादातर में अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को मंत्री पद के दर्जे के साथ सत्ता में हिस्सेदारी दी जाती है. कई समितियों, आयोगों, निगमों में मनोनीत सदस्यों को मंत्री पद का दर्जा तो नहीं मिलता, लेकिन मानदेय और भत्ते जरूर भरपूर मिलते हैं. उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने भी विभिन्न विभागों के पदों पर नियुक्तियां दी है.
इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि श्री बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर समिति में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा जबकि समिति में अन्य 10 सदस्यों को अन्य दायित्व सौंपा गया है. इसी तर्ज पर गढवाल मंडल विकास निगम में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा हासिल है जबकि निदेशक मंडल के सात सदस्य भी दायित्वधारी हैं. इसी तरह कुमाऊं मंडल विकास निगम में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष राज्यमंत्री और चार सदस्य दायित्वधारी हैं. उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष को कैबिनेट तथा उपाध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त है. यहां भी सात सदस्य दायित्वधारी के रूप में मनोनीत हैं.
मिली जानकारी के मुताबिक कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल नेताओं को हर महीने 45 हजार रुपये, वहीं राज्य मंत्री के दर्जे वालों को 40 हजार रुपये मानदेय मिलता है. बगैर मंत्री पद के दर्जे के अन्य दायित्वधारियों का मानदेय 35 हजार रुपये है. वाहन किराए के रूप में हर महीने प्रत्येक दायित्वधारी को 60 हजार की धनराशि देय है. कार्यालय सह आवास भत्ते के लिए 25 हजार रुपये मासिक है. सब कुछ मिलाकर कैबिनेट दर्जे वाले हर दायित्वधारी पर हर महीने 1.30 लाख तो राज्यमंत्री के दर्जे व गैर मंत्री के दर्जे के दायित्वधारी पर सरकार हर महीने 1.25 लाख की धनराशि मानदेय व भत्तों के रूप में ही खर्च करती है। बगैर मंत्री पद के दायित्वधारियों की कुल संख्या 34 है.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बिना चुनाव जीत ये सभी 58 नेता अपनी सरकार में विधायक और मंत्रियों के बराबर की सुविधा का भरपूर आनंद ले रहे हैं. वैसे किसी भी सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां देना कोई नई बात नहीं है लेकिन सरकार के वे विधायक जो मंत्री पद की लालसा तो कर रहे थे लेकिन उन्हें मिला नहीं, इन सब को देखकर नाक मुंह जरूर सिकोड़ते होंगे.